digvijay singh

मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट देश की उन चुनिंदा सीटों में हैं, जिन पर सभी की निगाहें टिकी है। यहां से एक प्रदेश के दस साल मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह हैं तो भाजपा ने अपने तीन दशक के इस गढ़ में हाल में राजनीति में प्रवेश करने वाली साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है। दोनों दलों से ज्यादा यहां पर दिग्विजय की निजी प्रतिष्ठा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन के बीच मुकाबला है।

भाजपा भोपाल लोकसभा पर 1989 से लगातार जीत रही है, भले ही केंद्र व राज्य में सरकार किसी की भी रही हो। हालांकि उसके चेहरे बदलते रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के सुझाव पर दिग्विजय सिंह ने भोपाल की चुनौती स्वीकार की है, जिसके जबाब में भाजपा ने भी मौजूदा सांसद को हटाकर मालेगांव बम धमाके की आरोपी रही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है। साध्वी ने एनआईए की क्लीन चिट के बाद मैदान संभाला है। राजनीति में नई होने से उनकी पूरी चुनावी जिम्मेदारी भाजपा संभाल रही है जिसमें असली ताकत संघ की है।

ध्रुवीकरण से प्रभावित रहे हैं चुनाव
अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंस और भोपाल में हुए दंगों के बाद यहां की राजनीति में आए ध्रुवीकरण से लगभग सभी चुनाव प्रभावित रहे हैं। इसमें भाजपा भारी पड़ती रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने प्रदेश के अपने सबसे बड़े नेता को चुनाव मैदान में उतारकर संकेत दिए हैं कि वह यहां की राजनीति बदलने जा रही हैं। हालांकि कांग्रेस का एक वर्ग अंदरूनी तौर पर सहयोग करता नहीं दिख रहा है।

दांव पर है भाजपा व संघ की ताकत 
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने दिग्विजय सिंह से मुकाबले के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व उमा भारती को टटोला था, लेकिन बाद में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नया चेहरा सामने आया। चयन में संघ की भी अहम भूमिका रही है। पार्टी के कई स्थानीय नेताओं को साध्वी की उम्मीदवारी नहीं भा रही है, ऐसे में प्रज्ञा ठाकुर के लिए संघ अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है। साध्वी प्रज्ञा राजनीति में दिग्विजय सिंह जैसा बड़ा नाम नहीं है। इसलिए उनकी जीत या हार सीधे तौर पर भाजपा व संघ की ताकत से जुड़ी है।

संभल कर चल रहे दिग्विजय
अपने बेबाक बोलों के लिए मशहूर दिग्विजय, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर व उन पर लग चुके मालेगांव बम धमाकों के आरोपों को लेकर बेहद संयत है और इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। सिंह हर ऐसे कदम से बच रहे हैं जिससे चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए कोई जगह बने।

पूर्वांचली मतदाताओं पर नजर
दिग्विजय सिंह के लिए उनकी पत्नी अमृता राय ने भी मोर्चा संभाला हुआ है। इस सीट पर बड़ी संख्या में पूर्वांचली मतदाता है। अमृता खुद पूर्वांचल से होने से इन लोगों के साथ ज्यादा मजबूती से संपर्क कर रही हैं। प्रज्ञा के मुकाबले दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी काफी पहले घोषित होने से कांग्रेस को प्रचार व संपर्क में बढ़त मिली हुई है। भाजपा आखिरी दौर में पूरी ताकत झोंक रही है और रोड शो व सभाओं के जरिए अपने बड़े नेताओं को प्रचार में उतार रही है।