नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए कांग्रेस का हाथ अरविंद केजरीवाल साथ
आम राजनीतिक समझ यही कहती है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के समर्थन देने के पीछे कोई तुक नहीं है.आखिरकार AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी और भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों के दम पर ही जीत का परचम लहराया. जाइंट किलर केजरीवाल ने तो दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उनके घर में धूल चटाई. इन सबके बाद केजरीवाल ने ये उम्मीद कभी नहीं की होगी कि सरकार बनाने के लिए उन्हें कांग्रेस बिना शर्त समर्थन देगी.
आखिर कांग्रेस इतनी उदार क्यों हो गई? यह उस आत्मचिंतन का नतीजा तो नहीं जिसका जिक्र राहुल गांधी ने विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद किया था या फिर इसके पीछे भी है कोई सियासी चाल? ऐसा लगता है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के हाथों मिली करारी हार के बाद कांग्रेस नेताओं ने पार्टी का भविष्य देख लिया है. उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि 2014 में पार्टी की हार तय है. कोशिश यही है कि मुख्य विरोधी नरेंद्र मोदी की जीत के दायरे को कम किया जाए, और इसी वजह से कांग्रेस आम आदमी पार्टी को बढ़ावा दे रही है. उम्मीद यह है कि एंटी करप्शन मुद्दे पर मतदाताओं के दिल में छाप छोड़ने वाले केजरीवाल खासकर शहरी क्षेत्रों में बीजेपी के वोट शेयर में सेंध लगाने में कामयाब होंगे.
दरअसल, 2009 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चल जाता है कि आखिर कांग्रेस क्या हासिल करना चाहती है. चुनावों से पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सुप्रीमो राज ठाकरे लगातार उत्तर भारतीयों को मुंबई छोड़कर जाने और मराठी मानुष की इज्जत करने की धमकी दे रहे थे. गिरफ्तारी की भारी मांग के बावजूद कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने राज ठाकरे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. नतीजतन एमएनएस कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ता गया, उन्होंने मुंबई और आसपास के इलाकों में जमकर हंगामा मचाया. कभी दुकानों को बंद करवाया और तो कभी टैक्सी चलाने वाले उत्तर भारतीयों पर हमले किए.
कांग्रेस-एनसीपी सरकार राज ठाकरे को गिरफ्तार कर सकती थी, बड़ी आसानी से इस हिंसा पर रोक लगा सकती थी ताकि एमएनएस कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश जाए. लेकिन, सरकार ने जानबूझकर राज ठाकरे को मराठी मानुष का चैंपियन बनने दिया. पुलिस ने तब तक राज ठाकरे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जब तक कोर्ट ने दखल नहीं दिया. लेकिन तब तक एमएनएस सुप्रीमो मीडिया में हुई इस पब्लिसिटी के जरिए मराठी मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचा चुके थे.
इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में शिवसेना के गढ़ में एमएनएस ने जबरदस्त सेंधमारी की. शहरी इलाकों में पार्टी पर बड़ी संख्या में मराठी वोटरों ने भरोसा दिखाया. नतीजा यह हुआ कि बीजेपी-शिवसेना गठबंधन 11 में से 10 सीट हार गया, जिसपर एमएनएस ने अपना उम्मीदवार उतारा था. मुंबई, ठाणे, नासिक, भिवंडी और पुणे की 6 सीटों पर तो कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के उम्मीदवारों के जीत का अंतर एमएनएस उम्मदीवार को मिले वोट से कम था. काल्पनिक तौर पर देखें तो अगर एमएनएस चुनाव नहीं लड़ती तो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन 10 और सीटें जीतता.
सीट | कांग्रेस-एनसीपी | बीजेपी-शिवसेना | अंतर | एमएनएस |
1. मुंबई साउथ | 2,72,411 | 1,46,118 | 1,26,293 | 1,59,729 |
2. मुंबई साउथ सेंट्रल | 2,57,165 | 1,81,524 | 75,641 | 1,08,272 |
3. मुंबई नॉर्थ सेंट्रल | 3,19,352 | 1,44,797 | 1,74,555 | 1,32,555 |
4. मुंबई नॉर्थ ईस्ट | 2,13,505 | 2,10,572 | 2,933 | 1,95,148 |
5. मुंबई नॉर्थ वेस्ट | 2,53,899 | 2,15,484 | 38,415 | 1,23,885 |
6. मुंबई नॉर्थ | 2,55,157 | 2,49,378 | 5,779 | 1,47,502 |
7. नासिक | 2,38,693 | 1,58,239 | 80,454 | 2,16,661 |
8. भिवंडी | 1,82,781 | 1,41,416 | 41,365 | 1,07,085 |
9. ठाणे | 3,01,000 | 2,51,980 | 49,020 | 1,34,840 |
10. पुणे | 2,79,973 | 2,54,272 | 25,701 | 73,930 |
महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी को 48 में से 25 सीटें मिली वहीं बीजेपी-शिवसेना को 20 सीटों से संतोष करना पड़ा. अगर एमएनएस उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया होता तो बीजेपी-शिवसेना को 30 सीटें मिलती और कांग्रेस-एनसीपी को महज 15 सीट, जिससे राज्य का राजनीतिक समीकरण ही बदल जाता.
अपने मुख्य विरोधी के वोट शेयर में सेंध लगाने के लिए एक और विरोधी को आगे बढ़ाने की रणनीति बेहद ही कुटिल और खतरनाक होती है. ये सियासी चाल कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा रही है. अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस आम आदमी पार्टी के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी का शिकार कर सकेगी? इसके बारे में इंडिया टुडे ग्रुप ने देश के जाने-माने चुनाव विश्लेषकों से बात की.
सी वोटर के चीफ एडिटर यशवंत देशमुख ने कहा, ‘आम आदमी पार्टी मिडिल क्लास फिनोमेनन है और मिडिल क्लास अब सिर्फ शहरों में नहीं बसता. लगभग 200 सीटों पर मिडिल क्लास का बड़ा शेयर है. अचानक ही इन सीटों पर लड़ाई मजेदार हो गई है. अगर पूरे देश में AAP का वोट शेयर 5 फीसदी रहा तो वो बीजेपी को 50 सीटों पर नुकसान पहुंचाएगी. अगर उन्हें 10 फीसदी वोट शेयर मिले तो बीजेपी को 100 सीटों पर झटका लगेगा, और इन सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस बीच कांटे की टक्कर हो सकती है. लेकिन आम आदमी पार्टी ने 15 फीसदी वोट शेयर हासिल कर लिए तो इन सीटों पर पार्टी की जीतने की संभावना बढ़ जाती है, जैसा दिल्ली में हुआ.’
वहीं, सीएसडीएस से जुड़े हुए प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, ‘शहरी क्षेत्रों में मोदी की तुलना में अरविंद केजरीवाल आकर्षक विकल्प के तौर पर उभरे हैं. AAP निश्चित तौर पर मोदी की लोकप्रियता में सेंधमारी करेगी लेकिन इसका असर शहरी क्षेत्रों में पड़ने वाले वोटों में होगा न कि बीजेपी के सीट शेयर में. AAP की वजह से बीजेपी लोकसभा में 5 से 7 सीटें हार सकती हैं, उससे ज्यादा नहीं.’
ऑक्सस इनवेस्टमेंट के चेयरमैन सुरजीत भल्ला कहते हैं, ‘अगर AAP का वोट शेयर दिल्ली चुनावों में मिले वोट के अनुपात में रहा तो वो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगी. मेरा अनुमान है कि 300 शहरी संसदीय क्षेत्रों में AAP 7 सीटों पर जीत हासिल करेगी जो शायद बीजेपी के खाते में जाते.’
नरेंद्र मोदी और बीजेपी हाईकमान शहरी पॉकेट में उसके वोट शेयर में AAP द्वारा सेंधमारी लगाए जाने की संभावना को लेकर काफी चिंतित है. इस बाबत हर बैठक में पार्टी के नेता केजरीवाल फैक्टर पर जमकर माथापच्ची कर रहे हैं.
हालांकि, सार्वजनिक तौर पर वे आम आदमी पार्टी की चुनौती को दरकिनार करते हैं. चुनाव विश्लेषक और बीजेपी के राष्ट्रीय चुनाव प्रबंधन समिति के सदस्य जीवीएल नरसिंहा राव ने इंडिया टुडे ग्रुप को बताया, ‘कांग्रेस ने वोट कटवा रणनीति का इस्तेमाल 2009 के चुनावों में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में सफलतापूर्वक किया. लेकिन इसके बाद यह रणनीति पंजाब में मनप्रीत बादल की पीपीपी और गुजरात में केशुभाई पटेल के साथ फ्लॉप रही.
इस बार यह मैसेज गया है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ है. इसलिए AAP राष्ट्रीय परिदृश्य में कांग्रेस विरोधी वोटों का फायदा नहीं उठा सकेगी. अब AAP भी सिस्टम का हिस्सा है इसलिए अब वे दिल्ली के बाहर बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती नहीं हैं. अगर आने वाले कुछ महीनों में दिल्ली की सरकार अच्छा काम नहीं करती तो लोग निराश हो जाएंगे. इसके बाद वे दिल्ली में भी मोदी के लिए चुनौती नहीं रहेंगे.’
हालांकि कांग्रेस उस पूरी थ्योरी को खारिज कर रही है जिसके मुताबिक मोदी को मात देने के लिए पार्टी अरविंद केजरीवाल का साथ दे रही है. सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, ‘कांग्रेस ने AAP को इसलिए समर्थन दिया ताकि दिल्ली के लोगों के ऊपर एक बार फिर चुनाव नहीं थोपा जाए. हालांकि यह अवधारणा कि किसी एक शख्स को राष्ट्रीय चुनाव में मात देने के लिए हमने ये सियासी चाल चली, बिल्कुल गलत है. बिना दूसरों की मदद के कांग्रेस में अपनी लड़ाई खुद लड़ने की क्षमता है.’
आम आदमी पार्टी भी इन आरोपों को खारिज कर रही है कि उनके और कांग्रेस के बीच मैच फिक्स है. AAP के वरिष्ठ नेता और जाने-माने चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इंडिया टुडे ग्रुप से कहा, ‘ये दक्षिण दिल्ली के किसी कांग्रेस नेता की ड्राइंग रूम थ्योरी है, जिसमें तनिक भी सच्चाई नहीं. कांग्रेस ही क्या और आम आदमी पार्टी को भी ये नहीं पता कि आने वाले समय में ये नई पार्टी किसके वोट काटेगी. बिना किसी सबूत के ये थ्योरी एक मजेदार सियासी गुगली से ज्यादा कुछ भी नहीं.’
चुनावी इतिहास गवाह है कि जब भी कांग्रेस ने किसी राज्य में नजदीकी फायदे के लिए एक क्षेत्रीय पार्टी को तवज्जो दी है, इसका नुकसान हमेशा ही पार्टी को हुआ है. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पंगू हो चुकी कांग्रेस ने इस बार अपने विरोधी से हाथ मिलाया है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी इस दौरान एक ऐसा हौवा न बना दे जो उसके लिए ही खतरा बन जाए.