नई दिल्‍ली। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेडिकल, एमबीए, लॉ ग्रेजुएट्स अब जिले की कमान संभालने वाले नए कप्‍तान साहब बन रहे हैं। टेक्‍नोलॉजी का अधिक यूज करके और नए तौर-तरीके आजमाकर वे सालों पुरानी पुलिसिंग की समस्‍या का हल निकाल रहे हैं।

फिलहाल पुलिस सर्विस में 40 फीसदी ऐसे ऑफिसर हैं जिनका कुल अनुभव 10 साल से कम है। इन युवा आईपीएस ऑफिसर में से अधिकतर ऐसे हैं जिनके पास इंजीनियरिंग, मेडिकल और एमबीए की डिग्री है। साल 2011, 2012, 2013 के आईपीएस बैच के 70 फीसदी ऑफिसर या तो इंजीनियर, डॉक्टर या फिर एमबीए हैं।

इन ऑफिसरों ने अपने-अपने जिलों में व्यवस्था में सुधार के लिए काफी अच्छे कदम उठाए हैं। इनकी इन कोशिशों के अच्छे नतीजे सामने आए हैं। यही वजह है कि इन पुलिस ऑफिसरों के उठाए गए कदमों को मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। इन्हें ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने अपने स्मार्ट पुलिसिंग प्रोग्राम में शामिल किया है।

इन्‍हीं कुछ पहलों में से एक कर्नाटक का उदाहरण है। वहां एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया गया है, जो चोरी गए वाहनों को तुरंत खोज भी सकता है और उसके मालिक का भी पता लगा सकता है। गुजरात में अपराधियों की जानकारी तेजी से एक दूसरे के साथ साझा करने के लिए सभी पुलिस स्टेशन डिजिटली जुड़े हुए हैं।

दिल्‍ली आईआईटी से पास 2005 बैच के बेंगलुरु पुलिस के डीसीपी अभिषेक गोयल ने सितंबर 2014 में लोगों और पुलिस के बीच सीधे संवाद को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया की पहल की। एक साल से भी कम समय में बेंगलुरु पुलिस के ट्विटर हैंडल पर 3.50 लाख लोगों की फालोइंग हो गई। इसके फेसबुक पेज पर छह लाख से अधिक फालोवर्स हैं।