भोपाल (ब्यूरो)। प्रदेश में अब किसी भी सरकारी स्कूल को निजी हाथों में नहीं सौंपा जाएगा। सरकार पीपीपी मोड पर स्कूलों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस संबंध में तैयार स्कूल शिक्षा विभाग के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने विभाग के मंत्री और अफसरों से सवाल किया कि आखिर सरकारी स्कूलों को ही निजी स्कूलों जैसा बेहतर क्यों नहीं बनाया जा सकता।

मुख्यमंत्री ने साफ किया कि वे स्कूलों के निजीकरण के पक्ष में कतई नहीं हैं। मुख्यमंत्री मंत्रालय में शुक्रवार को विभाग की समीक्षा कर रहे थे। विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती ने प्रदेश में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम लागू करने का प्रस्ताव रखा, इस पर भी मुख्यमंत्री ने असहमति जताई और कहा कि हमारे प्रदेश में हमारा अपना पाठ्यक्रम ही चलेगा। बैठक में स्कूल शिक्षा मंत्री पारसचन्द्र जैन और राज्यमंत्री दीपक जोशी सहित अन्य अफसर मौजूद थे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकारी स्कूलों में बेहतर शिक्षा संबंधी गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम बनाने के लिए शिक्षाविदों की राज्य स्तरीय समिति गठित करें। शासकीय स्कूलों में वर्चुअल क्लासेज का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि कक्षा 12वीं परीक्षा में 85 प्रतिशत से अधिक अंक लाने वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को रिजल्ट आने के एक माह में अंदर लैपटॉप दे दिया जाए।

स्कूलों में आईआईटी और ऑल इंडिया पीएमटी के लिए कोचिंग शुरू की जाएं, जिससे हमारे प्रदेश से ज्यादा से ज्यादा बच्चे सिलेक्ट हो सकें। हर सरकारी स्कूल को मॉडल बनाकर शिक्षकों को उनके प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कृत किया जाए। बच्चों को साइकल और यूनिफार्म देने स्कूलों के पास मेले लगाए जाएं।

एनसीईआरटी की अच्छी चीजें ले लो

मुख्यमंत्री ने कहा कि एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू होने से राज्य के बेहतर पाठ्यक्रम को जोड़ा नहीं जा सकता। हम पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा जोड़ने की सोच रहे हैं वह भी नहीं हो पाएगा। इस पर अपर मुख्य सचिव मोहंती ने कहा कि एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को लागू कर हम सप्लीमेंट्री के तौर पर राज्य की नैतिक शिक्षा को जोड़ सकते हैं। इस पर मुख्यमंत्री ने साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी में आपको जो अच्छा लगता है उसे राज्य के पाठ्यक्रम में जोड़ दो, लेकिन उसे पूरी तरह यहां लागू न किया जाए।

कितने बच्चे ड्राप हुए अफसर नहीं दे पाए जवाब

स्कूल चलो अभियान सहित अन्य सरकारी प्रयासों से बच्चों का स्कूल में एडमिशन तो हो गया, लेकिन इनमें से कितने बच्चे कक्षा 1 से आगे तक जा पाए। मुख्यमंत्री के इस सवाल का जवाब स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर नहीं दे पाए। इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि आप लोग इसे सुनिश्चित करें कि प्रदेश का हर बच्चा कम से कम 12वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करे। कोई बच्चा ड्राप न हो इसके लिये सतत मॉनीटरिंग करने के लिए पालक-शिक्षक संघ की मदद ली जाए।

गांवों में पदस्थ शिक्षकों को शहर में लाएं

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षकों के 54 हजार रिक्त पदों को भरने से पहले सालों से गांव में पदस्थ शिक्षकों की काउंसलिंग कर उन्हें मनचाही जहग पदस्थ किया जाए। इसके बाद गांवों में रिक्त होने वाले पदों पर नई भर्ती के शिक्षकों को पदस्थ किया जाए। मुख्यमंत्री ने इंदौर संभाग में लागू की गई ई-अटेंडेस एप्लीकेशन पूरे प्रदेश में लागू करने को भी कहा। उन्होंने जून माह के अंत तक सभी स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था करने के निर्देश दिए।

केन्द्र कैसे तय कर सकता है कहां खोलना है स्कूल

केन्द्र सरकार द्वारा 23 आदिवासी जिलों में 484 स्कूल मंजूर करने की बात पर मुख्यमंत्री ने अफसरों से पूछा कि केन्द्रीय अधिकारी दिल्ली में बैठकर कैसे तय कर सकते हैं कि हमें स्कूल कहां खोलना है कहां नहीं? मुख्यमंत्री ने कहा कि हमे जहां ज्यादा जरूरत है वहीं स्कूल खोलेंगे। उन्होंने विभाग को इस संबंध में पूरा प्रस्ताव तैयार करने को कहा।

पैसा लेने दिल्ली दौड़ों

सर्व शिक्षा अभियान में पिछले वर्ष के 2100 करोड़ न मिलने पर मुख्यमंत्री ने दोनों मंत्रियों जैन और जोशी सहित अफसरों से कहा कि पैसा लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ेगा। आप लोग जाकर केन्द्रीय मंत्री से मिलकर अपना पक्ष रखें। अपर मुख्य सचिव मोहंती ने बताया कि हमने इस बार 4590 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया है, लेकिन शेयरिंग पैटर्न बदलने से इसमें राज्य को 50 फीसदी राशि मिलाना होगी।