सतना

मनौरा में खुदाई से निकले गुप्तकालीन अवशेष ले जाने का ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है। ग्रामीण उन्हें विरासत के देवी-देवता मानते ले जाने देने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर, सुरक्षा की गारंटी भी नहीं ले रहे हैं। पुरातत्व विभाग ने� अवशेषों को संग्रहालय तक पहुंचाने प्रशासनिक मदद लेने का मन बनाया है। मूर्तियों, स्तंभ, शिवलिंग और मंदिरों के ढांचे से प्राप्त होने वाले अवशेषों को सतना रामवन संग्रहालय तक पहुंचाने के लिए प्रशासन से मदद ली जाएगी। विभाग अभीतक चिन्हित 96 टीलों में से छह की खुदाई करवा चुका है। हाल ही में टीला नंबर तीन से शिव मंदिर का ढांचा मिला है। चार टीले ऐसे थे जिनमें मंदिर का ढांच, शिवलिंग, शिव प्रतिमाएं प्राप्त हुईं। जबकि दो टीलों को तत्कालीन रहवासियों का आवास माना जा रहा है। दो मरघटिया टीलों से ढेर सारे लोहे के उपकरण बरामद हुए हैं। इनमें गुप्तकालीन औजार, लोहे के कीलें, चम्मच और लकड़ी के दरवाजों को जोडऩे के लिए इस्तेमाल किए गए एल, यू साइज के ज्वाइंटर बरामद हुए हैं।

चाहते हैं मनौरा का विकास

मनौरावासी गांव का विकास चाहते हैं। उन्हें आशंका है, अगर प्राचीन अवशेषों को अन्यत्र स्थापित किया जाता है तो मनौरा का विकास अधर में छोड़ दिया जाएगा। दुर्दशा यह है कि संपर्क मार्ग न होने से चार से छह घंटे के बाद कैमोर पहाड़ को पार करना पड़ती है। तर्क है कि मनौरा में गुप्तकालीन सभ्यता का प्रमाण मिला है। ऐसे में गांव को पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जाए। अवशेषों को यहीं रखा चाहिए। लेकिन मूर्तियों, स्तंभ, दीवार की ईंट और दूसरे अवशेषों की सुरक्षा की जिम्मेदार नहीं लेते। ऐसे में कड़ी मेहनत के बाद मिले अवशेष असुरक्षित महसूस किए जा रहे हैं।

अवशेषों का परीक्षण शुरू

पुरातत्व विभाग ने गुप्तकालीन अवशेषों की जांच शुरू कर दी है। परीक्षण के बाद ग्राफ्स तैयार किए जाएंगे। जिसे केंद्र सरकार को सौंपा जाएगा। इधर, मनौरा में 320 ई.वी से 600 ईवी के बीच गुप्तकालीन सभ्यता की खुलासे के बाद केंद्र सरकार भी राज्य पुरातत्व विभाग के संपर्क में है। फिलहाल, बाकी टीलों की खुदाई के लिए पुरातत्व विभाग ने प्रस्ताव तैयार करना शुरू कर दिया है। राज्य पुरातत्व विभाग के अनुसार जुलाई में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया जाएगा। अनुमति मिलने के बाद 2016 में बाकी के 90 टीलों की खुदाई शुरू होगी