पहले अलग-थलग, फिर समझौता करने की रणनीति से जीएसटी पर सफल हुए मोदी
नई दिल्ली
आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डील पक्की करने की कला खोज ही ली लेकिन उन्हें पूरे दो साल लग गए। सरकार और बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि जब महसूस हुआ कि आमने-सामने की लड़ाई से देश के सबसे बड़े टैक्स रिफॉर्म को पास कराने का जरूरी आंकड़ा नहीं जुट रहा है तो पीएम मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तरीका बदल दिया। पहले उन्होंने उस कांग्रेस पार्टी को ठिकाने लगाने के लिए सभी 29 राज्यों को एक साथ किया जिसने 2014 में मोदी से बुरी तरह हारने के बाद भी राज्यसभा में जीएसटी का रास्ता रोक रखा था।
वित्त मंत्री के करीबी सूत्रों ने कहा जेटली ने कांग्रेस नेताओं के साथ लगातार कई बैठकें कीं। हालांकि, वोटिंग के आखिरी मौके तक संदेह बरकरार रहा। वहीं, कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि जेटली कांग्रेस नेताओं की मांग के आगे झुके। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘बातचीत तभी साकार होती है जब दोनों पक्ष लचीले हों। जीएसटी पर भी दोनों पक्षों ने व्यावहारिक रवैया अपनाया।’
वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि कांग्रेस लगातार अलग-थलग पड़ रही थी। इसी वजह से वह समझौता संभव हो सका। उन्होंने कहा, ‘वह बिल्कुल अकेले पड़ गयी। उनके पास दो विकल्प थे- या तो समझौता कर अपनी साख बचाते या फिर अपनी विश्वसनीयता को दांव पर लगाते।’ पिछले हफ्ते राज्यसभा में यह 122वें संविधान संशोधन बिल को भरपूर समर्थन मिला। पी चिदंबरम ने 10 साल पहले इस बिल का प्रस्ताव रखा था लेकिन तब राजनीतिक दलों की खींचतान के चलते पास नहीं हो पाया था। 30 साल बाद अकेले दम पर केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को अपना अजेंडा आगे बढ़ाने में संघर्ष करना पड़ रहा है। कांग्रेस के मुट्ठीभर सांसद सरकार के सामने मजबूती से डटे रहते हैं। राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से कांग्रेस ने जीएसटी बिल को रोके रखा और भूमि अधिग्रहण बिल की राह में भी बाधा पैदा की।




