वॉशिंगटन। जीका वायरस का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जीका वायरस के संक्रमण को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें तेज करनी होंगी। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए जिनेवा में संगठन की एक आपात बैठक हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया।

बीबीसी के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों का कहना है कि जीका वायरस तेजी से फैल रहा है। आशंका है कि उत्तर और दक्षिण अमेरिकी महाद्वीपों में इस साल इसके 40 लाख मामले सामने आ सकते हैं।

अधिकतर मामलों में इस संक्रमण के लक्षण दिखाई नहीं देंगे, लेकिन इसका असर बच्चों के दिमाग पर पड़ सकता है।

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ये हैं बीमारी के लक्षण

इस बीमारी से सबसे ज़्यादा ख़तरा गर्भवती महिलाओं को है, क्योंकि इसके वायरस से नवजात शिशुओं को माइक्रोसिफेली होने का खतरा है।
इसमें बच्चों के मस्तिष्क का पूरा विकास नहीं हो पाता और उनका सिर सामान्य से छोटा रह जाता है।
बच्चों और बड़ों में इसके लक्षण लगभग एक ही जैसे होते हैं, जैसे बुखार, शरीर में दर्द, आंखों में सूजन, जोड़ों का दर्द और शरीर पर रैशेस हो जाते हैं।
कम मामलों में यह बीमारी नर्वस सिस्टम को ऐसे डिसऑर्डर में बदल सकती है, जिससे पैरलिसिस भी हो सकता है।
यह है इस वायरस का इतिहास

यह वायरस सबसे पहले यूगांडा के जीका जंगलों के बंदरों में वर्ष 1947 में पाया गया। इसके बाद ही इसका नाम जीका वायरस पड़ा था। 1954 में पहली बार किसी इंसान के अंदर ये वायरस देखा गया। 2007 में माइक्रोनेशिया के एक द्वीप याप में इस वायरस ने बड़ी तेजी से पैर पसारे और फिर यह वायरस कैरीबियाई देशों और लेटिन अमेरिका के देशों में फैल गया।

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