हैदराबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रेड्डी को हटाने की कवायद एक बार फिर फुस्स हुई हैदराबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने वाले प्रस्ताव से नौ सांसदों ने समर्थन वापस ले लिया है

हैदराबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने संबंधी प्रस्ताव छह महीने में दूसरी बार गिर गया है. द हिंदू के मुताबिक इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले 54 सांसदों में से नौ ने अपना नाम वापस ले लिया है. राज्यसभा के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘कुछ सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन करने से अपना नाम वापस ले लिया है, जिसका मतलब है कि इस समय रेड्डी को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं है.’ जस्टिस रेड्डी पर एक दलित जूनियर सिविल कोर्ट जज एस रामकृष्णा को प्रताड़ित करने का आरोप है.

जस्टिस रेड्डी को पद से हटाने का एक प्रस्ताव दिसंबर में भी लाया गया था. लेकिन, राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने उस पर विचार नहीं किया था क्योंकि इस पर हस्ताक्षर करने वाले 61 सांसदों में से 19 ने अपना नाम वापस ले लिया था. उस समय वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सांसद विजय साई रेड्डी ने कहा था, ‘अगर आप हर बात में जाति को लाएंगे तो समाज कैसे चलेगा. मैं जस्टिस रेड्डी का समर्थन करता हूं, क्योंकि मैं उनकी सत्यनिष्ठा को जानता हूं.’

सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए राज्यसभा के 50 या लोकसभा के 100 सदस्यों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव जरूरी होता है. सदन के सभापति या अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार कर लिए जाने के बाद संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई जाती है. इस समिति की जांच में आरोप सही पाए जाने पर सदन में जज को हटाने का प्रस्ताव लाया जाता है. इसका संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई के विशेष बहुमत से पारित होना जरूरी है. अगर ऐसा होता है तो फिर इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जिसके आदेश से संबंधित जज को हटा दिया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया महाभियोग कहलाती है. हालांकि, भारत में अभी तक किसी भी जज को महाभियोग से नहीं हटाया गया है.