इंदौर:-इंदौर के राजबाड़ा स्थित प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर वर्ष में एक दिन 24 घंटे चालू रहता है और माताजी भक्तों को दर्शन देती हैं। अमावस्या की सुबह 4 बजे अभिषेक के बाद से दर्शन के लिए लाइन लगती है, जो पड़वा को अलसुबह तक रहती है। धनतेरस और दीपावली पर मंदिर में विशेष अर्चना होगी।

पुजारी पं. दिनेश उज्जैनकर ने बताया, होलकर कालीन मंदिर की 1833 में हरिरवा होलकर ने स्थापना की थी। उसके बाद से होलकर परिवार नवरात्रि और दीपावली पर दर्शन करने आता था। होलकर खजाने को खोलने के पहले महालक्ष्मी के दर्शन किए जाते थे। यहीं कारण था कि कभी लक्ष्मी की कमी राज परिवार को महसूस नहीं हुई। तब से आज तक परंपरा कायम है। धनतेरस पर सुबह अभिषेक और विशेष शृंगार के बाद आरती होगी। शाम को विशेष अर्चना होगी। दीपावली पर अलसुबह 4 बजे महाभिषेक के बाद श्रीसूक्त के पाठ होंगे। शाम को महाआरती होगी और 56 भोग लगाए जाएंगे।

तीन दुर्घटना के बाद भी मूर्ति सुरक्षित

मंदिर में तीन बार हादसे हो चुके हैं, लेकिन हर बार माताजी और उनके सेवक पुरुषोत्तम दुबे को आंच तक नहीं आई। 1930 में मंदिर जब धराशायी हुआ तो लकड़ी के पाट इस तरह गिरे कि माताजी के ऊपर छत्र बन गया। 1972 में आग से पूरा मंदिर जलकर खाक हो गया था। आग इतनी भीषण थी कि कोई अंदर जा ही नहीं पाया। बावजूद महालक्ष्मीजी की मूर्ति पर खरोंच तक नहीं आई। तीसरी घटना 2011 में हुई। प्लास्टर गिरने पर न तो मूर्ति को और न ही पुजारी को कुछ हुआ। अहिल्या ट्रस्ट के अधीन मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार 1941 में हुआ और 70 साल बाद अब भव्य मंदिर बना है।