गोरक्षा के नाम पर हिंसा की आलोचना, लेकिन गोरक्षा की अहमियत भी बता गए मोदी
पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुजरात के साबरमती आश्रम से अपने संबोधन में गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की जमकर आलोचना की। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है, जब मोदी ने कथित गोरक्षकों को निशाने पर लिया है। इससे पहले, पिछले साल अगस्त में भी उन्होंने इन गोरक्षकों को आड़े हाथ लिया था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि 80 पर्सेंट स्वयंभू गोरक्षक असल में समाज विरोधी तत्व हैं। मोदी के मुताबिक, ये वे लोग हैं जो दिन में गोरक्षक का चोला ओढ़े रहते हैं जबकि रात में गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होते हैं।
मोदी ने उस वक्त यह बयान तब दिया था, जब गुजरात और यूपी में दलित और मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमले हुए थे। सूत्रों का मानना है कि पिछली बार मोदी के बयान के बाद संघ परिवार के एक धड़े ने नाराजगी जताई थी। उनका मानना था कि पीएम ने ज्यादा कटु आलोचना की और गोरक्षा के उस मुद्दे को नहीं रख पाए, जो संघ परिवार के दिल के नजदीक है। शायद यही वजह है कि इसके कुछ दिन बाद जब तेलंगाना में मोदी ने दोबारा से भाषण दिया था तो उन्होंने ’80 प्रतिशत’ वाला आंकड़ा नहीं दोहराया।
गुरुवार को मोदी ने अपनी स्पीच में यह स्पष्ट किया कि गोरक्षा के नाम पर किसी की हत्या को जायज नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने हिंसा की आलोचना तो की, लेकिन इस दौरान वह गोरक्षा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि गाय दूसरों का ख्याल रखने और अहिंसा की प्रतीक है। मोदी ने गाय के दयालु स्वभाव का जिक्र करते हुए कहा कि उसके नाम पर हिंसा को सही नहीं ठहराया जा सकता। पीएम ने जहां कानून हाथ में लिए जाने पर चिंता जताई, वहीं यह भी सुनिश्चित किया कि दक्षिणपंथी विचारवालों के सही नब्ज को छुआ जाए। सूत्रों का कहना है कि पीएम की इस मुद्दे पर टिप्पणी राज्य सरकारों को यह नसीहत थी कि हिंसा के इन मामलों से सख्ती से निपटा जाए। उन्होंने यह बात उन बीजेपी मुख्यमंत्रियों को भी समझाई है, जहां हाल ही में पार्टी ने सरकार का गठन किया है।