सपा नेता रामगोपाल बोले- 6 पार्टियों का विलय डेथ वारंट पर साइन करने जैसा
जनता परिवार के छह दलों को मिलाकर नया दल बनाने की घोषणा के बाद भी कोई पार्टी विलय को तैयार नहीं है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने बयान दिया है कि 6 पार्टियों का विलय कर एक पार्टी बनाने का मतलब डेथ वारंट पर साइन करने जैसा है। अब स्पष्ट हो गया है कि साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद का विलय नहीं होगा बल्कि दोनों में गठबंधन होगा।बता दें कि रामगोपाल नई पार्टी के नाम-निशान,संविधान तय करने वाली कमेटी में हैं। सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा कि छह दलों को मिलाकर नए दल के गठन का काम बिहार विधानसभा चुनाव के बाद हो पाएगा। बेहतर होगा कि जदयू और राजद, गठबंधन के तहत अपने नाम और निशान पर विधानसभा चुनाव लड़ें। इस बीच, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, ”विलय की जिम्मेवारी मुलायम सिंह यादव को दी गई है। रामगोपाल ने विलय को क्यों टाला, मुलायम ही बेहतर बता सकते हैं। ”
रामगोपाल की इन बातों से पिछले कई महीनों से जारी जनता परिवार का महाविलय, सार्थक मुकाम (नई पार्टी) तक पहुंचने से बहुत पहले बिल्कुल ठहर गया लगता है। हालांकि जदयू ने कहा है कि वह चुनाव आयोग के संपर्क में है। पता लगाया जा रहा है कि आयोग की ओर से तो विलय में कोई अड़चन पैदा नहीं की है? राजद को भरोसा है कि सबकुछ बहुत जल्द ठीक हो जाएगा।
बिहार के लिए पहले भी एक फार्मूला तय हुआ था। यह कि जदयू और राजद का विलय कर एक पार्टी बन जाए। उसी पार्टी का नए दल में विलय होगा। यहां भी नाम का कम और निशान का मुद्दा तल्ख हो गया। जदयू तीर और राजद लालटेन छोड़ने के लिए राजी नहीं था। अब गठबंधन के आधार पर चुनाव लड़ने का विकल्प खुला हुआ है। इसमें कांग्रेस भी शामिल होगी। इसे विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनाव की तर्ज पर लड़ा जाएगा। भाजपा गठबंधन के एक उम्मीदवार के खिलाफ जदयू, राजद और कांग्रेस का एक उम्मीदवार होगा। उस उपचुनाव में जदयू-राजद चार-चार सीटों पर था। दो सीटें कांग्रेस को दी गई थीं। 10 में से छह सीटों पर इस गठबंधन को कामयाबी मिली थी। वैसे यह सबकुछ अब बहुत आसान नहीं है।
दिल्ली में रविवार को मीडिया से मुखातिब रामगोपाल ने अभी नए दल के गठन न हो सकने के कई तकनीकी और व्यावहारिक कारण बताए। बोले-विलय की स्थिति में सभी छह दलों का नाम, झंडा, निशान फ्रीज हो जाएगा। अभी विवाद की स्थिति है, हो सकता है कि राजद से निकाले गए सांसद पप्पू यादव अपने पास राजद का चुनाव चिह्न लालटेन रखे रह जाएं, इसी तरह जीतन राम मांझी के पास जदयू का तीर रह जाए। ऐसे में वोटरों के बीच कन्फ्यूजन होगा। हमारे 10-15% वोट गड़बड़ा सकते हैं। यह बड़ी भयावह स्थिति होगी।
छह दल क्षेत्रीय श्रेणी के हैं। विलय के बाद बनने वाले नए दल का स्वरूप क्षेत्रीय ही रहेगा। जनता परिवार के नेताओं की चाहत थी कि विलय के बाद उनकी पहचान राष्ट्रीय दल के तौर पर हो। चुनाव आयोग के जानकारों से संपर्क किया गया। पता चला कि मौजूदा स्वरूप में विलय हुआ और राष्ट्रीय दल का दर्जा देने की मांग की गई तो पार्टी का नाम ही नहीं, निशान भी बदलना होगा।
राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए किसी भी दल को कम से कम चार राज्यों में विधानसभा का चुनाव लड़ना जरूरी होता है। सिर्फ चुनाव लड़ना ही काफी नहीं है। उसे कुल वैध मतों का छह फीसदी वोट भी हासिल होना चाहिए। जनता परिवार का कोई दल इस शर्त को पूरा नहीं करता है। निशान को लेकर सभी दलों में साइकिल पर सहमति बन गई थी। नाम पर चर्चा चल रही थी। विशेषज्ञों की राय थी कि पार्टी का नाम बदलेगा तो निशान भी बदलेगा। नया दल, अगर राष्ट्रीय हैसियत में आ जाता है, तब उसे साइकिल का मोह छोड़ना होगा। चुनाव आयोग में यह निशान क्षेत्रीय दलों के लिए निर्धारित है।