चांदनी चौक से आसान नहीं रही है भाजपा की जीत
भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हषर्वधन को चांदनी चौक संसदीय सीट से मैदान में उतारा है लेकिन यहां का चुनावी इतिहास बताता है कि इस सीट पर भाजपा की जीत की राह आसान नहीं रही है। यहां अब तब हुए 15 चुनावी मुकाबलों में से गैर कांग्रेसी दलों ने केवल पांच मुकाबले जीते हैं। दिलचस्प यह है कि इनमें से भी तीन मुकाबलों में भाजपा की जीत का अंतर बेहद कम रहा है।
1952 में हुए पहले आम चुनाव में दिल्ली की तीन सीटों में से एक सीट दिल्ली सिटी का नाम बदलकर चांदनी चौक किया गया था। यहां से पहले तीन चुनाव कांग्रेस ने जीते। 1967 में चौथा चुनाव भारतीय जनसंघ ने जीता। इस बार मतों का अंतर लगभग 13 फीसद रहा, लेकिन इसके बाद फिर से कांग्रेस जीत हुई। आपातकाल के बाद हुए वर्ष 1977 में चुनाव में चांदनी चौक के मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया और भारतीय लोकदल के प्रत्याशी सिकंदर बख्त को लगभग 72 फीसद वोट मिले। यह अब तक का रिकॉर्ड है कि किसी गैर कांग्रेसी दल को इतने अधिक वोट मिले हों। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार तीन बार चांदनी चौक पर विजय पताका फहराई।
इसके बाद छह मुकाबले हुए। इनमें से तीन मुकाबले भाजपा ने जीते। पहले 1991 में भाजपा के ताराचंद खंडेलवाल जीते, लेकिन जीत का अंतर लगभग दो फीसद रहा। 1996 में लगभग दस फीसद के अंतर से कांग्रेस के जयप्रकाश अग्रवाल जीते, लेकिन इसके बाद दो बार लगातार विजय गोयल इस क्षेत्र से सांसद चुने गए। गोयल पहले ऐसे नेता हैं, जो दो बार लगातार जीते। हालांकि पहली बार जीत का अंतर लगभग दो फीसद और दूसरी बार एक फीसद रहा। पहली बार वर्ष 2004 में सिब्बल ने 47 फीसद मतों से भाजपा की स्मृति इरानी को हराया तो 2009 में बिजेंद्र गुप्ता को लगभग 25 फीसद मतों से हराया।
शोएब ने तैयार की जमीन
पांच बार से मटियामहल से विधायक चुने जा रहे शोएब इकबाल ने दो लोकसभा चुनाव में बड़ी अहम भूमिका निभाई। दिलचस्प यह कि इन दोनों चुनावों में भाजपा के विजय गोयल की जीत हुई। वर्ष 1998 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े शोएब इकबाल ने 30 फीसद मत हासिल किए, जबकि अगले आम चुनाव 1999 में उन्हें 26 फीसद मत मिले।
विधानसभा चुनाव ने बदले समीकरण
बीते साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र की दस विधानसभा सीटों में से कांग्रेस दो, भाजपा तीन, आम आदमी पार्टी चार और जदयू एक सीट जीतने में सफल रही।




