मेलबर्न। एक नए शोध ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के प्रति चेताया है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस होने पर अंटार्कटिका की बर्फ की चादरें पिघलने लगेंगी। इससे सैकड़ों और यहां तक कि हजारों वर्षों तक समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होगी।

विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के अंटार्कटिक शोध से जुड़े डॉ. निकोलस गॉलेज के नेतृत्व वाली टीम ने पता लगाया कि भविष्य में तापमान बढ़ने से किस तरह अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों पर प्रभाव पड़ेगा। अत्याधुनिक कंप्यूटर के जरिये उन्होंने विभिन्न परिदृश्यों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से होने वाले तापमान वृद्धि के प्रभाव का पता लगाया। उन्होंने पाया कि एक परिदृश्य में अंटार्कटिका की बर्फ की चादर का एक बड़ा हिस्सा पिघल जाएगा। इससे पूरे विश्व में समुद्र का जलस्तर काफी बढ़ेगा।

गौरतलब है कि यह परिदृश्य 2020 से आगे उत्सर्जन कम करने वाला है। गॉलेज ने बताया कि पर्यावरण स्थिति में बदलाव का अंटार्कटिक की बर्फ की चादरों पर प्रभाव पड़ने में हजारों साल लग सकते हैं। इसका कारण है कि कार्बन डायऑक्साइड वातावरण में बहुत लंबे समय तक बना रहता है।

संयुक्त राष्ट्र की आइपीसीसी की 2013 की आकलन रिपोर्ट में कहा गया था कि इस शताब्दी के अंत तक अंटार्कटिक की बर्फ की चादरों से समुद्र का जलस्तर केवल पांच सेंटीमीटर बढ़ेगा। लेकिन नए शोध के मुताबिक बर्फ की चादरों के पिघलने से साल 2100 तक जलस्तर करीब 40 सेंटीमीटर बढ़ेगा। अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों को पिघलने से रोकने के लिए तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना होगा।