राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव सोमवार को लगातार लगे दो जोरदार झटकों से हिल गए। लोक जनशक्ति पार्टी [लोजपा] के भाजपा से हाथ मिलाने की खबर के बाद जब उनकी पार्टी के 13 विधायकों जनता दल युनाइटेड में जाने की घोषणा की तो लालू के पसीने छूट गए। यह उनके लिए राजनीतिक बिसात पर अलग-थलग पड़ने जैसा ही था। लेकिन बागी हुए विधायकों को अलग गुट की मान्यता देने के मुद्दे पर भी अब कानूनी पेंच फंस चुका है। मंगलवार को इस मुद्दे पर राजद के विधायक दल की बैठक होनी है।

राजद का साथ छोड़कर जदयू में जाने की घोषणा करने के बाद आनन-फानन में विधानसभा स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने इन्हें नए गुट के तौर पर मान्यता दे डाली। तुरंत ही विधानसभा सचिव फूल झा ने इस बाबत अधिसूचना भी जारी कर दी गई। लेकिन बाद में आठ विधायकों ने वापस राजद में ही रहने की बात कहकर इसमें कानूनी पेंच फंसा दिया। इन विधायकों का कहना है कि विधायक सम्राट चौधरी ने उनसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव की बात कहकर धोखे से दस्तखत करवाए गए। उन्होंने कहा कि वह पहले भी राजद का ही हिस्सा थे और अब भी राजद का हिस्सा हैं।

अब सवाल यह उठ रहा है कि राजद में वापस लौटे आठ विधायकों के बाद बचे पांच विधायकों को किस आधार पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अलग गुट के तौर पर दी गई मान्यता बरकरार रह सकती है। राजद भी इसको गलत करार दे रहा है। वहीं राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार काफी समय से उनके विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए लालच दे रहे थे।

राजद में वापस लौटे आठ विधायकों में विधायक अब्दुल गफूर, ललित यादव, डॉ. फैयाज अहमद, दुर्गा प्रसाद सिंह, चंद्रशेखर, अख्तरुल इस्लाम शाहीन, राघवेंद्र सिंह और जितेंद्र राय शामिल हैं। आठ विधायकों के वापस राजद में लौट आने के बाद अब अन्य पांच विधायकों पर विधानसभा की सदस्यता खत्म होने का भी संकट आ खड़ा हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि नीतीश के लिए यह दांव कहीं उल्टा ही साबित न हो जाए। क्योंकि पांच विधायकों को अलग गुट के तौर पर मान्यता देना कानूनन वैध नहीं है। हालांकि इसका नुकसान कहीं न कहीं राजद को भी होना तय है।