प्रधानमंत्री के सबसे भरोसेमंद शख्स का खुलासा, आखिर मनमोहन सिंह क्यों फेल हो गए?
आखिर इस देश को 1991 में आर्थिक संकट से उबारने वाले मनमोहन सिंह इस तरह क्यों फेल हो गए? उन्हें क्यों कठपुतली और देश का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री करार दे दिया गया? आखिर क्यों ये मशहूर अर्थशास्त्री सत्ता के गलियारे में इस तरह धराशायी हो गया? 2004 में जब यूपीए सरकार बनी, तो सोचा था कि सोनिया गांधी पार्टी की बागडोर संभालेंगी और मनमोहन सिंह सरकार की. लेकिन ऐसा हो ना सका.
2004 से 2008 के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी पुस्तक ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मैकिंग एंड अनमैकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ में इस बात का खुलासा किया है कि आखिर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर रहते कैसे सत्ता के हाशिए पर चले गए और वो भी इतनी बुरी तरह से. प्रधानमंत्री कार्यालय में एमके नारायणन जैसे वरिष्ठ नौकरशाहों से लेकर जयराम रमेश व पृथ्वीराज चव्हाण जैसे जूनियर मंत्री सोनिया गांधी का करीबी बनना चाहते थे. हर किसो को लगता था कि वह कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वासपात्र हैं. कैबिनेट के वरिष्ठ साथी आमतौर पर प्रधानमंत्री को नजरअंदाज करने लगे थे. यहां कि उन्होंने उन्हें सम्मानजनक ढंग से संबोधित करना भी छोड़ दिया था. मसलन उनकी जुबां से ‘मिस्टर प्राइम मिनिस्टर’ शब्द मुश्किल ही सुनाई देता था. विदेशी दौरे से वापस आने के बाद उन्हें यात्रा के बारे में भी नहीं बताया जाता था.
अपने साथियों के भ्रष्टाचार को लेकर मनमोहन की चुप्पी ने उनकी प्रतिष्ठा को खासा नुकसान पहुंचाया. वह धीरे-धीरे अपने अधिकार खोते चले गए. इससे भी बदतर स्थिति 2008 में भारत अमेरिका परमाणु समझौते के दौरान पैदा हुई थी.
59 वर्षीय संजय बारू मीडिया सलाहकार के पद पर रहते पीएम के काफी करीब थे. पिछले 20 सालों से वह उन्हें जानते थे. 2008 में पद छोड़ने तक उन्होंने बदलती स्थितियों को अपनी आंखों से देखा. जे एन दीक्षित की मौत के बाद संजय बारू मनमोहन के और भी करीब आ गए थे. कई मामलों में प्रधानमंत्री बारू से सलाह लिए करते थे.
दुनिया के सबसे बड़े और जटिल लोकतंत्र को 10 साल तक चलाने के बाद अब जब प्रधानमंत्री सत्ता छोड़ने के लिए तैयार खड़े हैं, तो बारू की यह बुक कई खुलासे करने के साथ ये बताएगी कि सत्ता में क्या नहीं करना चाहिए.
बारू कहते हैं, ‘मीडिया में प्रोजेक्ट किए जाने से सख्त मना करना, 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार, अहम नियुक्तियों का अधिकार किसी और को देकर सरकार पर से अपना कंट्रोल खो देना, राहुल गांधी द्वारा नीचा दिखाए जाने के बाद इस्तीफा ना दे पाना, इन सबके बाद मनमोहन सिंह अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़कर जा रहे हैं जिसके वह हकदार नहीं है.
बारू ने अपनी बुक में प्रधानमंत्री की तुलना भीष्म से की है. बारू ने एक वंश के प्रति आंख बंद करके वफादारी जैसी सभी बातों का जिक्र किया है.




