भोपाल। प्रदेश की जेलों में बंद 19 हजार विचाराधीन कैदियों को अब फैसले के इंतजार में सलाखों के पीछे ज्यादा समय नहीं काटना पड़ेगा। जेलों में कैद ऐसे बंदियों की पहचान शुरू हो गई है जिन्‍होंने फैसले के इंतजार में अपराध की अधिकतम सजा के मुकाबले आधा समय जेल की चाहरदीवारी में काट लिया है।
 जेल प्रशासन धारा-436-ए के प्रावधानों के तहत इन कैदियों की त्वरित सुनवाई कर प्रकरण न्यायालय में पेश करेगा जहां रिहाई या जमानत का फैसला सुनाया जाएगा।केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद ये कवायद सभी राज्‍यों में शुरू की गई है। इसका मकसद जेलों में क्षमता से ज्यादा संख्या में बंद कैदियों के बोझ और सरकारी खर्च को कम करना है। प्रदेश में अब तक ऐसे 9 मामलों को चिन्हित कर न्यायालय में पेश किया गया है, जहां बंदियों को जमानत मिल गई।
प्रदेश में स्थिति गंभीर
 कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं के लिहाज से प्रदेश में स्थिति ठीक नहीं है। प्रदेश की 123 बड़ी और छोटी जेलों में 26 हजार कैदियों की क्षमता के मुकाबले 36 हजार कैदी बंद हैं। इनमें से 19 हजार कैदी अरसे से केस में फैसले का इंतजार कर रहे हैं। बीमारी और समय पर इलाज नहीं मिल पाने की समस्या के चलते इनमें से कई दम भी तोड़ चुके हैं।
पौने तीन करोड़ हर माह खर्च
 प्रदेश की जेलों में बंद 19 हजार विचाराधीन कैदियों को खिलाने पिलाने में सरकार को हर माह 2 करोड़ 66 लाख 1 हजार 900 रुपए खर्च उठाना पड़ रहा है। डाइट चार्ट के मुताबिक एक बंदी पर प्रतिदिन का खर्च 46.67 रुपए आंका गया है। 36 हजार कुल बंदियों पर यही रकम 5 करोड़ 40 लाख 3 हजार 600 रुपए प्रतिमाह पहुंच जाती है।
इनका कहना है
 धारा 436 ए के तहत अधिकतम सजा का आधा वक्त जेल में काटने वाले कैदियों की त्वारित सुनवाई कर इन्‍हें न्यायालय में पेश किया जा रहा है। ऐसे 9 मामलों में बंदियों को इसी माह जमानत मिली है जबकि शेष का फैसला अगले सप्ताह आ जाएगा।