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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अग्रिम जमानत का प्रावधान देने वाले बिल को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि आपातकाल के दैरान इन दोनों राज्यों में अग्रिम जमानत देने वाले जिस कानून को हटा दिया गया था, अब राष्ट्रपति की अनुमति के बाद उसे दोबारा लागू किया जा सकेगा।

माननीय राष्ट्रपति ने सोमवार को कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर बिल (2018) को मंजूरी दी। बता दें कि देश में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ही ऐसे दो राज्य हैं जहां अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। चार दशकों बाद राष्ट्रपति की अनुमति के बाद इस कानून को दोबारा लागू करने की प्रक्रिया पर काम किया जा सकेगा।

इस बिल के तहत उत्तर प्रदेश के सीआरपीसी की धारा 438 के तहत संशोधन किया जाएगा। संशोधित कानून के  मुताबिक अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान आरोपी के मौजूद रहने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। नए कानून के तहत कोर्ट के पास अग्रिम जमानत देने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें रखने का अधिकार होगा। गंभीर अपराध के मामलों में अदालत चाहे तो अग्रिम जमानत देने से इनकार भी कर सकता है।

गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि जिन मामलों में दोषी को फांसी की सजा मिली हो या जो मामले गैंग्सटर एक्ट के तहत दर्ज हों, उनमें अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होगा।

2009 में भी हुई थी बिल पास कराने की कोशिश 

बता दें कि साल 2009 में भी राज्य विधि आयोग ने संशोधित बिल को दोबारा लागू करने की सिफारिश की थी। इसके बाद 2010 में मायावती की सरकार ने बिल पास कर इसे केंद्र के अनुमोदन के लिए भेजा था, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में केंद्र की तरफ से इसे यह कह कर वापस भेज दिया गया कि इसमें अभी कुछ बदलावों की जरूरत है।