ट्रंप की इस दोतरफा चाल से चीन एक बार में हो सकता है पस्त
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। ‘साउथ चाइना सी’ कई देशों के बीच विवाद की मुख्य वजह बना हुआ है। चीन समेत ताइवान, मलेशिया, फिलीपींस, ब्रूनेई और वियतनाम भी इस पर अपनी दावेदारी जताते रहे हैं। हालांकि चीन के सामने उनकी ताकत का अंदाजा सभी को है। चीन पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका कहीं न कहीं इन सभी चीन विरोधी देशों को एकजुट करने में लगा है। यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ताइवान और फिर फिलीपींस के राष्ट्रपति से न सिर्फ बात की बल्कि उन्हें व्हाइट हाउस आने का न्यौता भी दे डाला है। यह सभी बताता है कि हवाओं का रुख चीन के खिलाफ होता जा रहा है।
चीन के लिए क्यों अहम है साउथ चाइना सी
चीन के लिए साउथ चाइना रणनीतिक और व्यापारिक दृष्टि से भी काफी अहम है। अहम इसलिए है क्योंकि यहां से पूरी दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा समुद्री ट्रैफिक गुजरता है। लिहाजा उसके लिए यह व्यापारिक दृष्टि से काफी अहम है। यही वजह है कि चीन इस पर अपने कब्जे की पकड़ को ढीला नहीं पड़ने देना चाहता है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका चीन के खिलाफ और कहीं न कहीं चीन के घोर विरोधी देशाें के साथ खड़ा होता दिखाई दे रहा है। इसके चलते चीन और अमेरिका यहां पर आमने-सामने हैं।
इंटरनेशनल कोर्ट से चीन को मिली हार
पिछले वर्ष साउथ चाइना सी के मुद्दे पर उस वक्त नया मोड़ आया जब इंटरनेशनल ट्रायब्यूनल ने इस मसले पर चीन के खिलाफ फैसला दिया था। इसके बाद से इस मुद्दे पर अमेरिका और चीन में तनातनी ज्यादा बढ़ गई। अमेरिका ने जहां इस फैसले के बाद चीन से कोर्ट के आदेश का पालन करने की सलाह दी वहीं चीन ने कोर्ट के आदेश को सिरे से खारिज करते हुए साफ कहा कि वह साउथ चाइना सी से अपना कब्जा नहीं हटाएगा। इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।
साउथ चाइना सी में निर्माण कार्यों में तेजी
कोर्ट के इस फैसले के बाद चीन ने इससे जुड़े अन्य द्वीपों पर अपने निर्माण कार्यों में तेजी लाना शुरू कर दिया है। मौजूदा समय में चीन ने साउथ चाइना सी में सैन्य आपूर्ति के लिए हवाई अडडे का निर्माण समेत कई अन्य सामरिक महत्व का निर्माण कार्य पूरा कर लिया है। चीन को इस मुद्दे पर अमेरिका की दादागिरी या फिर यूं कहें कि दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं है। ओबामा प्रशासन में भी इस मुद्दे पर दोनों देशों में विवाद कायम था, लेकिन यह इतना चरम पर नहीं था, जितना की आज है।
ट्रंप सरकार बनने के बाद बढ़ा तनाव
अमेरिका में ट्रंप सरकार बनने के बाद से ही इस मुद्दे पर तनाव काफी बढ़ गया है। इसकी वजह एक यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने सत्ता पर काबिज होने के बाद जिन देशों के राष्ट्राध्यक्षों से बात की उसमें ताइवान के राष्ट्रपति साइ इंग वेन का नाम भी शामिल था। तीस वर्षों के इतिहास में यह पहला मौका था कि जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने ताइवान के राष्ट्राध्यक्ष से बात की थी। अमेरिका और ताइवान के बीच 1979 में राजनयिक संबंध समाप्त हो गए थे। लिहाजा इतने वर्षों बाद हुई इस बातचीत के कूटनीतिक और रणनीतिक मायने भी जरूर थे। हालांकि ट्रंप ने इसको महज शिष्टाचार वाली वार्ता बताया था।
फिलीपींस के राष्ट्रपति को व्हाइट हाउस आने का न्यौता
तीन दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते को व्हाइट हाउस आने का न्यौता देकर आग में घी डालने का काम किया है। दरअसल, यह दोनों ही साउथ चाइना सी पर अपना दावा जताते रहे हैं। लिहाजा अमेरिका अपनी कूटनीति के जरिए इस मुद्दें पर चीन के विरोधियों को एकजुट करने की जो चाल चल रहा है उससे चीन खासा नाराज है। यही वजह है कि कई बार चीन खुलेतौर पर ट्रंप को सीधी धमकी भी दे चुका है। अमेरिका बार-बार साउथ चाइना सी के कृत्रिम द्वीप पर बनाई गई इमारतों को अवैध करार देता रहा है।
गैर सैन्यीकरण के पक्ष में अमेरिका
इस विवादित द्वीप पर हो रहे निर्माण को चीन द्वारा सैन्य ताकत में किए जा रहे इजाफे के तौर पर देखा जा रहा है। पेंटागन का कहना है कि साउथ चाइना सी का इस्तेमाल सेना के लिए नहीं किया जाना चाहिए। वह इस क्षेत्र का गैर-सैन्यीकरण के तौर पर करने का पक्षधर है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका यह भी चाहता है कि दक्षिण सागर के सभी दावेदार चीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में दोबारा अपील करें जिससे चीन पर दबाव बनाया जा सके। ताइवान और फिलीपींस के राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत इसका ही दूसरा चरण माना जा रहा है।
वन चाइना पॉलिसी के जरिए दबाव की रणनीति
अमेरिकी दखल ने इस मुद्दे काे न सिर्फ फिर से जीवंत कर दिया है बल्कि युद्ध की आशंकाओं से ग्रस्त भी कर दिया है। चीन को घेरने के लिए अमेरिका ने उसे लाभ पहुंचाने वाली वन चाइना पॉलिसी को एक नए दांवपेंच के तौर पर इस्तेमाल किया है। अमेरिका ने इस पॉलिसी का विरोध करते हुए साफ कहा है कि वह इस तरह की एकतरफा पॉलिसी को जारी रखने के हित में नहीं है।
चीन को व्यापारिक घाटे की चिंता
ट्रंप ने अपने कई भाषणों और बयानों में इस बात का खुलेतौर पर जिक्र किया है कि चीन को भी अमेरिकी हित में इसी तरह की पॉलिसी बनानी चाहिए, जिससे अमेरिका को चीन में व्यापार करने की आजादी प्राप्त हो सके। वन चाइना पॉलिसी काे रद करने की आशंका से भयभीत चीन फिलहाल अमेरिका से काफी खफा है। यदि अमेरिका इस वन चाइना पॉलिसी को रद कर देता है तो चीन को इससे काफी व्यापारिक घाटा उठाना पड़ सकता है। अमेरिकी दबाव की यह बिल्कुल अलग नीति है, जिसकी वजह चीन उससे काफी खार खाए बैठा है।
अमेरिकी युद्धपोतों की मौजूदगी से खफा चीन
वहीं साउथ चाइना सी में भेजे गए अमेरिकी युद्धपोतों से भी चीन काफी नाराज है। इसकी वजह से चीन और अमेरिका आमने सामने हैं। ऐसे में यहां पर युद्ध की आशंकाओं को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। अमेरिकी युद्धपोताें का वहां होना और चीन का साउथ चाइना सी में निर्माण कार्य जारी रखना यह सभी यहां पर छाए युद्ध के बादलों को बल देने के लिए काफी हैं।