सरकारी वकील का दावा- जयललिता को बरी करने वाले फैसले में कई गलतियां
आय से अधिक संपत्ति मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा एआईएडीएमके चीफ जयललिता को बरी किए जाने के फैसले पर स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बी.वी. आचार्य ने सवाल उठाया है। उनका दावा है कि 919 पेज के इस फैसले में संपत्ति की गणना करने में कई बड़ी गलतियां की गई हैं। वहीं, तमिलनाडु में जयललिता के कट्टर विरोधी डीएमके अध्यक्ष एम. करुणानिधि, पीएमके लीडर एस. रामोदास और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चीफ ने भी पूर्व मुख्यमंत्री को बरी किए जाने के फैसले पर आपत्ति जताई। अाचार्य इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन (SPL) देंगे।
बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस सी आर कुमारस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उदाहरण देकर जयललिता की आय से अधिक संपत्ति 10 फीसदी से कम होने पर उन्हें इस मामले मेें बरी कर दिया था। जज ने अपने फैसले में जयललिता की आय से अधिक संपत्ति को 8.12 फीसदी बताया है। स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने कहा कि उनके पास सभी रास्ते खुले हैं। इस फैसले की अंकगणितीय गलतियों के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट करके कहा है, “आय से अधिक संपत्ति केस में जयललिता को बरी करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करूंगा। कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में कई गणितीय गलतियां हैं। अगर जयललिता दोबारा मुख्यमंत्री बनती हैं तो उन्हें फिर इस्तीफा देना होगा।”
– हाईकोर्ट के फैसले के पेज नंबर-10 की गलतियां सही की जाएं तो पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की संपत्ति उनकी आय से 76 फीसदी अधिक होगी।
– पेज नंबर- 852 पर लोन की कुल राशि 24,17,31,274 रुपए बताई गई है। इसे जोड़ा जाए तो कुल राशि 10,67,31,274 रुपए होती है। ऐसे में, बैंक लोन की राशि 13.5 करोड़ अधिक बताई गई।
– पेज नंबर- 913 पर कुल संपत्ति 37,59,02,466 रुपए बताई गई है और कुल आय 34,76,65,654 रुपए है। ऐसे में, कुल संपत्ति और आय के बीच 2,82,36,812 रुपए का अंतर है, जो फैसले में 8.12 फीसदी बताया गया है। लेकिन इसे ठीक से जोड़ा जाए तो आय से अधिक संपत्ति 76.70 फीसदी होगी।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद बेंगलुरु में मीडिया को दिए बयानों में आचार्य ने कहा था कि जयललिता के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए प्रॉसिक्यूशन के पास पर्याप्त सबूत थे। नेचुरल जस्टिस के मुताबिक, कर्नाटक सरकार को इस मामले में अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए था। यह भी समझ में नहीं आया कि कोर्ट ने इस बारे में कैसे नहीं सोचा कि प्रॉसिक्यूशन का पक्ष जाने बगैर अपील पर सुनवाई नहीं हो सकती।