आइपीएल का सातवां संस्करण टीम मालिकों और आयोजकों के लिए बेहद ही कड़ा होने वाला है। टूर्नामेंट को शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन अभी भी कई टीमों का प्रायोजकों के साथ करार होना बाकी है। माना जा रहा है कि किंग्स इलेवन पंजाब, दिल्ली डेयरडेविल्स, सनराइजर्स हैदराबाद, राजस्थान रॉयल्स और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर की फ्रेंचाइजी करार को अंतिम रूप नहीं दे सकी हैं। इन टीमों को अभी तक सबसे महत्वपूर्ण ‘फ्रंट चेस्ट स्पेस’ (खिलाड़ियों की टी-शर्ट पर सामने लगने वाले लोगो के लिए जगह) के लिए भी कोई प्रायोजक नहीं मिला है।

जब 2008 में आइपीएल की शुरुआत हुई, तब कई टीमों ने प्रायोजकों के साथ तीन से पांच साल का करार किया था। ज्यादातर बड़े करार तीन साल के लिए हुए, जोकि अगले तीन साल के लिए फिर से नवीनीकृत (रेन्यू) कर दिए गए, जबकि पांच साल के करार को एक साल का विस्तार दे दिया गया। अब टूर्नामेंट अपने सातवें साल में हैं। यहां टीमें भी फिर से गठित हुई हैं। कई खिलाड़ी इधर से उधर हुए हैं और सभी प्रायोजन करार दोबारा होने हैं। टीमों की टी-शर्ट पर विज्ञापन के लिए कुल छह स्लॉट होते हैं, जिनमें सबसे महंगा करार (हर सत्र के लिए करीब दस से 20 करोड़ रुपये) फ्रंट चेस्ट के लिए होता है। दिल्ली डेयरडेविल्स की जर्सी पर पिछले तीन साल से मूथुट ग्रुप का लोगो नजर आ रहा था, लेकिन इस बार वह नजर नहीं आएगा क्योंकि उसने इस टीम के साथ अपने करार को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इसी तरह किंग्स इलेवन पंजाब के साथ जुड़े प्रायोजक ‘लक्स कोजी’ ने जैसे ही सुना कि टूर्नामेंट के सातवें संस्करण के शुरुआती मैच संयुक्त अरब अमीरात में खेले जाएंगे, उसने टीम से नाता तोड़ लिया। अल्ट्राटेक सीमेंट्स ने भी राजस्थान रॉयल्स के साथ चले लंबे रिश्ते को खत्म कर दिया है।

सात साल पहले शुरू हुआ क्रिकेट का यह एंटरटेंमेंट रूप हर साल किसी न किसी विवाद को लेकर सुर्खियों में रहा। मैदान पर साथी खिलाड़ी को मारने, लड़की छेड़ने, ड्रग्स लेने तक का मामला सामने आया। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले साल टूर्नामेंट के दौरान घटी स्पॉट फिक्सिंग की घटना और खिलाड़ियों सहित फ्रेंचाइजियों की संलिप्तता की बात ने इस टूर्नामेंट की साख को सबसे ज्यादा धक्का पहुंचाया। इस बार प्रायोजकों में उत्साह नहीं देखे जाने का यह एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा टूर्नामेंट के आयोजन स्थल को लेकर भी चली लंबी उहापोह ने प्रायोजकों को ठिठकाए रखा। माना जा रहा है कि प्रायोजकों से होने वाली कमाई में इस बार टीमों को 20 प्रतिशत का घाटा होगा। इसके अलावा शुरुआती मैच देश के बाहर होने की वजह से टीमों को गेट रेवेन्यू (टिकटों से होने वाली आय) में भी घाटा होगा।