अहमदाबाद। तेरह वर्षों बाद 2002 गुलबर्ग सोसाइटी कांड की सुनवाई मंगलवार को पूरी हो गई। इस दौरान अब पीड़ितों को फैसले का इंतजार है, क्योंकि इसके लिए अदालत ने अभी कोई तिथि मुकर्रर नहीं की है। हालांकि जज ने कुछ विशेष बिंदुओं को स्पष्ट करने के लिए बचाव व अभियोजन पक्ष के वकीलों को 28 सितंबर को बुलाया है। इस कांड में सोसाइटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित अल्पसंख्यक समुदाय के 69 लोगों की मौत हो गई थी। गुजरात में गोधरा नरसंहार के बाद भड़के दंगों में यह सबसे भयानक हिंसक वारदातों में एक है।

गुलबर्ग दंगा पीड़ितों की ओर से पेश एडवोकेट एसएम वोरा ने मंगलवार को जज पीबी देसाई के समक्ष अंतिम दलील दी। वोरा ने कहा कि पहले से बनाए गए आपराधिक षडयंत्र के तहत ही गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला हुआ। सुप्रीम कोर्ट के नियमानुसार, ऐसा षडयंत्र सिर्फ आरोपी के आचार-व्यवहार अथवा चरित्र से ही साबित किया जा सकता है, न कि प्रत्यक्ष साक्ष्यों से।

वोरा ने बताया, गुलबर्ग सोसाइटी में 28 फरवरी 2002 को घुसे सभी आरोपी सिर्फ एक ही नारा लगा रहे थे। बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य इन्हें अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मारने के लिए उकसा रहे थे। यह दर्शाता है कि इसका षडयंत्र रचा गया था। उन्होंने कहा, “अधिकतर आरोपियों के हाथों में हथियार, पेट्रोल और केरोसिन जैसे ज्वलनशील पदार्थ थे। इसका मतलब कि वे मकानों में आग लगाने के मकसद से ही सोसाइटी में घुसे थे।”

वोरा ने दलील दी, “पूर्व पत्रकार आशीष खेतान के एक स्टिंग ऑपरेशन में तीन आरोपी साफ कह रहे थे कि उन्होंने साजिश रची है। इसके अतिरिक्त किसी ने भी स्टिंग के फुटेज को चुनौती भी नहीं दी है। फोरेंसिक प्रयोगशाला ने फुटेज के टेपों की सत्यता की भी जांच की है।”