व्यावसायिक परीक्षा मंडल [व्यापमं] में हुए फर्जीवा़़डे के मामले में आरोपी और पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी ओपी शुक्ला की फर्जीवा़़डे में मदद प्रमुख सचिव स्तर के दो अधिकारी कर रहे थे। इस बात का खुलासा शुक्ला से की गई एसटीएफ की पूछताछ में हुआ है। गौरतलब है कि शुक्ला को गुवार को गिरफ्तार करने के बाद एसटीएफ ने 13 फरवरी तक रिमांड पर लिया है।

सूत्रों के मुताबिक शुक्ला ने एसटीएफ को बताया है कि जब उनके काम में कोई अ़़डचन आती थी तो वे प्रमुख सचिव स्तर के दो अधिकारियों को बताते थे। इसके बाद उनकी समस्या का समाधान हो जाता था। शुक्ला और इन दोनों अधिकारियों के बीच लंबी बातचीत के रिकॉर्ड एसटीएफ को मोबाइल और लैंडलाइन नंबरों की कॉल डिटेल से भी मिले हैं। अब एसटीएफ इस बात का पता लगाने में जुट गई है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी जो प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी अपर कलेक्टर रैंक के अधिकारी की इस तरह मदद कर रहे थे। यदि एसटीएफ को इस मामले में कोई ठोस सबूत मिलते हैं तो एसटीएफ जल्द ही इन दोनों अधिकारियों को पूछताछ के लिए तलब करेगी।

भाजपा शासन में मिला ज्यादा फायदा

शुक्ला को अपनी नौकरी में सबसे ज्यादा फायदा भाजपा के शासन में ही मिला है। प्रदेश में वर्ष 2003 में भाजपा की सरकार सत्ता में काबिज होने के साथ ही शुक्ला को छिंदवा़़डा जिले में आरटीओ बना दिया गया था। इसके बाद वह शिवपुरी और सतना में भी आरटीओ रहे। वर्ष 2010 में उन्हें तत्कालीन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के पास बतौर ओएसडी पदस्थ कर दिया गया था।

कैशियर से बना अपर कलेक्टर

मूल रूप से इलाहाबाद के रहने वाले शुक्ला ने 1986 में अपने कैरियर की शुरुआत बैंक कैशियर से की थी। इसके बाद उनका चयन यूपीएससी [संघ लोक सेवा आयोग] के जरिए भारतीय डाक सेवा में हो गया था। करीब दो साल की नौकरी करने के बाद उन्होंने एमपीपीएससी दी थी। इसमें उनका चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हुआ था। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय डाक सेवा की नौकरी से त्यागपत्र देकर डिप्टी कलेक्टर के पद पर ज्वाइन कर लिया था।

डीआईजी के दामाद की तलाश

एसटीएफ को व्यापमं फर्जीवा़़डे में एक और गिरोह के बारे में पता चला है।

सूत्रों के मुताबिक इस गिरोह का सरगना एक पूर्व डीआईजी का दामाद है। अपनी गिरफ्तारी के डर से वो फिलहाल एसटीएफ की पहुंच से फरार हो गया है। इस गिरोह के जरिए करीब सौ से ज्यादा छात्र फर्जी तरीके से पास हुए हैं।