यूपी से मोदी ने किया सबका सफाया, BSP को 0, यादव-गांधी परिवार छोड़ SP और कांग्रेस भी खत्म
नरेंद्र मोदी ने अपना एक चुनावी वायदा आज ही निभा दिया. मोदी ने उत्तर प्रदेश की हर रैली में कहा था, ‘सबका साफ करो’. स से सपा, ब से बसपा और क से कांग्रेस. मोदी की लहर और उनके सेनापति अमित शाह का कहर. यूपी से बसपा, कांग्रेस और सपा तीनों साफ हो गए. बच गए तो बस कांग्रेस का गांधी परिवार और सपा का यादव परिवार. इनके अलावा सब हारे और बुरी तरह हारे. राज्य की दो अहम पार्टियां मायावती की बहुजन समाज पार्टी और चौधरी अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल तो खाता भी नहीं खोल पाई. बसपा के इतिहास में ये पहला मौका है, जब वह चुनाव में उतरे और जीरो पर अटके. और जिन चौधरी चरण सिंह की विरासत संभालने का क्या मुलायम क्या अजित सिंह, सभी दावा करते हैं, उन्हीं के पुत्र की पार्टी भी लोकसभा से गायब हो गई. जाहिर है कि इस रेकॉर्ड तोड़ जीत के बाद बीजेपी की निगाह विधानसभा चुनाव पर होगी, जिसकी सत्ता से वह 12 साल से दूर है.
रायबरेली ने रखा बहू का मान
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी अपना दल ने 73 सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस के हिस्से आईं दो सीटें- सोनिया गांधी रायबरेली से और उनके बेटे राहुल गांधी अमेठी से. सोनिया की जीत तो फिर भी सरल रही. उन्होंने बीजेपी के अजय अग्रवाल को 3 लाख 53 हजार वोटों से हराया. यहां के चुनाव को लेकर बीजेपी ज्यादा पापड़ भी नहीं बेल रही थी. आखिरी वक्त में वकील साहब को टिकट देकर भेज दिया. मोदी ने यहां रैली भी नहीं की.
राहुल गांधी के छूटे पसीने
अमेठी सीट की बात करें, तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के पसीने छूट गए. जिस अमेठी को गांधी परिवार अपनी बपौती समझता था, वहां इस बार राहुल की बहन प्रियंका को कैंप करना पड़ा. आलोचक तो यहां तक कहते हैं कि अमेठी से राहुल नहीं, प्रियंका गांधी जीती हैं. आंकड़ों की बात करें, तो राहुल गांधी 79 हजार वोटों से चुनाव जीते हैं. मगर हकीकत ये है कि बीजेपी ने चुनाव के ऐलान के काफी वक्त बाद यहां से मोदी आर्मी की अहम सिपाही स्मृति ईरानी को उतारा. कम समय में ही स्मृति ने जोरदार कैंपेनिंग की. आखिरी वक्त में मोदी की रैली ने उन्हें मुकाबले में ला खड़ा किया. पहली बार बीजेपी को यहां से जबरदस्त समर्थन मिला. स्मृति को 2 लाख 19 हजार वोट मिले.
यहां से सुर्खियां बटोरने वाले आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास की जमानत जब्त हो गई. इस दो सीटों के अलावा कांग्रेस इक्का-दुक्का जगहों पर ही मुकाबले में दिखी. मसलन, मोदी के खिलाफ जहरीला बयान देने वाले इमरान मसूद सहारनपुर में कुछ राउंड में आगे रहे और कुल मिलाकर दूसरे नंबर पर रहे. कहने को तो राज बब्बर भी दूसरे नंबर पर रहे. मगर वह जनरल वीके सिंह से साढ़े पांच लाख वोटों से पिछड़े.p>धज्जियां उड़ीं सत्तारूढ़ सपा सरकार की
अब बात उनकी जो मन से मुलायम और इरादे फौलादी होने का दावा करते हैं. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, जिनके बेटे अखिलेश उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हैं बतौर मुख्यमंत्री. मुलायम सिंह और अखिलेश का सपना था कि इन चुनावों में यूपी से इतनी सीटें जीतें कि अगर तीसरा मोर्चा नाम का कुनबा बने तो संख्याबल के दम पर नेता जी पीएम बन जाएं.
मगर सपना टूटा ही नहीं तार-तार हो गया. यूपी में सत्तारूढ़ सपा सिर्फ वहीं जीती, जहां मुलायम या उनके परिवार के लोग चुनाव लड़ रहे थे. बहू डिंपल यादव पिछली बार कन्नौज से निर्विरोध जीती थीं. इस बार हांफते हुए 22 हजार से जीतीं. खुद मुलायम मैनपुरी से तो आसानी से 3 लाख 65 हजार से चुनाव जीत गए. मगर आजमगढ़ में उनके पसीने छूट गए. आखिरी चरण में हुए इस चुनाव में मुलायम को बचाने के लिए पूरी सपा सरकार कैंप कर गई. फिर भी बीजेपी के रमाकांत यादव और बीएसपी के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने उन्हें कड़ी टक्कर दी. नेता जी आखिरी आखिरी तक प्रलोभन और वादों के सहारे टिके रहे और फिर 66 हजार से चुनाव जीते. जाहिर है कि उनके कद के नेता के हिसाब से ये अंक बेहद मामूली है. सपा को जो दो और सीटें मिलीं, वह भी परिवार के ही दो लोगों के पास गईं. फिरोजाबाद से मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव राजनीति में डेब्यू कर रहे थे. उनके लिए अरसे से सपा सरकार तैयारी कर रही थी. बीजेपी ने यहां बड़े पैमाने पर फर्जी मतदान के आरोप भी लगाए. अक्षय यादव लगभग 1 लाख 65 हजार वोटों से चुनाव जीते. मुलायम के एक और भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं सीट से 1 लाख 60 हजार वोटों से चुनाव जीते. और बस इसी के साथ पूरे विपक्ष की यूपी में सेवा समाप्त हो गई.
आम आदमी पार्टी का डब्बा हुआ गुल
आम आदमी पार्टी का खाता भी नहीं खुला और अरविंद केजरीवाल के अलावा इसका कोई भी कैंडिडेट जमानत भी नहीं बचा सका. बीएसपी वोट शेयर के मामले में तीसरे नंबर पर रही, मगर सीटों के मामले में वह भी तली पर. बाहुबली मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल, डॉ. अयूब की पीस पार्टी भी खाता नहीं खोल पाए. अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चैंपियन हुआ करती थी. अपनी मर्जी से कभी कांग्रेस, कभी सपा तो कभी बीजेपी के साथ गठजोड़ करती औऱ सत्ता की मलाई खाती. मगर इस बार उसने बुरी तरह मुंह की खाई. पार्टी के मुखिया और केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह बागपत में बीजेपी के सत्यपाल सिंह से बुरी तरह से हारे. उनके बेटे दुष्यंत सिंह भी मथुरा में बीजेपी की हेमा मालिनी से लाखों के अंतर से पस्त हुए