सलीके से हर किसी से अपनी बात रखने वाली यह ‘बहू’ किसी के घर में घुसते ही मानो उसकी अपनी बहू हो जाती है। किनारदार साड़ी, माथे पर लंबा टीका और चंदन भी और मिनटों में लोगों से घुलमिल जाने का बेमिसाल क्षमता। अभिनय से राजनीति में आईं स्मृति ईरानी को इस बात का अहसास है कि उनका मुकाबला कांग्र्रेस के गढ़ में राहुल गांधी से है। इस कारण वे बड़े बोल नहीं बोलतीं। बस अपनी बात सामने रखने की कोशिश करती हैं।

तिलोई के सेमरौता गांव में बुजुर्ग महिला रामदुलारी से बात करते समय वह उनके और नजदीक आ जाती हैं-‘अरे काकी अबकी बार तौ मोदी सरकार के खातिर हमका जितावा। हम बड़ा-बड़ा वादा तौ न करब, लेकिन बिजली आवै लागी.. नहर मा पानिव रहे और सड़कन से गढ्डा जरूर दूर कराउब।’ उनकी अवधी लोगों को सुहाती है। आगे बढ़ते ही काफिले में महिलाओं की संख्या एक-दो बढ़ जाती है।

स्मृति ईरानी के लिए अमेठी में वोटों की प्रतिबद्धता भले ही न मुखर हो लेकिन कौतूहल भी है और आकर्षण भी। गौरीगंज में उन्हें देखने की ललक इंटर की छात्रा को सड़क तक खींच लाती है। पूछने पर बताती है-‘तुलसी आईन है। वही सास-बहू वाली।’ यह मोदी इफेक्ट पर स्मृति ईरानी का एडवांटेज है कि उन्हें अपने परिचय की दरकार नहीं। ‘सास भी कभी बहू थी’ सीरियल की वजह से अधिकांश महिलाएं उन्हें जानती हैं तो पुरुष भी उनका चेहरा पहचानते हैं। यह तथ्य बहुत कम लोग जानते हैं कि वे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

अपना यही आकर्षण कैश करने की कोशिश में हैं स्मृति ईरानी और इसमें मेहनत में कमी नहीं। चटक दुपहरी हो या चिलचिलाती धूप के बीच तेज हवाओं का झोंका.. अमेठी के गांवों में एक के बाद उनकी नुक्कड़ सभाएं चलती हैं। बीच-बीच में संगठन के पदाधिकारियों से भी विचार-विमर्श। कहीं मौका मिला तो पानी पी लिया। वहां भी यदि लोग हुए तो राहुल गांधी और कांग्र्रेस पर तंज कर दिया-‘अब अच्छा दिन अइहंय।’

शब्दों पर पकड़ और सही जगह उपयोग स्मृति ईरानी की राजनीति में परिपक्वता को दिखाता है। उन्हें इस बात का अहसास है कि अमेठी से राहुल गांधी का भावनात्मक रिश्ता है। उनकी कोशिश अपनी पैठ भर बनाने की होती है। नुक्कड़ सभाओं में बड़ी सहजता से अचानक ही वह बोलती हैं-‘भावनात्मक रिश्ते अपनी जगह, बुनियादी जरूरतों का सवाल भी है। फिर बदलाव की जरूरतों पर उनका भाषण शुरू हो जाता है। अभिनय में संवाद शैली की प्रवीणता आज राजनीति में उनका जरूरी हथियार है। इसलिए हर छोटे-छोटे मुद्दे पर भी वे मुखर हैं। सड़क, बिजली, पानी जैसी रोजमर्रा की जरूरतों पर सवाल खड़ा करते हुए वह अमेठी से पूछती हैं-च्अगर राहुल ईमानदारी से कोशिश किए होते तो हालात बदले न होते? फिर धीरे से वे मोदी और भाजपा के विजन पर आ जाती हैं। महिलाओं का घेरा बढ़ा तो हाथ में हथेली पर कमल वाली मेहंदी दिखाना नहीं भूलतीं।

स्मृति मल्होत्रा से स्मृति ईरानी बनीं 38 वर्ष की भाजपा उम्मीदवार के साथ उनके पति जुबिन ईरानी भी अमेठी की गलियों में टहल रहे हैं। सुबह सात बजे वह तैयार होकर गौरीगंज से प्रचार के लिए निकलती हैं तो शाम दस बजे ही वापसी होती है। कच्ची-पक्की सड़कों से होता हुआ इसी बीच उनका कारवां एक के बाद एक गांव में पहुंचता है। यहां सोनिया और प्रियंका पर सीधा हमला बोलती हैं-‘चुनाव के समय ही मां व बहन को अमेठी की याद आती है।’ महज 23 दिन पहले अमेठी पहुंची स्मृति अब अमेठी के पूरे भौगोलिक नक्शे से वाकिफ हैं। साथ चल रहे एक भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं-‘इन्हें और पहले ही भेज देना चाहिए था।’