रायपुर (ब्यूरो)। प्रदेश में बिजली के बिल की रीडिंग के नाम पर बड़ा खेल शुरू हो गया है। बिल की रीडिंग घर बैठे की जा रही है और ठेकेदार मनगढंत बिल का हिसाब लगाकर बिल तैयार करवा रहे हैं। ऐसा करने से ठेकेदार को फायदा तो हो रहा है साथ ही ज्यादा टैरिफ के जरिए करोड़ों रुपए का बड़ा हिस्सा विभाग के खाते में जा रहा है।

नईदुनिया की टीम ने अभनपुर और शंकरनगर इलाके के कई घरों की पड़ताल कर ठेकेदारों से भी मुलाकात की। इस दौरान वहां के इलाकों की रीडिंग करने वाले ठेकेदार घर में बिजली का बिल तैयार करते पकड़े गए। यही हाल लगभग पूरे प्रदेश का है।
1200 से 1500 मकानों में एक ठेकेदार की नियुक्ति होती है, जो आधे से ज्यादा में फर्जी या मनगढंत तरीके से रीडिंग फीड करता है। पड़ताल के दौरान यह बात सामने आई है कि 50 फीसदी से ज्यादा घरों में 6-7 महीने में एक बार रीडिंग होती है। फिर जब असल रीडिंग होती है तो यूनिट और टैरिफ बढ़ जाता है। इस कारण बिल 20 से 30 गुना बढ़ा हुआ आता है।
फर्जी रीडिंग का ऐसे हुआ खुलासा
नईदुनिया टीम ने दो ठेकेदारों के घर जाकर गुपचुप तरीके से मुलाकात की। उन्हें इसकी भनक नहीं थी कि हम रीडिंग के मामले की इंवेस्टिगेशन कर रहे हैं। हम उन ठेकेदारों का नाम उजागर इसलिए नहीं कर रहे, क्योंकि यह हाल प्रदेशभर का है।
इसकी शिकायत उपभोक्ता को करनी होगी, जिसके बाद विभाग के अधिकारी कार्रवाई करेंगे। ठेकेदार एक मुश्त औसत बिलिंग के नाम से रीडिंग और यूनिट की खपत जोड़ता जाता है। छह से सात या फिर कई बार दस से ग्यारह महीने में जब रीडिंग होती है तो उपभोक्ता चौंक जाता है।
दो तरीकों से रीडिंग, पर गड़बड़ी दोनों में
नया पैटर्न- नए पैटर्न के अनुसार बिजली के बिल की रीडिंग एक छोटी सी मशीन से होती है। इसमें पिछली रीडिंग के बाद नई रीडिंग फीड करते ही बिल तैयार होता है। इसके बाद भी रीडिंग लेने में लापरवाही होती है और बिल बढ़ जाता है। ऐसा घर पर उपभोक्ता के नहीं रहने पर होता है। यदि उपभोक्ता घर पर नहीं है तो मीटर रीडर अपने मन से रीडिंग कर लेता और बिल छोड़ देता है। आमतौर पर यह एक लापरवाही है, जिसका खामियाजा उपभोक्ता भुगत रहा है।
पुराना पैटर्न- पुराने में एक लॉग बुक में रीडिंग नोट करके विभाग को भेजा जाता था। फिर बिजली का बिल तैयार करके बड़ी पर्ची में इसे बांटा जाता था। अब ज्यादातर गड़बड़ी इसी में होती है। क्योंकि इसकी रीडिंग सबसे ज्यादा फर्जी तरीके से होती है। इसी लॉग बुक को फर्जी तरीके से भरते हुए कई बार पकड़ा गया है, लेकिन ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती।
टैरिफ और मनमाने बिल का खेल समझिए
– 0-40 यूनिट के लिए 2 रुपए प्रति यूनिट लगता है, जबकि 1 रुपए इसमें ऊर्जा भार लिया जाता है।
– 41-200 यूनिट के लिए 2.10 रुपए और 1 रुपए ऊर्जाभार प्रतिघंटे लिया जाता है।
– 201-600 यूनिट के लिए 2.80 रुपए का चार्ज लगता है, जिसमें ऊर्जा का भार 1.60 रुपए प्रति घंटे जुड़ता है।
– 601 से ज्यादा यूनिट वाले उपभोक्ताओं को 4.30 रुपए प्रति यूनिट और 2.20 रुपए ऊर्जा भार लगता है।
टैरिफ की वजह से ऐसे बढ़ता है बिल
– 200 यूनिट तक इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता का बिल अगर बिना रीडिंग के जारी हुआ तो उसे औसतन 450 से 500 रुपए का बिल आएगा। छह-सात महीने में रीडिंग हुई, तो बिल में दो से तीन हजार यूनिट बढ़ेगा। अब जब 600 यूनिट के हिसाब से टैरिफ जुड़ेगा तो जाहिर है बिल 10 से 15 हजार रुपए तक बढ़ जाएगा।
ठेकेदार और अधिकारी इसलिए जिम्मेदार
– रीडिंग से छेड़छाड़ या कम-ज्यादा करने पर 400 रुपए का जुर्माना या ठेका रद्द।
– रीडिंग लेने में गड़बड़ी करे तो उसे 10 रुपए प्रति उपभोक्ता का जुर्माना
– समय पर रीडिंग नहीं लेने पर 100 रुपए और दूसरी बार रीडिंग नहीं लेने पर 25 रुपए का जुर्माना।
हैरानी की बात यह है कि पिछले एक साल में रायपुर जिले में 19 हजार से ज्यादा ऐसी शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन एक साल के भीतर एक भी ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।
नक्सल इलाकों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी
रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर में ठेकेदारों की तरफ से ढेरों गड़बड़ियां सामने आईं हैं, लेकिन यह आंकड़ा नक्सल इलाके में सबसे ज्यादा है। वहां आमतौर पर कोई शिकायत नहीं करता, लेकिन एक अफसर के मुताबिक 70 फीसदी से ज्यादा घरों की वहां मनगढंत बिलिंग होती है।
विभागीय ठेके के साथ प्राइवेट काम, इसलिए कामचोरी
बिजली विभाग में मीटर की रीडिंग और बिल तैयार करने वाले ठेकेदार अपने आधे कर्मचारियों से काम चला रहे हैं। ज्यादातर ठेकेदार छोटा-मोटा बिजली का काम करने वाले कर्मचारी को रखता है, जिससे उन्हें उपभोक्ता की शिकायतों में भी काम करके पैसा कमाने का मौका मिलता है। इसलिए ईमानदारी से काम करने के बजाए घर बैठकर रीडिंग ली जाती है।
चीफ इंजीनियर, एचआर नरवरे
विभाग ने भी माना, लेकिन उपभोक्ता भी जिम्मेदार ठहराया
छत्तीसगढ़ बिजली विभाग में ऑपरेटिंग एंड मेंटनेंस के चीफ इंजीनियर एचआर नरवरे ने साफ कहा कि मीटर रीडिंग में गलती तो होती है, जिसके लिए ठेकेदार पूरी तरीके से जिम्मेदार है। लेकिन 90 फीसदी मामलों में उपभोक्ता उसे पैसे देकर बिल कम करने को कहता है और बाद में जब इसी बिल का पूरा हिसाब होता है तो उपभोक्ता को यह ज्यादा लगता है। नक्सल इलाकों की बात करें तो वहां खपत ज्यादा है पर बिल की रिकवरी पूरी नहीं हो पाती। यह भी इसी लापरवाही का नतीजा है।
कार्रवाई होती है, लेकिन उपभोक्ता अलर्ट रहें- अधीक्षण अभियंता
सीएसपीडीसीएल सिटी सर्कल के अधीक्षण अभियंता पीके खरे ने कहा कि आमतौर पर ऐसी शिकायतें आती हैं। इसमें कार्रवाई भी होती है। लेकिन उपभोक्ता को अलर्ट होना होगा। उन्हें अगर ज्यादा बिल मिले, तो वो स्थानीय बिजली दफ्तर में शिकायत करें, वहां से उचित कार्रवाई होगी। उन्होंने यह भी कहा कि ठेकेदारों पर जुर्माना लिया जाता है, लेकिन कार्रवाई जांच के बाद होती है।