BJP-Candidate-List-for-Uttar-Pradesh-election-2017

आशीष मिश्र,लखनऊ  :

उत्तर प्रदेश की राजनैतिक जंग जीतने एक बार फिर बीजेपी बुंदेलों-हरबोलों और वीरांगनाओं की धरती बुंदेलखंड की शरण में थी. यह महज एक संयोग नहीं था. यूपी में पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद नवगठित प्रदेश कार्यकारिणी ने अप्रैल, 2013 में बुंदेलखंड की धार्मिक नगरी चित्रकूट में पहली बैठक कर लोकसभा चुनाव की तैयारियों का आगाज किया था. लोकसभा चुनाव में 71 सीटें जीतने के बाद नई बनी प्रदेश कार्यसमिति की पहली बैठक रानी लक्ष्मीबाई की धरती झांसी में कर 2017 के विधानसभा चुनाव की जंग का आगाज किया गया.

शिवपाल सिंह और केशव प्रसाद मौर्य का बयानझांसी-दतिया मार्ग पर भानी देवी गोयल सरस्वती विद्या मंदिर में 6 अगस्त से शुरू हुई दो दिवसीय कार्यकारिणी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र थे. शीला दीक्षित के रूप में कांग्रेस के ‘ब्राह्मण कार्ड’ के जवाब में बीजेपी की रणनीति का अहम हिस्सा बनने जा रहे कलराज के लिए कार्यकर्ताओं ने कैसा उत्साह दिखाया, उसकी बानगी पूरे झांसी शहर में लगी होर्डिंग और पोस्टर बयान कर रहे थे. कार्यक्रम स्थल को छोड़ दिया जाए तो पूरे शहर में बीजेपी के इस कद्दावर नेता की एक भी होर्डिंग नहीं थी. बात ब्राह्मणों की थी और पश्चिम में बीजेपी के ब्राह्मण चेहरे के रूप में उभर रहे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और मेरठ से विधायक लक्ष्मीकांत बाजपेयी की नाराजगी भी साफ जाहिर हुई. उद्घाटन सत्र का संचालन कर रहे प्रदेश महामंत्री और कानपुर विधायक सलिल विश्नोई ने बाजपेयी से बार-बार मंच पर बैठने का आग्रह किया, लेकिन वे नहीं आए. अगले दिन समापन सत्र में फिर यही हुआ.

विरोधी पार्टियां बीजेपी पर विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में सांप्रदायिक माहौल बिगाडऩे का आरोप लगा रही हैं. प्रदेश कार्यकारिणी में ऐसे किसी विवाद से बचने के लिए एक रणनीति के तहत झांसी से बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री उमा भारती समेत प्रदेश के सभी फायरब्रांड नेताओं ने इस बैठक से दूरी बनाए रखी. दो दिन चली बैठक में एक बार भी ‘जय श्री राम’ जैसे नारे नहीं गूंजे और न ही किसी भी ऐसे मुद्दे को छुआ गया, जिसमें हिंदुत्व की परछाईं दिखे.

राम मंदिर की जगह ‘गाय’ सियासी एजेंडे पर आ गई. हालांकि 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में बीजेपी का गरीबों को मुफ्त गाय देने का वादा जनता में कोई उत्साह पैदा नहीं कर सका था, फिर भी गोपालकों को अनुदान देने जैसे प्रस्ताव ने जनता से जुडऩे वाले नए मुद्दों के प्रति बीजेपी की कश्मकश को ही जाहिर किया. अब जबकि विधानसभा चुनाव की घोषणा में छह महीने से भी कम समय रह गया है, बीजेपी यूपी में ऐसे मुद्दे और सामाजिक समीकरण अभी तक तलाश नहीं पाई है, जो पार्टी के लिए राम मंदिर जैसी लहर पैदा कर सकें. हालांकि पार्टी ने यूपी में माहौल बनाने के लिए दो महीनों तक चलने वाले एक सघन अभियान की रूपरेखा तैयार की है.

यूपी चुनाव में बीजेपी की रणनीति‘बीएसपी डैमेज’ से डैमेज कंट्रोल
बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि दलितों के एक बड़े हिस्से का समर्थन लिए बगैर पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में यूपी में कमल नहीं खिला सकती. पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 17 आरक्षित सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव की कुल 85 आरक्षित सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की चुनौती आ पड़ी है.

दलित उत्पीडऩ के मुद्दे पर बीएसपी से निबटने के लिए बीजेपी ने आनन-फानन में पूर्व बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में ज्वाइन कराया. मौर्य राजस्थान से आने वाले एक बड़े बीजेपी नेता के जरिए पिछले साल दिसंबर में बीजेपी यूपी प्रभारी ओम माथुर के संपर्क में आए थे. इसके बाद से ही बीजेपी बीएसपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को बीजेपी में लाने के लिए गुपचुप अभियान चला रही थी. हालांकि पार्टी की रणनीति विधानसभा चुनाव के ऐन पहले यह कदम उठाने की थी, लेकिन पिछले डेढ़ महीने में जिस तरह मायावती ने यूपी में अपने दलित आधार को मजबूत किया, उसने बीजेपी को रणनीति बदलने पर बाध्य कर दिया. बीजेपी अब बीएसपी में सेंध लगाकर दलितों के बीच बीएसपी को लेकर एक भ्रम की स्थिति पैदा करना चाहती है.

मोदी पर असमंजस
जिस तरह कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर आक्रामक ढंग से प्रचार शुरू किया है, उसने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. दूसरी ओर, बिहार चुनाव में मिली बुरी हार के बाद बीजेपी में यूपी में केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के सहारे चुनाव लडऩे को लेकर असमंजस है. पार्टी रणनीतिकारों को लगने लगा है कि केवल एक चेहरे के सहारे सभी चुनाव नहीं जीते जा सकते. हालांकि पार्टी मुख्यमंत्री पद का कोई ठोस उम्मीदवार नहीं ढूंढ पाई है, लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच गृहमंत्री राजनाथ सिंह की एक ‘नायक’ की छवि बनाई जा रही है.

झांसी में संपन्न हुई बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी बैठक के समापन पर कार्यकर्ताओं ने जिस तरह राजनाथ सिंह का स्वागत किया, वह अभूतपूर्व था. सभागार में प्रवेश करते ही राजनाथ के ऊपर फूल बरसाए गए. शूरवीर और राष्ट्रनायक जैसे संबोधनों के साथ उनका जयकार किया गया. स्वागत से अभिभूत यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ ने भी मंच से गरजते हुए कहा, ”यूपी में बीजेपी को जिताने के लिए जितने वक्त की जरूरत है, मैं देने को तैयार हूं. यहां पार्टी की सरकार बनवाकर ही दम लूंगा.” यूपी की सभी मुख्य विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सामने आने के बाद पहली बार बीजेपी भी गंभीर हुई है. यूपी में कार्यकर्ताओं और जनता के बीच लोकप्रिय नेताओं का एक सर्वे शुरू हुआ है. अगले दो महीनों तक एक खास रणनीति के तहत पार्टी के चुनिंदा शीर्ष नेता यूपी के अलग-अलग हिस्सों में मुख्यमंत्री पद के लिए उपयुक्त नेता के बारे में कार्यकर्ताओं और जनता के मन की थाह लेंगे.

यूपी में बीजेपी की चुनौतियों का आभास प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को भी है. प्रदेश कार्यकारिणी बैठक में मौर्य ने झांसी में जन्मे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियों से अपने अध्यक्षीय संबोधन को समाप्त किया- चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, विपत्ति विप्र जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए. घटे न हेलमेल हां, बढ़े न भिन्नता कभी, अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी.