रायपुर। लेफ्ट विंग एक्सट्रिमिस्ट यानी वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए जहां केंद्र सरकार पुलिस इंटेलिजेंस को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है, वहीं नक्सलियों ने अब इसी एक्शन को अपना नया टारगेट बना लिया है। पिछले तीन साल के भीतर नक्सलियों ने पुलिस के 161 मुखबिरों को मौत के घाट उतारकर उनके नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया है। पुलिस के टारगेट को ही निशाना बनाकर नक्सली अब उनके इंटेलिजेंस को तोड़ने या अपने नियंत्रण में लेने की मंशा पर काम कर रहे हैं।

हालांकि इस मंशा पर नक्सली पहले भी काम किया करते थे, लेकिन पुलिस इंफारमर की मौत को सामान्य ग्रामीण की मौत के तहत गिना जाता था। अब इस आंकड़े को अलग कर पुलिस के इंटेलिजेंस पर नए सिरे से मंथन किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मुद्दे को बेहद ही गंभीरता से लिया है और सभी वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों को अलर्ट भेजा है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक आंकड़ों में पिछले दो सालों के नक्सली वारदातों का जिक्र किया गया है।

उसमें पहली बार मारे गए नागरिकों में पुलिस ने अपने मुखबिरों की भी रिपोर्ट बनाई। इस रिपोर्ट का आमतौर पर खुलासा नहीं होता था, लेकिन गृह मंत्रालय की ओर से इस पर गंभीरता से मंथन शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय की ओर से स्पेशल इंटेलिजेंस ब्यूरो (एसआईबी) को विशेष रूप से इस बारे में अवगत कराया गया है कि वे अपने मुखबीरों के नाम का खुलासा न होने दें। इतना ही नहीं, उन्हें गुप्त रखने के लिए भी कई तरह के विशेष निर्देश जारी किए गए हैं।

करोड़ों रुपए का है इंटेलिजेंस गोपनीय बजट

– केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से नक्सल इलाकों में सिर्फ इंटेलिजेंस का काम करने वालों के लिए अलग से बजट निर्धारित होता है। यह गोपनीय बजट कहलाता है, जिसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती। इस बजट के तहत पुलिस नक्सलियों की रणनीति और तमाम जानकारियों के लिए अपने मुखबिरों को लाखों रुपए देती है। अब नक्सलियों द्वारा मुखबिरों को टारगेट बनाने से पुलिस के इंटेलिजेंस के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

मुखबिरों को दर्दनाक मौत, ताकि कोई भी बनने से डरे

नक्सली आमतौर पर पुलिस के जवानों के साथ-साथ मुखबिरों की भी हत्या करने में दर्दनाक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। वे सिर काटने के बाद उनके शरीर को लटका देते हैं, ताकि यह भयानक लगे। इतना ही नहीं, कई बार हाथ काटने, उंगलियां काटने और आंखें निकाल लेने की भी घटना सामने आई है। ज्यादातर ऐसी मौतों में गोलियां नहीं खर्च की जातीं। खुखरी या धारदार चाकुओं का इस्तेमाल कर मुखबिर की हत्या की जाती है, ताकि इसे देखने वाले या इसके बारे में सुनने वाले कभी पुलिस का साथ न दें।

पुलिस मुखबिरों के आंकड़े, जिनकी नक्सलियों ने हत्या की

राज्य 2015 2014 2013

छत्तीसगढ़ 11 08 31

आंध्रप्रदेश 00 01 04

बिहार 01 02 07

झारखंड 02 01 35

महाराष्ट्र 02 01 08

ओडिशा 04 07 25

तेलंगाना 00 02 03

कुल 22 26 113

जनअदालत में हत्या की सजा, आंकड़े आए सामने

केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस बार नक्सलियों के जन अदालतों का भी आंकड़ा जारी किया गया है। इस आंकड़े के मुताबिक छत्तीसगढ़ में दो सालों के भीतर आठ बड़ी जन अदालतें लगाई गईं। इन सभी में मुखबिरों को पहचानकर उन्हें हत्या की सजा दी गई। 2014 में दो और 2015 में अब तक छह अदालतें लगाई गईं। झारखंड में ऐसी जन अदालतें सबसे ज्यादा होती हैं। वहां का आंकड़ा 18 का है। इसके अलावा बिहार में दो सालों में छह और ओडिशा में दो जन अदालतें लगाई गई थीं।

 

ग्रामीणों को भी मुखबिर बताकर मार रहे- आईजी

एसआईबी के आईजी दीपांशु काबरा ने बताया कि यह बेहद ही गंभीर घटना है, क्योंकि हमने जब इसकी पड़ताल की तो ऐसे भी मौत के आंकड़े सामने आए, जिनमें नक्सलियों ने ग्रामीणों को मुखबिर बताकर मारा था। वे दहशत फैलाने के उद्देश्य से ऐसी हत्याओं को अंजाम देते हैं। बस्तर के अंदरूनी इलाकों से जब कोई बाहर पढ़ने-लिखने या कॉलेज के लिए भी आता है तो नक्सली उस पर नजर रखते हैं। बाद में उसके गांव लौटने पर उसे पुलिस का मुखबिर बताकर सजा दी जाती है। यह सब दहशत फैलाने के तरीके हैं, जिससे वे पुलिस के इंटेलिजेंस को कमजोर करने की कोशिश करते हैं।