कानून-व्यवस्था से कोई समझौता न करने के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एलान के 24 घंटे के भीतर ही डीजीपी एएल बनर्जी ने दुष्कर्म और हत्याओं के सवाल पर यह कहकर फिर पुलिस की किरकिरी करा दी कि ‘ये रूटीन घटनाएं हैं’। देश की सबसे बड़ी पुलिस का आला अफसर अगर जघन्य और निंदनीय घटनाओं पर इतना सतही बयान दे तो जाहिर है कि अपराधियों का मनोबल तोड़ा नहीं जा सकता।

पुलिस हनक और इकबाल से चलती है। पुलिस की वर्दी अपराधियों का मनोबल तोड़ती है और उसका एक डंडा ही अपराधियों के हथियारों पर भारी पड़ता है। अगर सूबे के डीजीपी को दुष्कर्म रूटीन घटना लग रही है तो सवाल उठना लाजिमी है कि कानून कितना भी सख्त बन जाए, इसका पालन कैसे होगा। बनर्जी ने इस साल की शुरुआत से ही सूबे की पुलिस की कमान संभाली है। उनके कार्यभार ग्रहण करने के बाद चुनाव आ गया और करीब पांच माह का कार्यकाल चुनावी माहौल में बीत गया, पर चुनाव के बाद से सूबे में जिस तरह चौतरफा दुष्कर्म और हत्याओं की घटनाएं शुरू हुईं, उससे प्रदेश में दहशत का माहौल बन गया। इन पर अंकुश के बजाए पुलिस अपना दामन बचाने और येन-केन प्रकारेण घटनाओं का राजफाश करने में जुट गई।

बदायूं कांड में भी डीजीपी ने ऐसा ही बयान दिया जिससे पूरी कहानी उलझ गई। हो सकता है कि घटना में कुछ पेंच हो, लेकिन बिना जांच के ही डीजीपी ने आनर किलिंग, संपत्ति विवाद और आरोपियों को ही क्लीन चिट देने का माहौल बना दिया। बेहतर होता कि वह जांच का इंतजार करते या सीबीआइ जांच पूरी होने का इंतजार करते। डीजीपी के इस बयान के बाद पुलिस कोई नया तथ्य भले न पेश कर सकी, लेकिन अगले ही दिन से दुष्कर्म की घटनाओं में और तेजी आ गई। अब सवाल डीजीपी की काबिलियत पर ही है। सच तो यह भी है कि मातहतों पर उनका नियंत्रण नहीं है और वह जो भी दिशा निर्देश देते हैं, वह नीचे तक असर नहीं करता है। बानगी के तौर पर बनर्जी ने सभी एसएसपी को रात में 12 बजे से दो बजे तक गश्त के निर्देश दिए और जब वह अपने प्रभाव का आकलन करने निकले तो उन्हें निराशा मिली। मातहतों ने उनके फरमान की अनसुनी कर दी।

मुख्यमंत्री को भी डीजीपी की इस सच्चाई का भान हो गया है। इसीलिए कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बुलाई गई बैठक में मुख्यमंत्री ने उनसे दो टूक पूछा कि बदायूं की घटना की सूचना कब मिली। इतना संवेदनशील मुददे पर भी मातहत डीजीपी को सूचनाएं मुहैया नहीं कराते। यह भी कितनी बड़ी विसंगति है कि बदायूं में पीड़ित परिवार जो कह रहा है, पुलिस उसे सुन नहीं रही है। दादरी की चेयरमैन गीता पंडित अपने पति की हत्या के लिए जिसे जिम्मेदार ठहरा रही हैं, उसे पुलिस क्लीन चिट दे रही है। इससे तो यही लगता है कि पुलिस ही अपराधियों को बचा रही है।