Kisan Andolan Before fifth round of talks with the government farmers  threatened to shut down India know 10 big things related to farmers protest  - सरकार के साथ पांचवें दौर की बातचीत

तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए चल रहे किसान आंदोलन में मुख्य पेच न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को लेकर बना हुआ है। एमएसपी के सवाल पर आंदोलनकारी किसान संगठन ही नहीं बल्कि संघ के अनुषांगिक संगठन भी सरकार के खिलाफ हैं। हालांकि इस मांग से जुड़ी जटिलताओं के कारण सरकार पूरी तरह असमंजस में है।

सरकार के सूत्रों का भी कहना है कि अगर एमएसपी की कानूनी गारंटी की घोषणा कर दी जाए तो तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग संबंधी स्वर धीमे हो सकते हैं क्योंकि सरकार पहले से ही इन कानूनों के कई प्रावधानों में संशोधन के लिए तैयार है। मसलन सरकार किसानों को सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने, एनएसआर क्षेत्र से जुड़े नए प्रदूषण कानून में बदलाव करने, निजी खरीददारों के लिए पंजीयन अनिवार्य करने और छोटे किसानों की हितों की रक्षा के प्रावधानों में जरूरी बदलाव के लिए तैयार है।

पांचवें दौर की बैठक के बेनतीजा रहने के बाद सरकार में आंदोलन खत्म कराने के लिए माथापच्ची जारी है। मुख्य चिंता एमएसपी को लेकर है। कृषि मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के बीच शनिवार रात से ही कई दौर की बातचीत हुई है। इस पर अंतिम निर्णय से पहले सरकार 8 दिसंबर को किसान संगठनों की ओर से बुलाए गए भारत बंद के जरिए उनका दमखम भी तौलना चाहती है।

 

इसको लेकर है असमंजस
-सरकार का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने की है। एमएसपी को सरकार कानूनी तो बना देगी, मगर निजी क्षेत्र को खरीदारी के लिए बाध्य नहीं कर पाएगी। ऐसे में अगर फसल की मांग कम हुई तो निजी क्षेत्र खरीददारी करेंगे ही नहीं।
– सरकार एक सीमा तक ही एमएसपी के तहत खरीदारी कर सकती है। सरकार औसतन कुल उपज का छह फीसदी की ही खरीद करती है। वर्तमान क्षमता के अनुरूप इसे दस फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। भंडारण क्षमता, अर्थव्यवस्था पर बोझ सहित कई ऐसे कारण है जिसके चलते सरकार बहुत अधिक मात्रा में अनाज नहीं खरीद सकती।
– किसी एक फसल की अधिक उपज होने के बाद उसकी मांग में कमी आएगी। सरकार एक सीमा से अधिक फसल नहीं खरीदेगी। इसके बाद एमएसपी से कम कीमत पर खरीद गैरकानूनी होने पर निजी क्षेत्र खरीदारी प्रक्रिया से नहीं जुड़ेंगे। ऐसे में किसान उन फसलों का क्या करेगा?
– बड़ा सवाल कीमत तय करने का भी है। एमएसपी के दायरे में आने वाली फसलों की अलग-अलग गुणवत्ता होती है। गुणवत्ता के हिसाब से एक फसल का अलग-अलग मानक तय करते हुए अलग-अलग एमएसपी तय करनी होगी। मानकों पर खरा नहीं उतरने वाली फसलों का क्या होगा? सरकार के सूत्र इसे बेहद जटिल प्रक्रिया मानते हैं।
– सरकार का कहना है कि तीनों कानूनों के जरिए उसकी कोशिश कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कराने की थी। निजी क्षेत्र अपनी सूझबूझ से ऐसी फसलों की खेती कराएंगे, जिनकी भविष्य में मांग ज्यादा होने की संभावना रहेगी। मगर एमएसपी को कानूनी बनाने से नए कानूनों का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
– सरकार प्रतिस्पर्धा के लिए निजी क्षेत्र पर शर्तें नहीं थोपना चाहती। सरकार के सूत्रों का कहना है कि वैसे भी कृषि क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए आकर्षण की प्राथमिकता वाला क्षेत्र नहीं है। शर्तें थोपने से निजी क्षेत्र कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित नहीं होगा।
– एमएसपी का प्रावधान एक तरह से किसानों को सुरक्षा देने के लिए किया गया था। मसलन मांग और आपूर्ति में ज्यादा अंतर होने से किसानों को होने वाले घाटे से बचाने के लिए एमएसपी प्रक्रिया अपनाई गई थी। दूसरी ओर निजी क्षेत्र का कारोबार मांग और आपूर्ति के आधार पर चलता है। इसमें जिस फसलों की मांग ज्यादा होगी उसकी कीमत एमएसपी से ज्यादा होगी।