सावन चल रहा है और इस समय राजनीति के केंद्र में कांवडिये आ गए हैं।, दरअसल शरद यादव की इस बात से मैं बिल्कुल सहमत हूं कि सावन के महीने में कांवर लेकर ज्यादातर बेरोजगार लोग ही जाते हैं। शिव का नाम लेकर गांजा भी पीते हैं, भांग भी खाते हैं। लाखों बेरोजगारों की भीड़ होगी तो कभी-कभी उपद्रव भी होंगे !kawadi

आखिर क्या करेंगे बेचारे, व्यवस्था से यक़ीन उठ जाय तो दैवी शक्तियों के प्रति आस्था ही लोगों का संबल होता है। शरद जी भी मेरी इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि इन बेरोजगार कांवरियों में अस्सी प्रतिशत लोग बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के ही होते हैं। उस बिहार के जहां पिछले सताईस सालों से उनकी पार्टी जदयू और उनकी सहयोगी पार्टी राजद का शासन रहा। उस झारखण्ड के जिसकी स्थापना के बाद ज्यादातर भाजपा ने ही राज किया। उस उत्तर प्रदेश के जहां दशकों से ‘सामाजिक न्याय’ का दंभ भरने वाली पार्टियों सपा और बसपा का आधिपत्य रहा।

यकीनन आप नेता लोग इतने लंबे अरसे में बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दूर नहीं कर सके तो यह कांवरियों के लिए नहीं, इन तीनों राज्यों की सभी सत्ताधारी पार्टियों के सभी नेताओं के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है।

और हां, इस बेरोज़गारी का शुक्र मनाईए कि आप जैसे इतने सारे लंपट और बदज़ुबान नेताओं को सुनने के लिए इतनी भीड़ भी मिल जाती है !