यहां 40 साल में सिर्फ एक बार खिला कमल, दिलचस्प सियासत
भोपाल। रतलाम की करारी हार के बाद मैहर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। जातिगत समीकरणों के फेर में उलटफेर करने वाली सीट पर आजादी के बाद केवल एक बार कमल खिला है। हमेशा भाजपा को तगड़ी हार नसीब हुई है, जबकि पिछले चालीस साल के इतिहास में कोई भी विधायक बनने के बाद लगातार दोबारा नहीं जीता है।
अब सवाल खड़ा हो गया है कि दल बदलकर भाजपा से टिकट लेने वाले नारायण त्रिपाठी क्या मिथक को तोड़ पाएंगे। सतना जिले की इस सीट पर हमेशा चौंकाने वाले परिणाम आते रहे हैं।
भाजपा केवल एक बाद शिवराज की आंधी में वर्ष 2008 में जीत हासिल कर पाई है। मैहर में वर्ष 1956 के बाद से अब तक 13 चुनाव हुए हैं। सबसे पहले वर्ष 1957 में कांग्रेस के टिकट पर गोपाल शरणसिंह जीते थे। सिंह ने 1962 और 1967 में भी जीत तर्ज हासिल की।
एकमात्र सिंह ऐसे नेता रहे, जो तीन बार लगातार सीट पर काबिज रहे। इसके बाद चुुनावी मिजाज बदल गया। वर्ष 1972 के बाद जनता का भरोसा डगमगाता रहा। कोई नेता लगातार दोबारा नहीं जीता। यहां से लालजी पटेल को कांग्रेस के टिकट पर जिताया गया। अगले चुनाव 1977 में नारायण सिंह जनता पार्टी से जीत गए। तीन साल बाद 1980 में कांग्रेस के विजय नारायण ने जीत का परचम फहराया।
निर्दलीय भी जीते लालजी
1985 में लालजी पटेल को टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय लड़कर जीत गए। जनता ने 1990 में जनता दल से नारायण सिंह को चुन लिया। केवल तीन साल बाद बाजी पलटी। कांग्रेस ने 1993 में मथुरा प्रसाद पटेलको लड़ाया। वे जीत गए, लेकिन पार्टी ने 5 साल बाद 1998 में वृंदावन बडग़ेया को टिकट दिया। वर्ष 2003 में नारायण त्रिपाठी सपा के टिकट पर जीत गए। सपा की जीत के बाद अगले चुनाव में 2008 में मोतीलाल तिवारी ने भाजपा से लड़कर नारायण को पटखनी दे दी। 5 साल बाद समीकरण फिर बदल गए। कांग्रेस के टिकट पर नारायण चुनाव जीत गए। अब भाजपा के टिकट पर नारायण भाग्य आजमा रहे हैं, लेकिन मिथक वे भितरघात के भंवर में भी फंस चुके हैं।
शिवराज ने संभाला मैदान
मंगलवार से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मैदान संभाल लिया है। चौहान के चेहरे और उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी की मैदानी सक्रियता के दम पर पार्टी चुनाव जीतने का दावा कर रही है। सीएम ने कार्यकर्ताओं की बैठक लेकर विकास के एजेंडा को वोटरो तक पहुंचाने का संकल्प दिलाया। पार्टी ने रतलाम चुनाव से सबक लेने के बाद मंत्रियों के हवाई दौरों पर भी रोक लगा दी है। ऐसी रणनीति बनाई है कि मंत्री कम पहुंचें। सारा चुनाव स्थानीय के दम पर लड़ा जा रहा है।