किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्‍पताल में ज्‍यादती के बाद 42 साल तक कोमा में रहीं नर्स अरुणा शानबाग की मौत के बाद उनके शव को लेकर विवाद हो गया है। अरुणा का शव केईएम अस्पताल में रखा गया है। अस्पताल के डीन अविनाश सूपे द्वारा उनके शव को परिजनों को सौंपने के एलान के बाद अस्पताल की नर्सें विरोध करने लगीं। इस फैसले को वापस लेने के लिए उन्होंने डीन के खिलाफ नारेबाजी भी की। नर्सों का कहना था कि जब उसे परिजनों के जरुरत थी जब कोई नहीं आया अब क्यों सुध ली है। इस दौरान सभी नर्सें अस्पताल प्रशासन के फैसले से नाराज होकर अस्पताल से बाहर निकल गई।
अरुणा एक जून को 68 साल की होने वाली थीं। केईएम अस्‍पताल में उनका बर्थडे मनाने की तैयारी चल रही थी। पिछले सप्‍ताह मंगलवार को उनकी तबीयत ज्‍यादा खराब हो गई थी। सांस की तकलीफ बढ़ जाने के बाद उन्‍हें आईसीयू में ले जाया गया था। वहां से वह नहीं लौट सकीं।
सोहनलाल केईएम अस्पताल की डॉग रिसर्च लेबोरेटरी में काम करता था। कुत्तों के लिए आने वाला मांस वह खुद खा जाया करता था। नर्स अरुणा उसे मना किया करती थीं। इसी से सोहनलाल की चिढ़ बढ़ने लगी। उसने अरुणा पर बुरी नजर रखनी शुरू कर दी। तब 23 साल की अरुणा 27 नवम्बर, 1973 को डयूटी खत्म कर कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम में पहुंचीं। सोहन वहां पहले से घात लगाकर बैठा था। उसने अरुणा को दबोच लिया। कुत्ते के गले की चेन ही करुणा के गले पर कस दी और बलात्‍कार किया। चेन से अरुणा के दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें फट गईं। उसकी आंखों की रोशनी चली गई, शरीर को लकवा मार गया, अरुणा बोल भी नहीं पा रही थीं। सोहनलाल ने सबूत मिटाने के लिए गला घोंट कर अरुणा की जान लेने की कोशिश भी की। जब उसे लगा कि वो मर चुकी है तो छोड़ कर फरार हो गया। लेकिन अरुणा मरीं नहीं। बेहद प्रताड़ित किए जाने की वजह से वह कोमा में चली गईं।
अरुणा हमले के बाद ही अपाहिज हो गई थीं। जांच में पुलिस को कुछ सुराग हाथ लगे और सोहनलाल गिरफ्तार कर लिया गया। अरुणा पुलिस को ये भी नहीं बता सकीं कि उसके साथ किस कदर ज्‍यादती की गई। सोहनलाल पर कान की बाली लूटने और हत्या के प्रयास का केस चला। उसे सात साल की सजा दी गई। सूत्रों की मानें तो सोहनलाल अपना नाम बदल कर दिल्ली के एक अस्पताल में आज भी काम कर रहा है।
पेशे से जर्नलिस्ट और लेखिका पिंकी विरानी ने अरुणा की इस दास्तान पर किताब लिखी। उन्होंने सोहनलाल को सजा दिलवाने की भी कोशिश की, लेकिन नाकाम रहीं। अरुणा की तकलीफ को देखते हुए पिंकी विरानी ने उनके लिए सुप्रीम कोर्ट में इच्छा मृत्यु की मांग की लेकिन, कोर्ट ने उसे अस्वीकार कर दिया।
मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा को यूथेनेसिया का इस्तेमाल कर (जहरीला इंजेक्‍शन देकर) मौत देने की अपील खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि पिंकी विरानी का इस मामले से कुछ लेना-देना नहीं है, क्‍योंकि अरुणा की देखरेख केईएम अस्पताल कर रहा है।