जिनेवा: संयुक्त राष्ट्र की आज जारी की गई एक रिपोर्ट में चेताया गया कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ‘सुस्त’ बने रहने की वजह से अगले पांच साल में वैश्विक स्तर पर बेरोजगारों की संख्या में 1.1 करोड़ की वृद्धि होने की संभावना है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की वर्ल्ड एंप्लॉयमेंट सोशल आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में 21.2 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार होंगे. बेरोजगारों की यह संख्या आज के दौर में 20.1 करोड़ है.  रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2014 में 15 से 24 साल की उम्र के लगभग 7.4 करोड़ युवा काम की तलाश में थे और कुल 20.1 करोड़ लोग बेरोजगार थे. यह संख्या वर्ष 2008 में शुरू हुए वैश्विक आर्थिक संकट से पहले की संख्या से 3.1 करोड़ ज्यादा है . रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि युवा महिलाएं इस चलन से अनुपातहीन रूप से प्रभावित थीं.

 आईएलओ के महानिदेशक गुई राइडर ने कहा, ‘‘वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सुस्त बनी हुई है और इसके स्पष्ट परिणाम दिखाई देंगे.’’ आईएलओ संयुक्त राष्ट्र की ऐसी विशिष्ट एजेंसी है, जो सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य मानवीय एवं श्रम अधिकारों के लिए काम करती है.

 रायडर ने कहा कि वर्ष 2008 के आर्थिक संकट के बाद से प्रभावित होने वाली नौकरियों की संख्या 6.1 करोड़ है और वैश्विक अर्थव्यवस्था रोजगार और सामाजिक अंतरों को पाटने में असमर्थ रही है. रिपोर्ट में कहा गया कि आय से जुड़ी असमानताओं के बढ़ने के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था और रोजगार की बहाली में देरी हो रही है.

 औसतन सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग कुल आय का 30 से 40 प्रतिशत धन कमाते हैं जबकि बेहद गरीब 10 प्रतिशत लोगों की कमाई कुल आय के दो प्रतिशत के आसपास है.इसमें कहा गया कि इस खराब आर्थिक माहौल के कारण पैदा हुए अंतर को पाटने के लिए वर्ष 2019 तक 28 करोड़ अतिरिक्त रोजगारों का सृजन करना होगा.

 रायडर ने कहा, ‘‘विश्व अत्यधिक असमानताओं से जूझ रहा है. यहां बड़ी मात्रा में मानवीय अपशिष्ट, गरीबी और कष्ट हैं. बेरोजगारी से निपटने के लिए सिर्फ (आर्थिक) अस्थिरता का डर ही अनिवार्य नहीं होना चाहिए.’’ उन्होंने यह भी कहा कि असमानता ऐसे स्तरों तक पहुंच गई है जहां यह सामाजिक गतिशीलता को बाधित कर देती है. साल 2012 में जब निर्माण क्षेत्र 1992 और 2013 की अवधि के चरम पर था, तब भारत का लगभग 13 प्रतिशत श्रमबल निर्माण क्षेत्र में था इसी अवधि में चीन वर्ष 1995 में अपने चरम यानी 15 प्रतिशत पर था. पाकिस्तान में यह चरम (16 प्रतिशत) वर्ष 2002 में था.

 रिपोर्ट में कहा गया कि यह स्थिति दक्षिणी एशिया के लिए विशेष तौर पर डरावनी है. वहां रोजगार विहीन वृद्धि एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. वर्ष 2009 से 2014 में वाषिर्क औसत आर्थिक वृद्धि 6.1 प्रतिशत रही और इस अवधि के दौरान रोजगार का प्रसार महज 1.4 प्रतिशत हुआ. रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘अधिकतर रोजगार वृद्धि कमजोर और अनौपचारिक रोजगार में थे.’’ इसके साथ ही इसमें कहा गया कि नेपाल के अतिरिक्त अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों के सामने महिलाओं की श्रम बल में कम भागीदारी की चुनौती बनी हुई है.’’