कभीकिसी इंस्टीट्यूट से मैनेजमेंट की शिक्षा ली। कभी किसी बड़े स्कूल गया। फिर भी देश की चुनिंदा कंपनियों के मैनेजर्स एवं आईआईएम इंदौर के विद्यार्थियों को इनोवेशन की बारीकियां सिखाएगा। 33 साल की उम्र में उसने दुनिया को समझा दिया कि कला किसी डिग्री की मोहताज नहीं होती। हम बात कर रहे हैं मंदसौर से 11 किलोमीटर दूर स्थित सोनगिरी के वाजिद खान की। जो अब तक करीब 200 से अधिक नवाचार कर चुके हैं। उनके नेल आर्ट का लोहा दुनिया मान चुकी है। वे विश्व के पहले ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने नेल आर्ट पेटेंट कराया है।

8मार्च को देंगे लेक्चर-वाजिद 8मार्च को आईआईएम इंदौर में आयोजित समारोह में लेक्चर देंगे। वे विद्यार्थियों देश की चुनिंदा कंपनियों के मैनेजर्स को नवाचार के विषय में जानकारी देंगे।

आज यहां है वाजिद

{गिनीजबुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड,

{लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड,

{इंडिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड,

{एशिया बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में

इसके अलावा वाजिद का नाम जहाज के आर्ट के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए भी प्रस्तावित है।

ऐसेशुरू हुआ सफर

वाजिदने बताया वे बचपन से पढ़ाई में कमजोर था। पांचवीं में फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद शुरू हुआ साधारण चीजों से असाधारण चीजें बनाने का सिलसिला। शुरुआत दुनिया की सबसे छोटी प्रेस बनाने से हुई। इसके बाद मां से 1300 रुपए लेकर रोबोट बनाया। 1998 में थर्माकोल आर्ट बनाना शुरू किया जिसे सभी ने सराहा। इसके बाद छोटी-छोटी कीलों से इंसानी चेहरे उकेरे। इस कला में महारत हासिल की। 2005 में इसी नेल आर्ट से महात्मा गांधी का पोट्रेट पूरा किया। इसी दौरान उन्होंने पहली थ्री डी पेंटिंग बनाई। 2009 में नेल आर्ट में पहचान बनाई