बिना इंसुलिन डायबिटीज का होगा इलाज, भारत में हुई ये कमाल की खोज
यह दुनिया में पहली बार हुआ है जब एनकेएक्स 6-1 जीन म्युटेशन को एमओडीवाई के नए प्रकार के तौर पर परिभाषित किया गया है.
दिल्ली: डायबिटीज या मधुमेह से पीड़ित लोगों का इलाज इंसुलिन की मदद से किया जाता है. लेकिन इस रिसर्च के मुताबिक अब डायबिटीज टाइप-1 का इलाज बगैर इंसुलिन हो सकता है. मधुमेह के उपचार के क्षेत्र में भारतीय चिकित्सकों ने महत्वपूर्ण खोज की है. चिकित्सकों के मुताबिक इस खोज से मधुमेह के प्रकार का पता कर उसका इलाज आसानी से किया जा सकता है. उनका कहना है कि अक्सर मधुमेह पीड़ितों को इंसुलिन लेना पड़ता है जबकि मधुमेह की टाइप-1 का उपचार बगैर इंसुलिन संभव है. ‘बीएमसी मेडिकल जेनेटिक्स’ जर्नल में मैच्योरिटी ऑनसेट डायबिटीज ऑफ द यंग (एमओडीवाई) नाम से प्रकाशित इस शोध में अनुसंधानकर्ताओं ने मुधमेह के प्रकार उल्लेख किया है.
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चिकित्सकों ने बताया कि सामान्य रूप से मधुमेह के दो प्रकार होते हैं. मधुमेह प्रकार-1 की शिकायत युवाओं या बच्चों को होती है. एमओडीवाई के साथ मरीज आमतौर पर कमजोर होते हैं और उनकी कम उम्र के कारण उन्हें टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बताया जाता है और उन्हें जीवनभर इंसुलिन इंजेक्शन लेने की सलाह दी जाती है.
मधुमेह प्रकार-2 डायबिटीज सामान्य तौर पर वयस्कों को प्रभावित करता है और बीमारी के अंतिम स्तरों को छोड़कर हाइपरग्लाइकेमिया को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन की जरुरत नहीं होती है.
डॉ. वी. मोहन, निदेशक, एमडीआरएफ ने कहा, “एमओडीवाई जैसे डायबिटीज के मोनोजेनिक प्रारुप का पता चलने का महत्व सही जांच तक है क्योंकि मरीजों को अक्सर गलत ढंग से टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बता दिया जाता है और उन्हें गैर-जरुरी रूप से पूरी जिंदगी इंसुलिन इंजेक्शन लेने की सलाह दी जाती है. एक बार एमओडीवाई का पता चलने पर एमओडीवाई के ज्यादातर प्रारुपों में इंसुलिन इंजेक्शन को पूरी तरह रोका जा सकता है और इन मरीजों का इलाज बहुत ही सस्ते सल्फोनिलयूरिया टैबलेट से किया जाता है जिनका इस्तेमाल दशकों से डायबिटीज के इलाज के लिए किया जाता है. जहां तक उपचार और इन मरीजों के जीवन और उनके परिवारों की बात है तो यह एक नाटकीय बदलाव है.”
डॉ. राधा वेंकटेशन, जेनोमिक्स प्रमुख, एमडीआरएफ ने कहा, “यह दुनिया में पहली बार हुआ है जब एनकेएक्स 6-1 जीन म्युटेशन को एमओडीवाई के नए प्रकार के तौर पर परिभाषित किया गया है. एमओडीवाई का यह प्रकार सिर्फ भारतीयों के लिए अनोखा है या यह अन्य लोगों में भी पाया जाता है, यह जांचने के लिए आगे भी अध्ययन करने होंगे.”