पूर्वोत्तर भारतीय राज्य असम में बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों को बसाने और उन्हें नागरिकता देने के सरकार के फ़ैसले का विरोध ज़ोर पकड़ रहा है.

असम में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता संभाले मुश्किल से ढाई महीने हुए हैं.

एक तरफ़ कृषक मुक्ति संग्राम समिति के कार्यकर्ता नागरिकता और उन्हें असम में बसाये जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ बेमियादी भूख हड़ताल पर हैं. तो ऑल असम स्टूडेंट यूनियन नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 की प्रतियां को आग दिखा रहा है.

असमिया समाज के सबसे बड़े साहित्यिक संगठन असम साहित्य सभा ने भी बांग्लादेश के हिंदू शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने पर विरोध जताया है.

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संगठनों का कहना है कि असम हिंदू बांग्लादेशियों का बोझ नहीं उठाएगा. यानी 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहां से जाना होगा, चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान.

नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पड़ोसी मुल्क ख़ास कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के तहत भारत आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देन से जुड़ा विधायक है. यह फिलहाल संसद की संयुक्त समिति के पास विचाराधीन है.

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के मुख्य सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्या का कहना है, “असम 1971 के बाद यहां आने वाले हिंदू बांग्लादेशियों, मुस्लिम बांग्लादेशियों का बोझ नहीं सहेगा.”

विरोध करने वाले संगठों का कहना है कि नागरिकता अधिनियम में संशोधन के साथ ही बांग्लादेश से करीब पौने दो करोड़ हिदुओं का यहां प्रवेश के लिए मार्ग प्रशस्त हो जाएगा.

उनके अनुसार अपने सीमित भौगोलिक क्षेत्र के साथ असम ने पहले से ही 1951 से 1971 तक कई प्रवासियों को बांग्लादेश से स्वीकार किया है. इससे अधिक अब और स्वीकार्य नहीं है.

हालांकि इस मुद्दे पर असम सरकार का रुख़ बिलकुल विपरीत है.

सूबे के लोक निर्माण मंत्री परिमल शुक्ल वैद्य कहते हैं, “पहले देखना पड़ेगा कि विभाजन के बाद यहां कितने लोग आए. कोई हिंदू है, कोई बंगाली है, इसमें उनकी कोई गलती नहीं. बंगाली हिंदू होने से वे असम में रह नहीं सकते, ऐसा क्या है?”लगातार तीन बार राज्य की सत्ता में रही कांग्रेस बांग्लादेशी शरणार्थी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के पक्ष में तो है लेकिन वह भी विरोध करने वाले संगठनों की भाषा बोल रही है.

असम प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता अपूर्व भट्टाचार्य का कहना है, “सरकार ऐसी क़ानून व्यवस्था बनाए जो भारत में रहने वाले हर भारतीयों को अपनी लगे, और असम में रहने वाली हमारी जो जातियां-जनजातियां हैं, उनको भी तकलीफ़ ना हो.”

यह भी सच है कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 विधेयक के पास होने के बाद भारत आने वाले शरणार्थियों को बड़ी राहत मिलेगी.

लेकिन बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों का बोझ अगर केवल असम पर डाला गया तो आने वाले समय में ये समस्या बन सकती है.