परमाणु नि:शस्त्रीकरण पर छोटे द्वीप ने भारत को कोर्ट में खींचा
नई दिल्ली। प्रशांत महासागर में छोटे से द्वीप मार्शल आईलैंड ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक साल पहले भारत के खिलाफ आवेदन दिया था। इसमें परमाणु नि:शस्त्रीकरण की कार्रवाई शुरू नहीं करने के लिए भारत के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है। लेकिन भारत ने अभ तक इसकी प्रतिक्रिया दर्ज नहीं कराई है। मार्शल द्वीप की आबादी करीब 70 हजार है।
भूमध्य रेखा और अंतर्राष्ट्रीय दिनांक रेखा के पास स्थित इस छोटे द्वीपीय देश को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद अमेरिका ने इस द्वीप की कुछ जमीन को अपने परमाणु हथियारों के परीक्षण की साइट के रूप में उपयोग किया। इसके कारण यह पैसेफिक प्रोविंग ग्राउंड्स के नाम से भी मशहूर हो गया था।
यह भी पढ़ें : शांतिसैनिकों को करना पड़ सकता है यौन उत्पीड़न का आरोप का सामना
परमाणु अप्रसार संधि करीब 45साल पहले अस्तित्व में आई थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने 8 जुलाई 1996 में अपनी एडवाइजरी ओपीनियन में कहा- सभी पहलुओं को देखते हुए परमाणु अप्रसार कड़े और प्रभावी अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में होना चाहिए।
मार्शल आईलैंड पर परमाणु हथियारों के परीक्षण के कारण हुए बुरे प्रभावों की क्षतिपूर्ति के लिए अमेरिका ने पिछली शताब्दी में 70 करोड़ डॉलर बतौर हर्जाना दिया है। इस द्वीप का मानना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी परमाणु हथियारों की दौड़ से दुनिया की शांति को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। दोनों ही देशों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
यह भी पढ़ें : मुंबई में ट्रांसजेंडर को फ्लैट खाली करने को कहा
पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत के आग्रह को स्वीकार करते हुए उसे मार्शल द्वीप के आवेदन पर अपना जवाब देने के लिए 16 सितंबर तक का समय दिया है। अदालत ने पिछले साल 16 जून को भारत को 16 दिसंबर 2014 तक का समय दिया था। इस समय सीमा को दोबारा बढ़ाकर 16 जून कर दिया था। अब इसे 16 सितंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है।