मध्यप्रदेश : ‘वैश्विक एकता’ के लिए सागर के हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में वैचारिक समागम
8 और 9 दिसंबर को शंकर संगीत की विशेष सभाएं होंगी। पहले दिन प्रसिद्ध गायिका सुधा रघुरामन आचार्य शंकर रचित स्त्रोतों का गायन करेंगी। दूसरे दिन ओडिसी नृत्यांगना सुजाता महापात्रा की प्रस्तुति होगी। कुलपति प्रो. राघवेंद्र पी. तिवारी ने बताया कि यह अंतरराष्ट्रीय आयोजन आदिगुरू आचार्य शंकर के दर्शन और यूनिवर्सल वननेस पर केंद्रित है। आठ प्रमुख विषयों पर तीनों दिन इस मंथन में देश-दुनिया के प्रमुख शिक्षा एवं आध्यात्मिक संस्थानों से जुड़ीं 27 प्रमुख हस्तियां सागर पहुंच रही हैं।
देशभर से चुने हुए 400 जिज्ञासु और युवा रिसर्चर भी शामिल होने वाले हैं। उनके लिए यह कॉन्फ्रेंस वैश्विक एकता के लिए आचार्य शंकर के अद्वैत वेदांत को समझने की दिशा में एक कारगर कदम होगी। तीन दिन के इस वैचारिक मंथन के आधार पर विश्व पटल पर प्रस्तुत करने के लिए एक अमृत पत्र तैयार किया जाएगा, जो सागर की ऐतिहासिक भूमि से वैश्विक एकता के विचार का बीजारोपण होगा।
उन्होंने बताया कि अद्वैत का विचार इस संसार को भारत की देन है, जो समूची सृष्टि को एकरूप में देखता है। वेद और उपनिषद इसी विचार के बीज रूप हैं और आचार्य शंकर ने उसी विचार के आधार पर सनातन संस्कृति को अपने समय की चुनौतियों के बीच जीवंत बनाया। आचार्य शंकर ही वह विभूति हैं, जिन्होंने वेदों को प्रमाण मानकर भारत की ऋषि परंपरा को आधुनिक आधार दिया।
पिछले डेढ़ हजार साल के इतिहास में भारत भारी उथलपुथल से भरा रहा है और कई तरह के बदलावों से गुजरा है लेकिन अद्वैत का विचार रूमी, बुल्ले शाह, कबीर, नानक, नामदेव और दीगर भाषाओं के संत कवियों की वाणी में मुखर होता रहा। अपने समय के ये महान संत, कवि, दार्शनिक और पथप्रदर्शक अंततः वही बात कह रहे थे, जिसे ऋषियों ने अद्वैत कहा। आचार्य शंकर के उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और भागवत गीता पर लिखे भाष्य आज भी दुनियाभर के आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों में अध्ययन-अध्यापन और शोध का नियमित विषय हैं।
हर दिन हजारों आचार्य इस काम में लगे हैं और मैनेजमेंट, मेडिकल, इंजीनियरिंग, आईटी जैसे विषयों में डिग्रियाँ लेने वाले युवा भी इन संस्थानों में अद्वैत वेदांत की पढ़ाई के लिए खिंचे आ रहे हैं। ऐसे कई सक्रिय प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधि आचार्य भी इस समागम में आ रहे हैं, जिन्होंने आचार्य शंकर की शिक्षाओं को गुरुकुल परंपरा में विश्व भर में प्रसारित किया है। मध्यप्रदेश के सागर में डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में इस आयोजन के निमित्त अद्वैत वेदांत के अनुभवी विचारकों की तीन दिन तक उपस्थिति पूरे प्रदेश के लिए एक स्मरणीय प्रसंग है।
सागर आ रहे वक्ता और अद्वैत उत्सव के विषय
आध्यात्मिक जगत के अतिथि वक्ता स्वामी परमानंदजी (हरिद्वार), आनंदमूर्ति गुरूमां (सोनीपत), स्वामी संवित सोमगिरि (बीकानेर), स्वामी परमात्मानंदजी (राजकोट), स्वामी आत्मप्रियानंदजी (कोलकाता), स्वामी मित्रानंद (चेन्नई), स्वामी शुद्धिदानंदजी (चंपावत), स्वामी अद्वैयानंदजी (एर्नाकुलम), स्वामी मुक्तानंदपुरी (अलवर), स्वामी हरब्रह्मेंद्रानंदजी (उत्तरकाशी), श्री श्याम मनोहर गोस्वामी (मुंबई), स्वामिनी विद्यानंद सरस्वती (कोयम्बटूर) होंगे।
शिक्षाविद् और विषय विशेषज्ञ वक्ता देश के प्रख्यात विचारक श्री सुरेश सोनी (नई दिल्ली), डॉ. महेष चन्द्र शर्मा (नई दिल्ली), डॉ. गुलाब कोठारी (जयपुर), सांसद श्री सत्यपाल सिंह (नई दिल्ली), लेखक एवं सांसद श्री पवन वर्मा (नई दिल्ली), डॉ. एलेक्स हैन्की (ब्रिटेन), प्रो. कपिल कपूर (शिमला), श्री मनोज श्रीवास्तव (भोपाल), डॉ. मणिद्रविड़ शास्त्री (चेन्नई), प्रो. कुटुंब शास्त्री (पुणे), श्री हरिकिरण वादल्मानी (सिंगापुर), डॉ. गौतमभाई पटेल (अहमदाबाद), श्री मुकुल कानिटकर (नागपुर), डॉ. पंकज जोशी (बड़ौदा), प्रो. शिशिर रॉय (बेंगलोर), डॉ. कपिल तिवारी (भोपाल) और जेएनयू (नई दिल्ली) से प्रोफेसर रामनाथ झा होंगे।
तीन दिन के आठ प्रमुख सत्रों में इन विद्वान वक्ताओं के विषय आचार्य शंकर का जीवन, दर्शन और मठ परंपरा, शंकर के अद्वैत वेदांत के पहले और बाद का दार्शनिक विकास क्रम, भक्ति आंदोलन में प्रवाहित शंकर की देशना, समकालीन आध्यात्मिक परंपरा में जीवंत शंकर का अद्वैत वेदांत, लोक परंपरा में शंकर के अद्वैत वेदांत की झलक, आधुनिक विज्ञान में गुंथा अद्वैत वेदांत और वैश्विक एकता का संदेश हैं।
केरल से मध्यप्रदेश आए थे आदि शंकराचार्य
मध्यप्रदेश से तो आचार्य शंकर का संबंध गुरू-शिष्य का है। हम सब जानते हैं कि आचार्य शंकर केरल के कालडि से आठ साल की आयु में निकले थे और यहां अमरकंटक होकर ओंकारेश्वर आए थे, जहां उन्हें गुरू गोविंदपाद ने दीक्षा दी थी। माना जाता है कि लगभग तीन साल का समय उन्होंने यहां बिताया। नर्मदा नदी के तट पर ही आचार्य ने नर्मदा की अमर स्तुति की रचना की, जो आज भी हजारों कंठों से गाई जाती है। वे महाकाल की नगरी उज्जैन भी गए। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और अपने समय में सनातन धर्म में व्याप्त कुरीतियों को तर्क के आधार पर दूर किया।
आचार्य शंकर की पदचाप मध्यप्रदेश की मिट्टी में एक बार फिर सागर में सुनाई देगी। ये तीन दिन हम उसी महापुरुष के विचार वृत्त में होंगे, जिसने भारत को उसकी सनातन पहचान का पुनस्र्मरण कराया और चार मठों की स्थापना के जरिए सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधकर सिर्फ 32 वर्ष की आयु में इस नश्वर जगत से विदा ले ली। आज उनकी शिक्षाएं दुनियाभर के उच्च शिक्षित जिज्ञासुओं को आकर्षित कर रही हैं।