11 करोड़ का पड़ा हिन्दी सम्मेलन, बिल चुकाने में अब फूल रहे सरकारों के हाथ-पांव
भोपाल। राजधानी में हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ, खूब प्रचार-प्रसार हुआ। बड़े-बड़े गेस्ट आए और खूब स्वागत-सत्कार के साथ कार्यक्रम सफलतापूर्वक मनाया गया। अब बारी है बिल चुकाने की…! केन्द्र सरकार ने तो प्रदेश सरकार को कार्यक्रम की सफलता के लिए बधाई देने के बाद पलटकर नहीं देखा, ऐसे में बिल भुगतान की जवाबदेही पहले से आर्थिक संकट से जूझ रही प्रदेश सरकार के कंधों पर आ गई है। केन्द्र ने 9 करोड़ रुपए में कार्यक्रम समाप्त करने पर भुगतान की जिम्मेदारी पर सहमति दी थी, लेकिन कार्यक्रम खत्म होते तक लगभग 11 करोड़ रुपए का खर्च हो गए, जिसके बाद केन्द्र ने कोई भी आर्थिक मदद देने से इंकार कर दिया है।
विभाग ने खींचे हाथ
सम्मेलन शुरू होने से पहले केन्द्र और राज्य सरकार के बीच तय हुआ था कि कार्यक्रम का पूरा खर्च विदेश मंत्रालय के खाते में जाएगा पर शर्त यह है कि खर्च 9 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब राज्य सरकार ने विभाग को ब्यौरा सौंपा तो खर्च 11 करोड़ रुपए बताया गया। जिसके बाद विभाग ने किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद करने और भुगतान से इंकार कर दिया है।
अनुपूरक बजट के भरोसे
पहले से आर्थिक संकट, सूखा, किसानों को आर्थिक सहायता देने के चक्कर में कर्जे में डूब चुकी राज्य सरकार के पास सम्मेलन के भुगतान के लिए बजट जुगाड़ करने का संकट है। सरकार के सामने संकट यह है कि कई मदों में बजट का प्रावधान ही नहीं है। अतंत: सरकार अब अनुपूरक बजट में भुगतान राशि स्वीकृत करने जा रही है।
50 लाख की पड़ी हिन्दी गाथा
जानकारी के अनुसार हिन्दी सम्मेलन के दौरान हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम हिन्दी गाथा के लिए अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी ने 50 लाख 60 हजार रुपए खर्च किए हैं। तीन दिन के कार्यक्रम में बिजली व्यवस्था और बिल पर 12 लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए। हिन्दी सम्मेलन में आए अतिथियों के स्वल्पाहर और भोजन में सरकार ने 70 लाख 40 हजार रुपए और उन्हें उपहार स्वरूप दी गई किताब नर्मदा तुम कितनी सुन्दर हो की खरीद पर 2.50 लाख रुपए का खर्च आया है।