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नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 और मुस्लिम महिला बिल-2018 ये वो दो बिल हैं जिन्हें लोगों के समर्थन के साथ-साथ विरोध का सामना भी करना पड़ा है। ये बिल लोकसभा में पास हो चुके हैं जबकि राज्यसभा में अभी तक लंबित हैं। अगर ये बिल बजट सत्र के आखिरी दिन यानी बुधवार को भी पास नहीं हुए तो रद्द माने जाएंगे।

 

राज्यसभा में इन बिलों के अलावा बुधवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ‘कैपिटल एक्वीजीशन इन इंडियन एयर फोर्स’ रिपोर्ट को भी पेश किया जाएगा। प्रोटोकॉल के तहत कैग अपनी रिपोर्ट की एक प्रति राष्ट्रपति और दूसरी प्रति वित्त मंत्रालय को भेजते हैं। सूत्रों के अनुसार, राफेल पर कैग रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी गई है और कैग ने राफेल पर 12 चैप्टर की रिपोर्ट तैयार की है। रक्षा मंत्रालय ने राफेल विमान पर विस्तृत जवाब और संबंधित रिपोर्ट कैग को सौंपी थी। इसमें खरीद प्रक्रिया की जानकारी के साथ 36 राफेल विमानों की कीमत भी बताई गई थी।

विपक्षी दलों ने परामर्श के बिना नागरिकता विधेयक का विरोध किया है, लेकिन सरकारी सूत्रों ने राज्यसभा की व्यापार सलाहकार समिति के 2016 के फैसले का हवाला दिया, जब विधेयक पर चर्चा के लिए तीन घंटे आवंटित किए गए थे। लेकिन अगर ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हुआ तो ये भी रद्द होगा।

मौजूदा समय में सरकार को तीन तलाक मुद्दे पर विपक्षी दलों के उग्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा रहा है। वहीं नागरिकता अधिनियम जिसका काफी विरोध हो रहा है, सरकार भी उसपर अडिग है। इस बिल के तहत तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता पाना आसान किया गया है।

लोकसभा की प्रक्रिया के अनुसार लोकसभा में पेश किया गया कोई भी विधेयक अगर किसी भी सदन में लंबित है तो वह कार्यकाल के साथ ही समाप्त हो जाएगा। वहीं अगर कोई बिल राज्यसभा में पेश हुआ है और पास भी हुआ है तो वो भी रद्द हो जाएगा, अगर वह लोकसभा में लंबित है। अगर नागरिकता संशोधन बिल और तीन तलाक बिल आज पास नहीं हुए तो अगली सरकार के आने के बाद इन्हें दोबारा लोकसभा में पास कराना होगा।

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल का काफी विरोध हो रहा है। असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्य के लोग इस नए बिल को अपने लिए खतरा मानते है और उनके मुताबिक यह असम संधि के खिलाफ है, जिसके मुताबिक 24 मार्च 1971 के बाद प्रदेश में आने वाला विदेशी नागरिक माना जाएगा। हालांकि इस बिल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों (शिया और अहमदिया) को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है।