असम में रह रहे 40 लाख लोग एनआरसी में वैध दस्तावेज की कार्रवाई पूरी नहीं कर सके
नई दिल्ली। असम में घुसपैठियों को वापस भेजने का अभियान करीब 39 वर्षों से चल रहा है। 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान वहां से बड़ी संख्या में लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए। उन्हें खदेड़ने की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने 1979 से आंदोलन छेड़ा। घुसपैठियों और नागरिकों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुईं।
1979 में पहला आंदोलन
लंबे समय से यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन हो रहे हैं। घुसपैठियों को बाहर निकालने का पहला आंदोलन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने शुरू किया। यह आंदोलन हिंसक हुआ और करीब छह साल तक चला। इसमें हजारों लोगों की मौत हुई।
राजीव गांधी ने की थी बात
असम में हिंसा रोकने के लिए 1985 में केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों में समझौता हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं की वार्ता हुई थी। इसमें 1951 से 1971 के बीच असम में आए लोगों को नागरिकता देने और 1971 के बाद बांग्लादेश से आए लोगों को वापस भेजने की बात तय हुई। लेकिन यह बातचीत इसके बाद टूट गई और समझौता विफल हो गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में दिया अपडेशन का आदेश
अवैध घुसपैठ के चलते असम में सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ता चला गया। 2005 में राज्य और केंद्र सरकार में एनआरसी अपडेट करने के लिए समझौता हुआ। धीमी रफ्तार की वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इस मुद्दे पर कांग्रेस जहां सुस्त दिखी, वहीं भाजपा ने इस पर दांव खेल दिया।
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। इसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दिया। 2016 में राज्य में भाजपा की पहली सरकार बनी और इसकी प्रक्रिया फिर तेज हो गई।
इस आधार पर सूची से बाहर
-असम में रह रहे 40 लाख लोग एनआरसी में वैध दस्तावेज की कार्रवाई पूरी नहीं कर सके। जिसके चलते उन्हें एनआरसी से बाहर किया गया है। -इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिनके पास 25 मार्च, 1971 से पहले की नागरिकता का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है।
-चोरी-छिपे बांग्लादेश से आकर असम में रह रहे बहुत सारे लोग भी एनआरसी में भारतीय दस्तावेज पेश करने में असफल रहे।
-संदिग्ध मतदाताओं, उनके आश्रितों, इस मामले में विदेशी न्यायाधिकरण गए लोगों और उनके बच्चों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया है।
दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में शुमार
असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को निकालने के लिए एनआरसी अपडेट करने का अभियान दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में शामिल है। इसका मकसद अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजना है। यह मसौदा सभी एनआरसी केंद्रों पर उपलब्ध है। लोग इसकी वेबसाइट पर भी इसके बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।
अब भी नाम दर्ज कराने का मौका मिलेगा
एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने कहा कि यह अंतिम मसौदा है, अंतिम सूची नहीं। जिन लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, वे इस पर अपनी आपत्ति और शिकायत दर्ज करा सकते हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकता सूची से बाहर छूट गए लोगों को एक महीने का मौका दिया जाएगा।
सरकार ने इसके लिए 2,500 ट्रिब्यूनल ऑफिस का गठन किया है। वहां इन लोगों को 25 मार्च, 1971 से पहले की नागरिकता के वैध दस्तावेज पेश करने होंगे। इसके लिए फॉर्म सात अगस्त से 28 सितंबर के बीच मिलेंगे। इसके बाद उन्हें अपने दावे को दर्ज कराने के लिए अन्य निर्दिष्ट फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा।
ऐतिहासिक व यादगार दिन : सोनोवाल
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इसे ऐतिहासिक दिन बताते हुए कहा कि यह हमेशा लोगों की यादों में बना रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने अफवाह फैलाने वाले लोगों के प्रति सावधान करते हुए कहा कि किसी को उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। हम सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के अनुसार काम करते रहेंगे। राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि एहतियाती कदम उठाते हुए सभी 33 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है।
असम देश का पहला राज्य
-1951 में हुई देश की पहली जनगणना के बाद असम में देश का पहला राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बना था। अभी इसे अपडेट किया जा रहा है।
-24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में बस चुके नागरिकों या उनके वंशजों के नाम एनआरसी में शामिल किए जा रहे हैं।
-पहला प्रारूप 1.9 करोड़ नामों के साथ 31 दिसंबर 2017 की आधी रात को जारी किया गया था।
-यह बड़ी कसरत दिसंबर 2013 में शुरू हुई थी।
-सुप्रीम कोर्ट में पिछले साढ़े तीन साल में इस मामले में 40 सुनवाई हो चुकी है।
-मई 2015 से नाम जोड़ने के आवेदन मंगाए गए थे।
सांसद बदरुद्दीन का नाम अंतिम मसौदे में शामिल
असम में धुबरी से सांसद और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल का नाम एनआरसी के अंतिम मसौदे में शामिल हो गया है। दिसंबर 2017 में जारी एनआरसी के पहले मसौदे में 1.4 करोड़ लोगों के नाम गायब थे और बदरुद्दीन भी उन्हीं में से एक थे। अभिनेत्री से विधायक बनीं अंगूरलता डेका, एनआरसी के संयोजक और असम के गृह सचिव प्रतीक हजेला, उल्फा (आई) के कमांडर इन चीफ परेश बरुआ और ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के चीफ एडवाइजर समुज्जल भट्टाचार्य के परिजनों के नाम भी एनआरसी के पहले मसौदे से गायब थे।
मूल देश वापस भेजें : प्रफुल्ल महंत
असम के पूर्व सीएम प्रफुल्ल कुमार महंत ने मांग की है कि 24 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों को उनके मूल देश वापस भेजा जाए। ज्ञात हो कि महंत ने राज्य से अवैध घुसपैठियों को निकालने की मांग को लेकर लंबा आंदोलन चलाया था। इसके बाद उन्होंने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी के साथ 1985 में असम समझौता किया था।