नई दिल्ली: ओलिंपिक में 52 साल बाद कोई भारतीय जिम्नास्ट भाग ले रहा है, वह भी महिला. पुरुष जिम्नास्ट तो इससे पहले ओलिंपिक में भाग ले चुके हैं, लेकिन ऐसा करने वाली दीपा कर्मकार पहली भारतीय महिला हैं. इस पर अब एक उपलब्धि और जुड़ गई है. उन्होंने रियो ओलिंपिक में वॉल्ट के फाइनल में जगह बना ली है. अब नजरें इस पर हैं कि क्या वह कोई पदक जीत पाएंगी… लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका यहां तक का सफर कितना मुश्किल भरा रहा है…

दीपा कर्मकार का जिम्नास्टिक्स का सफर काफी संघर्षभरा रहा है. इसमें कदम रखने के समय जहां उनके पैर बाधा बने, वहीं इसके कठिन स्टेप्स सीखने के लिए भी उन्हें शारीरिक बाधाओं के कारण अत्यधिक कड़ी मेहनत करनी पड़ी. दीपा की मानें, तो वर्ल्ड चैंपियनशिप में जिम्नास्टिक्स का सबसे कठिन वॉल्ट (प्रॉडुनोवा) करने के दौरान एक बार तो उनके कोच को ऐसा लगने लगा था कि वह गर्दन तुड़वा बैठेंगी या मर जाएंगी. जानिए ऐसा क्या हुआ था कि कोच के मन में ऐसे ख्याल आने लगे. इसके साथ ही हम आपको अगरतला, त्रिपुरा की इस 22 वर्षीय जिम्नास्ट के यहां तक के सफर और संघर्ष के बारे में भी बताने जा रहे हैं-

दरअसल दीपा ने ग्लासगो वर्ल्ड चैंपियनशिप, 2015 में सभी प्रतिभागियों के बीच सबसे कठिन स्तर (7.000) वाला प्रॉडुनोवा वॉल्ट करके सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था. हालांकि वह इसको सफलतापूर्वक पूरा करने में विफल रहीं, क्योंकि उनका निचला भाग मैट को छू गया.

…जब बुरी तरह डर गए कोच
पिछले साल इस ईवेंट के काफी समय बाद दीपा ने कहा था, ‘जब मैंने वॉल्ट करना शुरू किया, तो मेरे कोच (बिश्वेश्वर नंदी) डरे हुए थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि मैं या तो अपनी गर्दन तोड़ बैठूंगी या फिर मर जाऊंगी, लेकिन मैं इसे करने को लेकर उतावली थी और कुछ नया कर दिखाना चाहती थी और मैंने इसे करके ही दम लिया.’

प्रॉडुनोवा वॉल्ट में पारंगत होने के लिए उनके समर्पण को आप इसी बात से समझ सकते हैं कि उन्होंने एक हफ्ते में इसके लिए किए जाने वाले प्रयासों की संख्या को अपनी डायरी में लिखना शुरू कर दिया था और आपको पता है इसका अंतिम आंकड़ा क्या रहा? 127 वॉल्ट!

प्रॉडुनोवा वॉल्ट : इतना मुश्किल कि अब तक 5 जिम्नास्ट ही कर पाईं
जिम्नास्टिक्स का सबसे मुश्किल प्रॉडुनोवा वॉल्ट करने के बारे में कम खिलाड़ी ही सोचते हैं. विश्व में पांच महिलाएं ही सफलतापूर्वक कर पाई हैं. पहली बार 1980 मॉस्को ओलिंपिक्स में चो यॉन्ग सिल ने इसे करने की कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हो पाईं थीं. फिर करीब 20 सालों तक कोई महिला इसे सफलतापूर्वक नहीं कर पाई. इसके बाद रूस की येलेना प्रोडुनोवा ने इसे कर दिखाया और उन्हीं के नाम पर इसे प्रॉ़डुनोवा कहा जाने लगा. 1999 में येलेना प्रोडुनोवा और 2012 में डॉमिनिक रिपब्लिक की यामिलेट पिन्या ने इसे सही ढंग से किया. इजिप्ट की फ़द्वा महमूद और उज़बेकिस्तान की ओक्साना चुज़ोवितिना ने भी यह कमाल किया. ऐसे में रियो ओलिंपिक में प्रॉडुनोवा में दीपा का प्रयास उल्लेखनीय रहा. दीपा के शब्दों वह इसे 1000 बार से अधिक कर चुकी हैं.

अब जानते हैं उनके बचपन के संघर्ष के बारे में-

फ्लैट-फुट बना बाधा
दीपा कर्मकार ने महज 6 साल की उम्र से ही जिम्नास्टिक्स का अभ्यास शुरू कर दिया था. उनके लिए जिम्नास्टिक्स को अपनाना शुरू से ही आसान नहीं रहा, क्योंकि उनके तलवे फ्लैट (फ्लैट-फुट) थे, जो जिम्नास्टिक्स के लिए अच्छे नहीं माने जाते. खास बात यह कि उनके पिता SAI (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) कोच थे और वह दीपा को जिम्नास्टिक्स में नाम कमाते हुए देखना चाहते थे. फिर क्या था उन्होंने दीपा को कोच बिश्वेश्वर नंदी के सानिध्य में भेज दिया. कोच नंदी ने कई बार मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा भी है कि जब दीपा उनके पास आई थी, तो उसके तलवे फ्लैट थे और इसके लिए बहुत मेहनत की जरूरत थी. सौभाग्य से इसमें सफलता मिली और दीपा जिम्नास्टिक में आज नाम कमा रही हैं.

ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने से पहले ही कोच नंदी को विश्वास था कि दीपा इसमें सफल होंगी. उन्होंने मीडिया से कहा भी था कि दीपा के प्रदर्शन को देखकर लगता है कि वह ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने और उसमें मुकाबला करने की क्षमता रखती हैं और अब परिणाम सबसे सामने है.

आशीष के मेडल जीतने से मिली प्रेरणा
दीपा कर्मकार को अपने करियर में पहली सफलता 2007 में जूनियर नेशनल स्तर पर मिली. इसके बाद उन्होंने स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल सभी स्तरों पर सफलताएं अर्जित कीं और उनके नाम लगभग 77 मेडल हैं. उनके लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत जिम्नास्ट आशीष कुमार बने. जब आशीष ने दिल्ली में आयोजित 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में देश के लिए इस खेल में पहला मेडल जीता, तो दीपा ने भी ठान लिया कि वह भी अपने देश के लिए कुछ ऐसा ही करेंगी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा, ‘उसी समय (आशीष के मेडल जीतने के समय) मैंने अपने आप से कहा कि मैं भी भारत के लिए यह मेडल जीतूंगी….’ फिर क्या था दीपा ने 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता और ऐसा करने वाली पहली महिला जिम्नास्ट बन गईं.

कॉमनवेल्थ गेम्स से मिली पहचान
जब दीपा ने 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता, तो सबका ध्यान इस महिला खिलाड़ी पर गया और वह चर्चा के केंद्र में आ गईं. इतना ही नहीं वह सबसे मुश्किल माने जाने वाले ईवेंट प्रोडुनोवा वॉल्ट को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली पांच महिलाओं में से एक रहीं. इसके साथ ही उन्होंने अगस्त 2015 में हिरोशिमा एशियन जिम्नास्टिक्स चैंपियनशिप में भी ब्रॉन्ज जीता था.

नवंबर, 2015 में चूक गईं थी दीपा
दरअसल दीपा कर्मकार इससे पहले नवंबर, 2015 में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में ओलिंपिक का टिकट पाने से चूक गईं थीं. फिर भी वह इस प्रतियोगिता के फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट थीं.

52 वर्ष बाद ओलिंपिक में होगा कोई भारतीय जिमनास्ट
दीपा के रियो ओलिंपिक में भाग लेने और वॉल्ट में फाइनल तक पहुंच जाने से भारत के लिए यह विशेष गौरवशाली पल हो गया है, क्योंकि 52 वर्ष बाद कोई भारतीय जिम्नास्ट ओलिंपिक में उतरा और उपलब्धि हासिल कर ली. आजादी के बाद से भारत की ओर से 11 पुरुष जिम्नास्‍ट ओलंपिक खेलों में शामिल हुए थे, वह भी 1952 (दो),  1956 (3) और 1964 (6 ) में. तब से कोई भी भारतीय ऐसा नहीं कर पाया था.

मिल चुका है अर्जुन अवॉर्ड
दीपा को जिमनास्टिक में अद्वितीय प्रदर्शन के लिए प्रति‍ष्ठित अर्जुन पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जा चुका है. उन्हें यह अवॉर्ड राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अगस्त, 2015 में नेशनल स्पोर्ट्स डे (हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के जन्मदिन पर) प्रदान किया था.

Dipa