अरविंद केजरीवाल के जनलोकपाल पर नया ग्रहण लगता दिख रहा है. नए हालात में कांग्रेस और बीजेपी ने भी इसके खिलाफ कमर कस ली है. अब केजरीवाल के सामने अपने वादे को पूरा करने की बड़ी चुनौती है.दरअसल, सॉलिसिटर जनरल मोहन परासरन ने यह कहकर केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ा दी हैं कि उनके लोकपाल के लिए उपराज्यपाल की पूर्व स्वीकृति जरूरी है. जनता के बीच, जनता के लिए और जनता को जिस जनलोकपाल की सौगात केजरीवाल सौंपने की तैयारी कर रहे हैं, उसमें नए सिरे से संविधान और सत्ता का अड़ंगा लगता दिख रहा है.

नया पेंच लेकर आए हैं सॉलिसिटर जनरल मोहन पराशरन. सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि केजरीवाल के जनलोकपाल को उपराज्यपाल की पूर्व स्वीकृति का सर्टिफिकेट हर हाल में चाहिए. पराशरन के सवाल उठाते ही कांग्रेस पार्टी उपदेश की मुद्रा में आ गई.

उपराज्यपाल नजीब जंग ने सॉलिसिटर जनरल ने राय मांगी थी कि दिल्ली सरकार के जनलोकपाल का प्रस्ताव कितना संवैधानिक है. सूत्रों के मुताबिक सॉलिसिटर जनरल ने उन्हें सूचना दे दी है कि केन्द्र की हरी झंडी के बगैर दिल्ली सरकार का जनलोकपाल अवैध है.

बल कांग्रेस को मिला है, लेकिन दिन में उससे छत्तीस बार तू-तू, मैं-मैं करने वाली बीजेपी कांग्रेस के साथ मिल कर ‘हम’ बन गई है.

बताया जा रहा है कि सॉलिसिटर जनरल ने उपराज्यपाल से यह भी कहा है कि लोकपाल और लोकायुक्त कानून पिछले साल ही संसद से पास हुए हैं. ऐसे में दिल्ली में नए लोकपाल बिल का आना केन्द्र के कानूनों के खिलाफ होगा. इसके लिए राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होगी.

कांग्रेस करेगी बिल का विरोध, बीजेपी भी‍ खिलाफ
इस बीच कांग्रेस ने फैसला कर लिया है कि वो बिल का विरोध करेगी. दिल्ली कांग्रेस के नेता पिल पड़े हैं. उनका कहना है कि वो आप की सरकार को असंवैधानिक काम नहीं करने देंगे. बीजेपी सुर में सुर मिला रही है. संविधान के दो सबसे बड़े ‘पुजारी’ मिल गए हैं. दोनों ने साथ घोषणा कर दी है कि लोकतंत्र के मंदिर को किसी तरह से खंडित नहीं होने देंगे. अब केजरीवाल कौन सा कर्मकांड करेंगे, देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.

अपना-अपना लोकपाल…
पहले लोकपाल बिल पास कराने की लड़ाई थी, अब लोकपाल पर भी सत्ता के दो खेमे हैं. एक लोकपाल बिल केन्द्र सरकार पहले ही संसद से पास करा चुकी है. अब केजरीवाल दिल्ली के लिए जनलोकपाल ले कर आ रहे हैं.

जिस लोकपाल के लिए अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन किया और जिस लोकपाल को हकीकत में तब्दील करने के वो बेहद करीब भी दिख रहे हैं, वो केन्द्र के लोकपाल से कितना अलग है? जानिए किस लोकपाल के पास ज्यादा बड़े अधिकार हैं…

1. केन्द्र सरकार के लोकपाल का चुनाव 5 सदस्य मिलकर करेंगे, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, लोकसभा अध्यक्ष, मुख्य न्यायाधीश और एक कानून का जानकार, जिसे ये चारों सदस्य मिलकर चुनेंगे.

दिल्ली के लोकपाल का चुनाव 7 सदस्य करेंगे. जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता, हाईकोर्ट के दो जज, पुराने लोकपाल के अध्यक्षों में से 1 और 2 अन्य सदस्य जिनका चुनाव सभी मिलकर करेंगे.

2. केन्द्र के लोकपाल को देश की किसी भी जांच एजेंसी की जांच पर शिकायतों को सुनने का अधिकार होगा, लेकिन सीबीआई को केन्द्र सरकार के अधीन रहना होगा. उनका ट्रांसफर, पोस्टिंग और रिटायरमेंट के बाद की नौकरी का अधिकार केन्द्र के हाथों में होगा.

दिल्ली के लोकपाल को जांच के दौरान अफसर को निलंबित करने का अधिकार होगा. लोकपाल उन्हें बर्खास्त कर सकता है, नौकरी से हटा सकता है, पद कम कर सकता है और उनकी संपत्ति को अटैच कर सकता है. वह सरकारी नौकर को 6 माह की जेल भेज सकता है.

3. केन्द्र के लोकपाल में व्हिसल ब्लोअर या सिटिजन चार्टर का कोई उल्लेख नहीं है.

दिल्ली के लोकपाल में व्हिसल ब्लोअर को खतरे की हालत में जांच की कार्रवाई तेजी होगी. जांच तीन महीने में खत्म करनी होगी.

4. केन्द्र के लोकपाल में गलत या झूठी शिकायत करने वालों को एक साल की जेल या एक लाख का हर्जाना देना होगा. दिल्ली के लोकपाल में गलत शिकायत करने वाले को पांच लाख का हर्जाना देना होगा या एक साल की जेल होगी या दोनों.

5. केन्द्र के लोकपाल में शिकायत सुधार करने वाले अफसर को अपनी ड्यूटी तय समय में नहीं करने के लिए किसी तरह की सजा का प्रावधान नहीं है.

दिल्ली के लोकपाल में ऐसा करने वाले अफसर को हर दिन 500 रुपये का जुर्माना देना होगा, लेकिन जुर्माना 50 हजार से ज्यादा नहीं होगा.

फिलहाल केजरीवाल के सामने चुनौती है. जिस लोकपाल का वादा उन्होंने किया है, उसमें कानूनी अड़चनें खड़ी हो रही हैं.