शरद पवार
शरद पवार – फोटो : फेसबुक
एनसीपी प्रमुख शरद पवार की सफाई पर राजनीतिज्ञ जितना संदेह कर रहे हैं, उतना ही भरोसा भी। शरद पवार ने यह व्यक्तित्व ऐसे ही नहीं पाया है। कहते हैं जीवन का प्रारब्ध सामने आता है। राजनीति में जीवनभर और संसदीय राजनीति में पिछले 52 साल में शरद पवार ने जिस तरह से यात्रा की है, यह उसी का प्रारब्ध है।

उनकी सफाई के बाद बेटी सुप्रिया सुले, पार्टी प्रवक्ता नवाब मलिक भी सामने आए, लेकिन अभी भी संदेह के बादल नहीं छट रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के एक पुराने महासचिव का मानना है कि पवार पर लोगों का यही भरोसा महाराष्ट्र की सरकार और भाजपा का बड़ा हथियार बन गया है।

जरा, याद कीजिए 70 का दशक
शरद पवार 1967 में बारामती का प्रतिनिधित्व करते हुए महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचे थे। 1972 और 1978 के चुनाव में भी शरद पवार चुनाव जीते। यशवंत राव चव्हाण के संरक्षण में राजनीति शुरू करने वाले पवार ने राजनीति में पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा।

वसंतदादा पाटील राज्य के मुख्यमंत्री थे, लेकिन शरद पवार ने पहली बार कांग्रेस पार्टी को तोड़कर कुछ विधायकों के साथ प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाई थी। वसंत दादा पाटील भी शरद पवार के संरक्षक थे और शरद पवार ने 12 विधायकों के साथ वसंत दादा पाटील के खिलाफ जाते हुए 18 जुलाई 1978 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी।

तब वसंत दादा ने इसे शरद पवार द्वारा पीठ में घोंपा गया छुरा बताया था। पवार की यह सरकार कांग्रेस (एस) और जनता पार्टी के समर्थन से बनी थी। बाद में 1980 में सत्ता में वापस आने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस सरकार को बर्खास्त कर दिया था। यह पवार का राजनीति में पहला विश्वासघात था।

कांग्रेस में लौटे, सीएम बने

1980 में महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) फिर सत्ता में आई। बैरिस्टर एआर अंतुले राज्य के मुख्यमंत्री, विधानसभा में पवार विपक्ष के नेता बने। इसके बाद 1987 में शरद पवार ने औरंगाबाद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में फिर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की।

26 जून 1988 को राज्य में कांग्रेस के बहुमत पाने पर शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन किया। 4 मार्च 1990 में शरद पवार तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने।

1991 में राजीव गांधी के हत्या के बाद दिल्ली में केंद्र में सरकार बनने की दशा में शरद पवार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में थे। कहा जाता है कि सोनिया गांधी का वीटो लगने के बाद उनके स्थान पर पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने थे। सूत्र बताते हैं कि पवार को यह दर्द सालता रहा।

पवार को 26 जून 1991 को देश के रक्षामंत्री  और सुधाकर नाईक को राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। राजनीति के जानकार बताते हैं पवार के खेमे ने सुधाकर नाईक सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने शरद पवार को चौथी बार राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा।

कांग्रेस अध्यक्ष का हार गए चुनाव

1997 में शरद पवार बारामती लोकसभा से चुनकर राष्ट्रीय राजनीति में आए थे। सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और हार गए। पवार ने रिपब्लिकन पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरण बनाया। कांग्रेस राज्य में 48 में से 37 सीटें जीतने में सफल रही। शरद पावर 12वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता चुने गए।

कांग्रेस पार्टी को दूसरा झटका

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के इटली मूल के होने के कारण शरद पवार ने फिर भारतीय मूल के व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के नाम पर कांग्रेस से बगावत की। कांग्रेस पार्टी ने तीनों नेताओं को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया।

यह बगावत उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा, तारिक अनवर के साथ की। तीनों नेताओं ने मिलकर जून 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई। राज्य विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। तब शारद पवार की एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई। कांग्रेस के नेता विलास राव देशमुख कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री बने।

2004-2014 तक वह यूपीए सरकार में केन्द्र सरकार में मंत्री बने। पिछले 20 साल एनसीपी के कैरियर में पवार का साथ निभाने वाले पीए संगमा और बाद में तारिक अनवर ने भी साथ छोड़ दिया। इतना ही नहीं तमाम राजनीतिक अवसरों पर वह अपने हिसाब से चलते रहे। पवार की यह राजनीति लगातार कभी मजबूत भरोसा नहीं बना सकी।

खुद खा गए झटका

बताते हैं कि जिन पदचिन्हों पर शरद पवार चले, उन्हीं पर उनके भतीजे अजित पवार भी चले। पवार के ट्वीट, सुप्रिया सुले के दर्द, प्रवक्ता नवाब मलिक के बयान से लग रहा है कि शरद पवार इस बार अपने ही भतीजे से अजित पवार से गच्चा खा गए। हालांकि अजित पवार का कहना है कि उन्होंने दो दिन पहले शरद पवार को अपनी राय से अवगत करा दिया था।