मुस्लिम आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. नौकरी में मराठा और मुस्लिमों को आरक्षण दिए जाने के महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश पर हाईकोर्ट की रोक के बाद फडनवीस सरकार ने मंगलवार को आनन फानन में विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पेश कर दिया. बीजेपी-शिवसेना सरकार द्वारा लाया गया यह बिल सदन में पास तो हो गया, लेकिन विपक्ष ने सरकार को मुस्लिमों के लिए आरक्षण पर कुछ नहीं करने के लिए घेरा. अब राज्य सरकार इस बिल को बुधवार को विधान परिषद से पास कराने की तैयारी कर रही है ताकि कोर्ट को जानकारी दी सके कि सरकारी नौकरी व शिक्षा संस्थानों में मराठियों को 16 फीसदी आरक्षण मिलेगा.

आपको बता दें कि महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले अध्यादेश जारी किया था, जिसमें नौकरी और शिक्षा में मराठियों को 16 फीसदी और मुसलमानों को पांच फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है.

हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने 14 नवंबर को अपने आदेश में अध्यादेश के लागू होने पर रोक लगा दिया था, लेकिन मुसलमानों को सिर्फ शिक्षा में पांच फीसदी आरक्षण दिए जाने को बरकरार रखा था. इस अध्यादेश के 6 महीने 25 दिसंबर को पूरे हो रहे हैं. अध्यादेश के निरस्त होने से पहले सरकार मराठा आरक्षण बिल को पास करा लेना चाह रही है.

सरकार की यही रणनीति विपक्ष के निशाने पर आ गई है. एनसीपी और कांग्रेस मुस्लिम आरक्षण को लेकर फडनवीस सरकार के रवैये पर सवाल उठा रही है. कोर्ट ने मुसलमानों को शिक्षा में पांच फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले को बरकरार रखा था, इस संबंध में सरकार द्वारा कोई बिल नहीं लाए जाने से यह अध्यादेश निरस्त हो जाएगा. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी सरकार ने ऐसा जानबूझकर किया है.

महाराष्ट्र विधानसभा के नेता विपक्ष राधाकृष्ण विशखे ने कहा, ‘फडनवीस सरकार जानबूझकर मुस्लिम आरक्षण बिल लेकर नहीं आई. कोर्ट ने भी शिक्षा में मुस्लिमों के लिए आरक्षण को बरकरार रखा था. सरकार को मराठा आरक्षण बिल के साथ मुस्लिम आरक्षण बिल भी लाना चाहिए था.’ वहीं एनसीपी नेता अजित पवार का कहना है कि जब से मोदी सरकार आई है, बीजेपी पूरे देश में हिंदू राष्ट्र का विचार थोंप रही है.विपक्ष के जोरदार हमले के बीच फडनवीस सरकार इस मुद्दे पर चुप है. वह मुस्लिम आरक्षण पर कुछ भी कहने से बच रही है.