वाशिंगटन। एक पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक का कहना है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे जटिल क्षेत्र है और इस अशांत प्रांत के कई हिस्से ऐसे हैं जिन पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने ‘द अटलांटा’ पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे जटिल क्षेत्र है और दुर्भाग्यवश लोग वहां समस्याओं को सरल करने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तानी सेना की गलतियों या सत्ता में मौजूद लोगों के भ्रष्टाचार या राष्ट्रवादियों या तालिबान की मौजूदगी के बारे में ही नहीं है। यह इन सभी चीजों के बारे में है। हक्कानी ने कहा कि बलूचिस्तान के कई हिस्सों पर पाकिस्तान की केंद्र सरकार का नियंत्रण नहीं है।

उन्होंने कहा कि मूल निवासी बहुल बलूच हिस्सों में उन राष्ट्रवादियों के लिए बहुत सहानुभूति है जो एक स्वतंत्र या स्वायत्त बलूचिस्तान देखना चाहते हैं। हक्कानी ने कहा कि सेना उन्हें दबाने की कोशिश करती है और वह कई बार धार्मिक अतिवादियों की मदद से ऐसा करती है।pti-balochistan-rally-imran-khan

हक्कानी ने कहा कि इसके अलावा प्रांत में चयनित सरकार को सार्थक जनादेश नहीं मिला क्योंकि बलूच पार्टियों ने पिछले चुनाव का बहिष्कार कर दिया था और कई लोगों को 10, 12 प्रतिशत और कुछ स्थानों में 15 प्रतिशत मतदान के साथ चुना गया इसलिए अधिकतर बलूच इन राजनीतिक दलों को इस्लामाबाद की कठपुतलियों की तरह देखते हैं। उन्होंने बलूचिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि यह देश के निर्माण के समय की बात है जब भारत का मुस्लिम बहुल हिस्सा उससे अलग होकर पाकिस्तान बना था।

हक्कानी ने कहा कि कुछ बलूच नेताओं का कहना है कि बलूचिस्तान को पाकिस्तान में जबरन शामिल किया गया था लेकिन इससे जरूरी बात, इसे नजरअंदाज किया जाना है। वह संसाधन समृद्ध प्रांत है लेकिन वहां के लोगों को इन संसाधनों का कोई लाभ नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना के पास इस बात की स्पष्ट परिषाभा होनी चाहिए कि वह किसे शत्रु समझती है।

उन्होंने कहा कि जिहादियों के किसी एक समूह को मदद देने और अन्यों के खिलाफ लड़ने के बजाए, उसे सभी जिहादियों और अतिवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

हक्कानी ने कहा कि उसे बलूच राष्ट्रवादियों के साथ सुलह प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता है। वे पाकिस्तान के ऐसे नागरिक हैं जिन्हें लगता है कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है और इसलिए वे अशांत और नाखुश हैं। अधिक बलों की तैनाती से हिंसा केवल और बढ़ेगी। इससे यह खत्म नहीं होगी।