भोपाल। मिलावटी दूध और अन्य पेय सामग्री बेचने वालों को आजीवन कारावास देने का पहले से कानून होने के बावजूद मप्र सरकार ने फिर से नए कानून बनाने का प्रस्ताव एक साल पहले विधानसभा से पारित करवा लिया। इसका खुलासा तब हुआ जब इस विधेयक को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ये कहते हुए लौटा दिया कि मिलावट करने वालों पर कार्रवाई करने के लिए पहले से दंड प्रक्रिया संहिता 1973 का कानून बना हुआ है।

उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए स्वास्थ्य विभाग और खाद्य नियंत्रण में इसके प्रावधान पहले से हैं। ऐसे में बगैर देखे समझे विधानसभा में नया विधेयक पारित कर क्यों भेजा? गलती का अहसास होते ही सरकार ने आनन-फानन में कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव लाकर इसे निरस्त करवाया।

मुख्य सचिव की अध्यक्षता में वरिष्ठ सचिव समिति में मौजूद वरिष्ठ अफसरों ने कानूनी मसौदे का परीक्षण कर कैबिनेट में लाने की मंजूरी दी थी, वहीं सरकार को कानूनी सलाह देने वाले विधि विभाग ने भी इस कानून को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। मजेदार बात ये है कि दंड विधि संशोधन विधेयक 2014 का प्रस्ताव ही विधि विभाग ने तैयार कर पहले कैबिनेट और बाद में विध्ाानसभा में पारित कराया था। सरकार ने जब इस विधेयक को कानून का रूप देने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा था। इस पर राष्ट्रपति भवन ने प्रस्तावित कानून को गृह मंत्रालय भेजकर परीक्षण कराया। तब पता चला कि 1973 से यह कानून लागू है। ऐसे में अलग से नया कानून बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। राज्य सरकार की इस लापरवाही को लेकर राष्ट्रपति भवन ने टिप्पणी भी की है।

जल्दबाजी में बना था विधेयक

विधि विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दूध और इसके उत्पादों में सिंथेटिक और हानिप्रद सामग्रियों की मिलावट करने पर तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि मिलावटी खाद्य-पेय सामग्री को मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताते हुए कहा था कि इससे कैंसर तक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के राज्य का हवाला देते हुए सभी राज्यों को मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास का कानून बनाने के निर्देश दिए थे। इसके आधार पर राज्य सरकार के आला अफसरों ने पुराना कानून देखे बगैर आनन-फानन में नए कानून का प्रस्ताव बनाकर विधेयक पारित करवा लिया।

सीधी बात

कुसुम महदेले, विधि एवं विधायी कार्यमंत्री

प्रश्न- कानून बनाते समय परीक्षण नहीं किया जाता।

उत्तर- नहीं ऐसा नहीं है, हर मामले का अध्ययन कर ही नया कानून बनाया जाता है।

प्रश्न – तो फिर ये विधेयक पारित कराने से पहले क्यों नहीं देखा गया।

उत्तर- देखा था, हमने सोचा नया कानून बना लें। इसलिए विधानसभा से इसे पारित कराया था।

प्रश्न – यदि ऐसा है तो राष्ट्रपति ने कानून के प्रस्ताव को क्यों लौटाया।

उत्तर- राष्ट्रपति भवन ने इस मामले में गृह मंत्रालय से जानकारी ली थी, तो उन्होंने बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में पहले से ही आजीवन कारावास का प्रावधान है। स्वास्थ्य और खाद्य विभाग में भी मिलावटियों पर कार्रवाई करने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि जब पहले से कानून है तो नया बनाने की आवश्यकता नहीं है।