ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए पहली बार थमा इंदौर का ट्रैफिक
इंदौर, गुडगांव। सड़क हादसे में जान गंवाने वाले रामेश्वर के परिजन ने जैसे ही फैसला किया कि उसके अंग जरूरतमंदों को दे दिए जाएं शहर मदद करने को उठ खड़ा हुआ। लिवर 855 किमी दूर गुड़गांव के मेदांता अस्पताल जाना था। डॉक्टरों ने कम से कम समय में लिवर शरीर से अलग किया, प्रशासन ने शहर के बड़े मार्ग को ग्रीन कॉरिडोर बनाया और पुलिस जवानों ने चोइथराम से एयरपोर्ट तक का 20 मिनट का सफर 8 मिनट में तय किया। इंदौर की रफ्तार ने ठहरकर जिंदगी को रास्ता दिया। लिवर मेदांता में ट्रांसप्लांट किया गया, किडनियां और आंखें इंदौर में। एक गुमनाम मजदूर पांच लोगों की जिंदगी को नाम दे गया।
एक-एक मिनट भारी था और वक्त बहुत कम। गुड़गाव के मेदांता अस्पताल से चार डॉक्टरों की टीम इंदौर के चोइथराम अस्पताल पहुंची। सवा 11 बजे टीम ने रामेश्वर का लिवर हार्वेस्टिंग (शरीर से अलग) किया और टीम एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई। इस बीच संभागायुक्त ने लिवर ले जाने के लिए चोइथराम अस्पताल से महू नाका, राजमोहल्ला, बड़ा गणपति होते हुए एयरपोर्ट तक के रास्ते को ‘ग्रीन कॉरिडोर’ घोषित कर दिया।
प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी अंग को ट्रांसप्लांट के लिए ले जाते वक्त ऐसा कदम उठाया गया। अस्पताल से 10.4 किमी दूर एयरपोर्ट तक लिवर पहुंचाने में टीम को महज 8 मिनट लगे। एम्बुलेंस जहां-जहां से गुजरी लोगों ने उसे रास्ता दिया। साढ़े 12 बजे जेट एयरवेज की फ्लाइट से रामेश्वर का लिवर दिल्ली रवाना किया गया।
ब्रेन डेड घोषित करते ही परिजन ने कहा, इनके अंग किसी के काम आएं तो दे दो
खेतों और कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करने वाले खरगोन के भगवानपुरा तहसील (बलवाड़ी) के रहने वाले 40 वर्षीय रामेश्वर खेडे सोमवार को दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए थे। परिजन उन्हें उसी दिन गंभीर हालत में इंदौर लेकर पहुंचे। बड़े भाई भगवान खेड़े और छोटे भाई जयंत खेड़े ने ‘नईदुनिया’ को बताया कि मंगलवार रात करीब 12.30 बजे डॉक्टरों ने बताया कि रामेश्वर की ब्रेन डेथ हो गई है।
उन्होंने समझाया कि उसके दिमाग ने काम बंद कर दिया है, हालांकि शरीर के अंग काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में उसके ठीक होने की संभावना नहीं है। डॉक्टरों के समझाने के बाद परिजन ने डॉक्टरों से कहा कि रामेश्वर के अंग किसी के काम आ सकते हों तो उसे दे दो। इसके तुरंत बाद चोइथराम अस्पताल के विशेषज्ञों की टीम हरकत में आई। उन्होंने गुड़गाव के मेदांता अस्पताल में संपर्क किया।
6 घंटे तक रामेश्वर का शरीर निगरानी में रखा गया। सुबह फिर जांच हुई। 10.22 मिनट पर डॉक्टरों ने उसे दोबारा ब्रेन डेड घोषित किया। विशेष अनुमति के बाद करीब 11 बजे चोइथराम अस्पताल में ही रामेश्वर का पोस्टमार्टम किया गया। सवा 11 बजे रामेश्वर के शरीर से लिवर को अलग कर दिया गया। टीम 11.40 बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई।
दो घंटे में इंदौर से गुड़गांव पहुंचा लिवर
रामेश्वर का लिवर मात्र दो घंटे में इंदौर से गुड़गांव के मेदांता अस्पताल पहुंचा दिया गया। जहां उसे 55 वर्षीय महिला प्रत्यारोपित किया गया। दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर करीब दो बजे विमान लैंड हुआ। एयरपोर्ट से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर 18 किमी की दूरी 15 मिनट में तय की गई और दोपहर ढाई बजे लिवर अस्पताल पहुंचाया गया। मरीज के नाम का खुलासा नहीं किया गया।
भतीजे के लिए तलाशता था आंखें, रोशन कर गया दो की जिंदगी
रामेश्वर की पत्नी किरण ने बताया कि रामेश्वर का 19 साल का भतीजा रोहित दृष्टिबाधित है। भतीजे की जिंदगी का अंधेरा दूर करने के लिए रामेश्वर हमेशा आंखें तलाशते रहते थे। जब डॉक्टरों ने कहा कि उनके अंग दान हो सकते हैं तो सबसे पहले विचार आया कि उनकी आंखें रोहित को ही मिल जाएं। हमने डॉक्टर से गुहार भी लगाई, लेकिन उन्होंने बताया कि रामेश्वर की आंखे उसे लगाना संभव नहीं है क्योंकि उसके लिए आंखों की जांच करना होगी। इसमें समय लगेगा।
डॉक्टरों ने यह वादा जरूर किया कि भविष्य में जो भी आंखें दान में मिलेंगी, उन्हें रोहित को लगाने की कोशिश करेंगे। रामेश्वर के चार बच्चे हैं। सभी 10 साल से कम उम्र के हैं। किरण ने रोते हुए कहा कि पति की मौत के बाद अब इन बच्चों को पालना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मैंने भले ही पति को खो दिया, लेकिन संतोष इस बात का है कि मेरे पति के अंगों से किसी के पति को नया जीवन मिलेगा।
मजदूर परिवार की सुझबूझ और जज्बा कल्पना से परे
ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर अब भी जागरूकता का अभाव है। चोइथराम अस्पताल के एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजर डॉ.अमित भट्ट की मानें तो किसी व्यक्ति की ब्रेन डेथ के बाद उसके परिजन को ऑर्गन डोनेशन के लिए तैयार करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में एक मजदूर परिवार ने जो सुझबूझ दखाई वह कल्पना से परे है।
मेदांता वालों ने कुछ दिन पहले मांगा था लिवर
चोइथराम अस्पताल के समन्वयकसुरेश कार्लटन ने बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की जरूरत को लेकर लगातार पूछताछ आती रहती है। कुछ दिन पहले मेदांता अस्पताल से फोन आया था कि उन्हें एक मरीज के लिए लिवर की जरूरत है। रामेश्वर को ब्रेन डेड घोषित करने के बाद जब परिजन ने लिवर ट्रांसप्लांट की सहमति दी तो हमने तुरंत मेदांता अस्पताल को इसकी खबर दे दी। वहां से चार डॉक्टरों की टीम इंदौर पहुंची और लिवर ले गई।
खंडवा के दो मरीजों को मिली किडनी
रामेश्वर का लिवर दिल्ली के लिए रवाना होते ही चोइथराम अस्पताल में उसकी किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू हुई। नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.प्रदीप सालगिया ने विशेषज्ञों की टीम के साथ किडनी मरीजों के टिशू की क्रॉस मैचिंग की। रामेश्वर की किडनियां खंडवा के दो मरीज संजीव जॉन और शारदा को दी गईं। हालांकि डॉक्टरों ने देर शाम तक नाम का खुलासा नहीं किया।
दिल्ली से आगे रहा इंदौर
रामेश्वर के लिवर को अस्पताल से एयरपोर्ट और एयरपोर्ट से अस्पताल पहुंचाने में इंदौर दिल्ली से आगे रहा। चोइथराम अस्पताल से एयरपोर्ट की 10.4 किमी की दूरी 8 मिनट में तय की गई, जबकि पालम एयरपोर्ट से मेदांता अस्पताल की 18 किमी की दूरी तय करने में 15 मिनट लग गए। यानी इंदौर ने हर मिनट 1300 मीटर की दूरी तय की, जबकि दिल्ली 1200 मीटर ही चल सका।
प्रदेश में पहली बार हुआ ये सब :
– लिवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया हुई।
– किसी अंग को दूसरे राज्य ले जाकर ट्रांसप्लांट किया गया।
– 850 किमी दूर ले जाया गया।
– ट्रांसप्लांट के लिए ग्रीन कॉरिडोर घोषित किया गया।
– किसी निजी अस्पताल में पोस्टमार्टम की अनुमति दी गई।
8 मिनट में पहुंचे एयरपोर्ट
चोइथराम अस्पताल से लिवर को एयरपोर्ट पहुंचाने के लिए हमने 10 से 12 मिनट का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह ऑपरेशन 8 मिनट में ही पूरा कर लिया। –गोविंद रावत, डीएसपी ट्राफिक (ट्रैफिक व्यवस्था प्रभारी और एम्बुलेंस को पायलेट कर ले जाने वाले)
देश का छठा और प्रदेश का पहला शहर बना इंदौर
सुबह 10.22 बजे मुझे चोइथराम अस्पताल से फोन पर सूचना मिली कि ट्रांसप्लांट के लिए लिवर मेदांता अस्पताल गुड़गांव भेजना है। मेदांता अस्पताल की टीम इंदौर पहुंच गई है। हम जल्द से जल्द लिवर एयरपोर्ट पहुंचाना चाहते हैं। इस पर मैंने तुरंत ट्रैफिक पुलिस से बात की। अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि वे यह चुनौती स्वीकारेंगे। ताबड़तोड़ 100 जवानों की तैनाती की गई। करीब डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद हम चुनौती को पूरा करने की स्थिति में आ गए, तुरंत ग्रीन कॉरिडोर बनाने का निर्णय लिया। इस चुनौती को पूरा करने के बाद इंदौर देश का छठा और प्रदेश का पहला शहर बन गया है, जहां इस तरह ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। अब तक यह प्रयोग दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, पुणे और बेंगलुरु में किए जा चुके हैं। इंदौरवासियों ने बता दिया कि वे हर तरह की चुनौती के लिए तैयार हैं।




