बर्लिन। सीरियाई शरणार्थियों का दबाव जर्मनी में साफ नजर आ रहा है। सरकार ने छोटे-छोटे गांवों में शरणार्थियों को बसाने का फैसला किया है। ऐसा ही एक गांव है सुमते। अब तक इस गांव की आबादी महज 102 थी, लेकिन यहां शरणार्थियों का आना शुरू हो गया है। जल्द ही 750 शरणार्थियों को यहां बसाया जाएगा। इस तरह गांव की आबादी में अचानक 700 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी।

पहली खेप के तहत 100 महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को दो बसों से यहां पहुंचाया गया। पूर्वी जर्मनी में बसा यह गांव एल्बे नदी के किनारे है। स्थानीय धर्मार्थ संस्था एएसबी ने उनका स्वागत किया। यहां पांच सौ शरणार्थियों के रहने का बंदोबस्त किया गया है।

ऐसे ही एक शरणार्थी परिवार की 20 वर्षीय युवती ने बताया, हम एक माह से

भटक रहे हैं। हमने बहुत मुश्किल वक्त बिताया है, लेकिन अब जर्मनी आकर सुकून है। एएसबी प्रवक्ता माइकल गटलर ने बताया, हमने 509 लोगों के ठहरने की व्यवस्था की है।

समृद्ध पेंशनभोगियों का गांव है सुमते

सुमते गांव को पेंशनभोगियों ने बसाया है। इनकी आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है।यहां लोगों के पास बड़े-बड़े फॉर्महाउस हैं।

यह गांव शरणार्थियों से जूझ रहे जर्मनी का प्रतीक बन गया है।

सबसे पहले अक्टूबर में, मेयर क्रिस्टिन फेबल को जिला प्रशासन ने बताया कि वहां एक हजार शरणार्थियों को बसाया जाएगा।

बाद में रहवासियों ने विरोध किया तो यह संख्या घटाकर 750 कर दी गई।

दरअसल, शरणार्थियों को बसाने के मसले पर जर्मनी दो धड़ों में बंट गया है।

जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल शरणार्थियों को बसाने पर राजी हैं, लेकिन लोग विरोध कर रहे हैं।

सुमते में रिफ्यूजी प्लान के हिमायती और हिटलर के प्रशंसक होल्गेर निमैन का कहना है कि शरणार्थियों का बसाया जाना स्थानीय लोगों के लिए बुरा है, लेकिन इसके राजनीतिक फायदे हैं।