चुनाव

साल 2014 में हुए सोलहवीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने विकास को मुद्दा बनाया था.

इसे लोगों ने वरीयता दी और आम चुनावों में भाजपा को कुल 282 सीटें मिली थीं. पार्टी को मिले इस प्रचंड बहुमत को ‘नरेंद्र मोदी की लहर’ बताया गया.

लेकिन 2014 के आम चुनावों के बाद अब तक लोकसभा की 18 सीटों के लिए उप-चुनाव हुए हैं जिनमें से केवल दो सीटों पर ही भाजपा जीत हासिल कर पाई है.फूलपुर लोकसभा सीट से विजेता रहे समाजवादी पार्टी के नेता नागेंद्र प्रताप पटेल (बीच में)

बुधवार को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर मिली हार के बाद 16 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिनपर भाजपा के विरोधियों की जीत मिली है.वहीं जिन दो सीटों पर हुए उप-चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की, वो सीटें 2014 के आम चुनाव में भी भाजपा ने ही जीती थीं.और 2014 के आम चुनाव के बाद 16 में से 6 सीटें ( रतलाम, गुरदासपुर, अजमेर, अलवर, गोरखपुर, फूलपुर) ऐसी थीं, जो भाजपा के पास थी और अब वे उनके हाथ से निकल चुकी हैं.
दो दिन पहले बनारस में फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मेहमाननवाज़ी में थे पीएम नरेंद्र मोदी और आदित्यनाथ योगी

श्रीनगर लोकसभा सीट की बीजेपी सहयोगी पीडीपी के पास थी जिसे नेशनल कॉन्फ़्रेंस के फ़ारुक़ अब्दुल्लाह ने जीत ली है.

यानी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा को एक भी लोकसभा सीट की बढ़त हासिल नहीं हुई, बल्कि अपनी छह सीटें घट ज़रूर गईं.

हालांकि ये भी अहम है कि ज़्यादातर उप-चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ख़ुद प्रचार करने नहीं गए थे.

भाजपा का गिरता ग्राफ़

आम चुनाव के बाद सबसे पहले 2014 में ही ओडिशा की कंधमाल लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुए थे जिसमें बीजेडी उम्मीदवार ने भाजपा को शिकस्त दी थी.

उसके बाद तेलंगाना के मेढक में हुए उप-चुनाव में टीआरएस ने भाजपा को हराया.

2014 में ही उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हुए उप-चुनाव में सपा ने भाजपा को हराया.

वडोदरा सीट भाजपा ने बचाई

लेकिन 2014 में गुजरात की वडोदरा सीट पर हुए उप-चुनाव में भाजपा अपनी सीट बचाने में कामयाब रही थी. 

साल 2015 भी भाजपा के लिए कोई ख़ास अच्छा नहीं रहा. इस साल वारंगल और पश्चिम बंगाल में उप-चुनाव हुए.

एक जगह टीआरएस को जीत मिली तो दूसरी जगह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को जीत हासिल हुई. ये दोनों सीटें पहले से ही तृणमूल और टीआरएस के पास थीं, लेकिन बीजेपी को धक्का लगा मध्यप्रदेश के रतलाम में. 2014 चुनाव में बीजेपी ने रतलाम सीट जीती थी लेकिन 2015 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर इस सीट पर क़ब्ज़ा कर लिया.

2016 में कुल 3 सीटों के लिए उप-चुनाव हुए. लेकिन भाजपा केवल मध्यप्रदेश के शहडोल को बचाने में ही कामयाब हुई जबकि पश्चिम बंगाल के तामलूक और कूचबिहार में तृणमूल को जीत हासिल हुई.

2017 में दो उप-चुनाव हुए.

भारत प्रशासित कश्मीर की राजधानी श्रीनगर लोकसभा सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के फ़ारुक़ अब्दुल्लाह विजयी हुए थे. पहले ये सीट बीजेपी सहयोगी पीडीपी के पास थी. लेकिन बीजेपी को दूसरा झटका लगा पंजाब में. गुरदासपुर से बीजेपी सांसद फ़िल्म कलाकार विनोद खन्ना की मौत के बाद वहां हुए उप-चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को भारी मतों से शिकस्त दी.

2018 में अब तक लोकसभा की पाँच सीटों पर उप-चुनाव हुए हैं लेकिन भाजपा एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी है.अजमेर और अलवर लोकसभा सीट भी पहले भाजपा के पास थी, जो अब कांग्रेस जीत चुकी है

राजस्थान के अजमेर और अलवर की सीटों पर कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की. वहीं 11 मार्च को तीन सीटों पर हुए उप-चुनाव में बिहार के अररिया में राष्ट्रीय जनता दल ने जीत हासिल की तो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर में समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की.

यूपी के कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह और महाराष्ट्र के पालघर से बीजेपी सांसद चिंतामन वनागा की मौत के बाद अभी वहां उप-चुनाव नहीं हुए हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र के भंडारा से बीजेपी सांसद नाना पटोले ने पार्टी की नीतियों के विरोध में इस्तीफ़ा दे दिया है.

इस तरह से बीजेपी के पास इस समय 273 सीटें हैं.

गोरखपुर उप-चुनाव क्यों था अहम?

लेकिन इन सभी उप-चुनावों मे शायद यूपी उप-चुनाव नतीजे सबसे अहम हैं.

चुनाव
गोरखपुर लोकसभा सीट पर प्रचार करने में पूरा ज़ोर लगाया था भाजपा ने

गोरखपुर इसलिए बहुत अहम है क्योंकि ये सिर्फ़ मौजूदा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की सीट नहीं थी बल्कि 1989 के बाद से भाजपा एक बार भी ये सीट नहीं हारी थी.

ख़ुद योगी ही 1998 से लगातार पाँच बार यहाँ से सांसद चुने जा चुके हैं.

उसी तरह फूलपुर भी अहम है क्योंकि ये मौजूदा उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीट थी और ये सीट उन्होंने 2014 आम चुनाव में तीन लाख से भी अधिक वोटों से जीती थी.